Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
ISSN: 2454-2725
मैं उनमें से नहीं हू
मेरे भीतर शब्द बच्चों की तरह बड़े होते ह
अपना- अपना घर बनाते ह
कुछ ग स् ु से में छोड़कर घर से बाहर मनकल जाते ह
म झ ु े उनकी शैतामनयों से कोफ़् नहीं
मैं उन्हें करता हूं प्यार
लौट आने के इ त ं जार में मेरी दोस्तीकुछ और नए
बच्चों से हो जाती ह
घर छोड़कर गए शब्द जब युवा होकर लौटते ह
मैं अपने सफे द बालों से उन्हें खेलते देख
एक स र ु मई भार्षा को बनते हुए देखता हूँ । 47 पृ. 19
यह संकेत है मक उनके यहां सजानात्मकता
जीवन से भार्षा की यात्रा करती है न मक भार्षा स
जावन । तभी तो उनके भीतर शब्द बच्चों की तरह
बड़े होते हैं ।
अतः लीलाधर म ड ं लोई की काव्य ्टमसे सृमसे
की पाररमस्थमतकीय तंत्र को बचाने की पक्षधर है ।
उनकी काव्य ्टमसे हर उस वस्तु के मलए प क
ार है जो
ख़तरे की ज़द में हैं । इस कथन की सत्यता के मलए
मलखे में द क् ु ख कमवता मशर्षाक की पंमक्तयों को देखा
जा सकता है- ‘‘मरे मलखे में / अगर द क् ु ख नहीं/ और
सबका नहीं/ मेरे मलखे का आग लगे ।’’ 48
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मंडलोई लीलाधर, दानापानी (ततथिहीन डायरी : 1987-
2004), ददल्ली : मेधा बुक्स, 2008, प . ृ 19
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
48
http://kavitakosh.org/kk/ सलखे _ में _ द क्
ख _ (शीर्चक _ कवव
ता) _/_ लीलाधर _ मंडलोई
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017