Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 330

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
लालमोहर और झपसी , घुरहुआ , झुम्मन ममयां , नूर ममयां , इिामहम ममयां ऊं टवाले , कै लासपमत मनर्षाद , समझु हज्जाम , जगदीश से लेकर कबीर , मनराला , मत्रलोचन , मभखारी ठाकु र जैसे लोग हैं वहीं सुबह- सुबह टहलने के मलए मनकले बूढ़े हैं , टमाटर बेचती बुमढ़या है , टूटा हुआ रक है , सायमकल है , पत्रकार , लेखक , कमव , पत्राकार यहाँ तक की रामचमद्र शुक्ल की मूछें भी हैं । चमकया , आंकु सपुर , मदल्ली , पडरौना , बनारस , मत्रमननाद , माररशस आमद तो हैं । के दार का यह संसार इतना व्यापक और समृद्ध है मक इसे ‘ एक जंगल ’ कहना उप्रयुक्त ही लगता है और उस जंगल में मसयार , गाय , खरहा समहत भेड़ और ‘ बाघ ’ भी हैं । और वह ‘ बाघ ’ तो इतना मायावी और अथावान है मक एक पूरे समय का मवमशा उसके होने में शाममल है ।
आशय यह है मक के दार की कमवता की संवेदना और सरोकार उन तमाम चीजों के साथ है , जो एक आम आदमी के मलए ध्यान का मवर्षय नहीं है – यहाँ तक मक वह आम आदमी भी । उनकी आधुमनकता की मचंता में वे तमाम चीजें चुपचाप शाममल हैं । कई बार प्रत्यक्ष मदखती हुई ंऔर कई बार कमवता की ओट में बाघ की तरह छु पी हुई ।
माझी का पुल में लालमोहर मकस तरह आता
है , यह देखना मदलचस्प अनुभव है – लालमोहर हल चलाता है और ऐन उसी वक्त उसे खैनी की जरूरत महसूस होती है बैलों के सींगों के बीच से मदख जाता है माँझी का पुल 18 यहाँ कमारत लालमोहर नाम का एक मकसान है मजसके मलए माझी का पुल मकसी राहत की छाया की तरह आता है । के दार अपनी तरफ से कु छ नहीं कहते , मसफा एक मचत्र आंक देते हैं - लेमकन पाठकों के सामने एक बड़ा संसार और उसके प्रश्न आकर खड़े
हो जाते हैं उन्हें बेचैन करते हैं । यह है के दार की संवेदना की अमद्वतीयता ।
आधुमनकबोध ने कमवता के ररश्ते को प्रकृ मत और मनुष्ट्य के साथ उन वस्तुओं के साथ भी जोड़ा जो काव्य के स्थामपत दायरे से अब तक बाहर थे । पहली बार यह काम मकया मनराला ने । लेमकन मनराला भी मभक्षुक से आगे नहीं आ सके , मनराला के बाद अज्ञेय ने कई अपररमचत दायरों में प्रवेश मकया लेमकन के दार के यहाँ सड़क पर मरा हुआ कीड़ा पहली बार मदखायी पड़ता है । इस तरह की उपेमक्षत चीजों का कमवता में आना एक अपूवा घटना की तरह थी – यह बोध के दार को अपने पूवावती के साथ अपने समकालीन कमवयों से भी अलग करता है , उन्हें और अमधक चेतस और आधुमनक बनाता है । कीड़े की मृत्यु पर के दार की कमवता देखें – मरा पड़ा है कीड़ा उसको देख पड़ा यों गुमसुम क्यों होती है पीड़ा क्यों मैं मठठक गया हूँ क्यों मैं खोज रहा हूँ उसमें तड़पन कोई हरकत क्यों मुझे लगता है उसका होना बहुत जरूरी था क्या हो जाता उस होने से ? क्या लेबनान में जो कु छ घमटत हुआ है वह रूक जाता ? 19 इसी तरह , झरबेर , कु दाल , धूल , नक्शा , छाता टूटा हुआ रक , बाघ , पांडुमलमपयां , लुखरी , दांत , मक्रके ट , खरहे , शीर्ष ासन आमद पर के दार ने कमवताएँ मलखी हैं और उनमें नए अथा भरे हैं , उनकी माफा त नई संवेदना को अमबव्यक्त मकया है- टटके और अछू ते मबंब रचने का सफल और अमद्वतीय साहस मकया है । ये सारी चीजें के दार की कमवता में साँस लेने
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017