Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 327

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
समूची आग को गंध में बदलती हुई दुमनया की सबसे आियाजनक चीज वह पक रही है
और पकना लौटना नहीं है जड़ों की ओर वह आगे बढ़ रही है धीरे-धीरे उसकी गरमाहट पहुँच रही है आदमी की नींद और मवचारों तक ” 9 जामहर है मक के दार हर बार एक नई यात्रा की शुरूआत करते हैं और वे हर बार ठीक वहीं पहुँचते हैं , जहाँ पहुँचना है ।
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आधुमनकता ने मनुष्ट्य को जो एक अन्य चेतना प्रदान की - उसने मनुष्ट्य के अंदर सवाल पूछने की प्रवृमत को पैदा मकया । ‘ क्यों ’ और ‘ कै से ’ के सवाल पहली बार मनुष्ट्य ने पूछना शुरू मकया । आधुमनकता का ही एक रूप वह प्रजातंत्र है , मजसमें मनुष्ट्य को अमभव्यमक्त की आजादी प्रदान की गई । मनुष्ट्य पहली बार सवाल पूछने की स्वतंत्रता प्राप्त कर सका । हर चीज को पहले प्रश्नांमकत करना और समुमचत उत्तर प्राप्त होने के पिात ही उसे स्वीकार करना आधुमनकता बोध ने मसखाया । के दार एक कमवता में स्पसे मलखते हैं – इंतजार मत करो जो कहना है कह डालो क्योंमक हो सकता हा मफर कहने का कोई अथा न रह जाए सोचो जहाँ खड़े हो वहीं से सोचो चाहे राख से ही शुरू करो ....
पूछो चाहे मजतनी बार पूछना पड़े चाहे पूछने में मजतना तकलीफ हो मगर पूछो पूछो मक गाड़ी मकतनी लेट है
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के दार बार-बार सोचने और पूछने की प्रवृमत को अपनी कमवता में उकसाते हैं । भारत जैसे देश में जामहर है मक पूछना और सोचना कई बार तकलीफ देह भी हो सकती है – मफर भी वे ‘ पूछना ’ और ‘ सोचना ’ मक्रया पर बल देते हैं । यह या उनकी कमवता में आई इस तरह की मक्रयाएं उन्हें गहरे आधुमनकबोध का कमव सामबत करती हैं । एक दूसरी कमवता में वे मलखते हैं – पर असल में अपना हर बयान दे चुकने के बाद होठों को चामहए मसफा दो होंठ जलते हुए खुलते हुए बोलते हुए । 11 के दार जब होंठ पर कमवता मलखते हैं तो उनकी आकांक्षा ‘ जलते हुए ’ और ‘ बोलते हुए ’ होंठों की है । ऐसे होंठ जो बोल सकते हों , प्रश्न कर सकते हों , जो चुप न हों , मजनकी चमक से अमधक उनकी जलन हो – उनमें भार्षा की आँच हो ।
यह पूछना मसफा बाहर से पूछना नहीं है – कई बार यह पूछना कमव के अपने जगत में प्रवेश कर खुद से भी पूछना है – आधुमनकता की पररयोजना में प्रश्न बहुत महत्वपूिा हैं । मवज्ञान भी सबसे पहले प्रश्न करता है – और मवज्ञान के मवकास के साथ पैदा हुई आधुमनकता भी प्रश्न करती है- प्रश्न करना मसखाती है- यह अलग बात है मक सामहत्य और कला के प्रश्न अलग तरह के हैं – लेमकन दोनों का उद्देश्य ही मनुष्ट्य
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017