Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 323

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 मैं उनमें से नहीं हू मेरे भीतर शब्द बच्चों की तरह बड़े होते ह अपना- अपना घर बनाते ह कुछ ग स् ु से में छोड़कर घर से बाहर मनकल जाते ह म झ ु े उनकी शैतामनयों से कोफ़् नहीं मैं उन्हें करता हूं प्यार लौट आने के इ त ं जार में मेरी दोस्तीकुछ और नए बच्चों से हो जाती ह घर छोड़कर गए शब्द जब युवा होकर लौटते ह मैं अपने सफे द बालों से उन्हें खेलते देख एक स र ु मई भार्षा को बनते हुए देखता हूँ । 47 पृ. 19 यह संकेत है मक उनके यहां सजानात्मकता जीवन से भार्षा की यात्रा करती है न मक भार्षा स जावन । तभी तो उनके भीतर शब्द बच्चों की तरह बड़े होते हैं । अतः लीलाधर म ड ं लोई की काव्य ्टमसे सृमसे की पाररमस्थमतकीय तंत्र को बचाने की पक्षधर है । उनकी काव्य ्टमसे हर उस वस्तु के मलए प क ार है जो ख़तरे की ज़द में हैं । इस कथन की सत्यता के मलए मलखे में द क् ु ख कमवता मशर्षाक की पंमक्तयों को देखा जा सकता है- ‘‘मरे मलखे में / अगर द क् ु ख नहीं/ और सबका नहीं/ मेरे मलखे का आग लगे ।’’ 48 47 मंडलोई लीलाधर, दानापानी (ततथिहीन डायरी : 1987- 2004), ददल्ली : मेधा बुक्स, 2008, प . ृ 19 Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. 48 http://kavitakosh.org/kk/ सलखे _ में _ द क् ख _ (शीर्चक _ कवव ता) _/_ लीलाधर _ मंडलोई वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017