Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 324

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
आधुसनकताबोध और के दारनाथ सिंह
डॉ . सिमलेि सिपािी संपका : साहा इंमस्टट्यूट ऑफ न्युमक्लयर मफमजक्स ,
1 / ए . एफ ., मवधान नगर , कोलकाता-64 . ब्लॉग : http :// anahadkolkata . blogspot . com Email : starbhojpuribimlesh @ gmail . com
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आधुमनकता के जो लक्षि मवद्वानों ने मगनाए हैं उनमें महत्वपूिा हैं – परम्परा से मवद्रोह , स्वकीय सत्ता की स्थापना , तका और वैज्ञामनक पद्धमत की मचंतन प्रमक्रया , संशय , एकाकीपन और ‘ न्युमक्लयर ’ होते जाने का दंश , शहरीकरि के कारि पैदा हुई मवडंबनाएँ इत्यामद ।
साथ ही आधुमनकता के ये सारे लक्षि स्थान काल के साथ पररवमतात होते रहे हैं – जब हम मकसी भारतीय कमव के आधुमनकता बोध को समझते का प्रयास करते हैं तो हमें यह ध्यान में रखना होगा मक भारत में घमटत हुई आधुमनकता का एक अलग स्वरूप है और यहाँ के रचनाकारों-कलाकारों ने आधुमनकता को ठीक उसी तरह ग्रहि नहीं मकया मजस तरह युरोप के लेखक-कलाकारों ने । इसमलए जब हम के दार की कमवताओं का मूल्यांकन करने चलते हैं तो हमें यह ध्यान रखना होगा मक उनकी आधुमनकता की अपनी जड़ें कहाँ है , और साथ ही आधुमनकता को लेकर उनकी अपनी समझ क्या और कै सा है ।
के दारनाथ मसंह आधुमनकताबोध के कमव हैं , लेमकन उन्हें आधुमनकताबोध का कमव मानने के पहले इस स्वीकारोमक्त को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है – “ बहैमसयत एक रचनाकार मेरे मलए आधुमनकता सबसे पहले मेरा अनुभव है । यह अनुभव बहुत-सी
मानमसक प्रमतमक्रयाओं , ्टश्यों , घटनाओं , उम्मीदों और मोहभंगों का ममला-जुला घोल है , जोमक असल में मेरी दुमनया है । मेरी आधुमनकता का एक बड़ा महस्सा बेशक वैज्ञामनक और तकनीकी मवकास के गभा से पैदा हुआ है , परन्तु मेरी मवमशसे ऐमतहामसक मस्थमत की मबडंबना यह है मक मेरी आधुमनकता के स्वरूप को मनधााररत करने में वे वास्तमवकताएं भी एक खास तरह की भूममका मनभाती हैं , जो आधुमनकता से सुपररमचत दायरे से लगभग बाहर हैं । मेरी आधुमनकता की एक मचन्ता यह है मक उसमें लालमोहर कहाँ है ?”
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उनकी आधुमनकता ठीक वैसी ही नहीं है , जो पमिम के मकसी आधुमनक कमव की हो सकती है , या मकसी ऐसे भारतीय कमव की है जो उनके समकालीन है और उसकी रचना प्रमक्रया में आधुमनकता ने महत्त भूममका का मनवााह मकया है । उनकी आधुमनकता में कई खरोंचे हैं मजनको समझना परखना बेहद जरूरी है । यही कारि है मक आधुमनकताबोध का यह कमव अपने मलए मबंब और शब्द अपने लोक से लेकर आता है । वह लोक मजसे शामस्त्रय शब्दावली में मपछड़ी संस्कृ मत या अंधमवश्वासों का गढ़ माना जाता है , के दार की कमवता की मनममामत में एक महत्वपूिा और कई बार मनिाायक की भूममका में आता है ।
हमें के दार की कमवताओं में आधुमनकता के सारे लक्षि प्राप्त होते हैं जो अन्य भार्षा के समकालीन कमवयों में हैं , लेमकन उनकी आधुमनकता महज वैचाररक न होकर अपने देश और अपनी जमीन से पैदा हुई वह आधुमनकता है जो पमिम की आधुमनकता के लक्षिों से मभन्न और ठेठ भारतीय है । के दार के मलए आधुमनकता कोई ‘ फै शन ’ नहीं है , और न ही अपनी कमवता को वैमश्वक बनाने का सप्रयास प्रमतफलन । उनके मलए आधुमनकता सबसे पहले
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017