Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 321

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 आमदवामसयों तक ज ग ं ल में पहुचे और उनके जीवन सृमसे का जीवन अनंत है और वे इसे जीन समाज और गीत, संगीत व संस्कृ मत से ज ड़ ु गया । की चेसेा में जोमखम उठाते हैं । जोमखम उठाने म सतप ड़ ु ने हमें लोक कथाएँ, कमवताए , ं ध न ु ें और उसक अमदखे-अमलखे जीवन के पते ठीकाने हैं । और वे उन आ च ं ल से अनेक नाट्य तत्व मदए । इस तरह हमनें उस तक पहुचते हैं और कमवता के मलए कच्चा माल सामहमत्यक प ज ं ू ी से अवचेतना को भरा, मजसे मैं अब अबेरते हैं । वहाँ भार्षा में नये मकरदार ममलते हैं । मजस सामहत्य की तरह देख और मलख पा रहा हूं ।’’ 43 अतः वे उनकी अपनी भार्षा में बोलने की कोमशश करते ह कहा जा सकता है मक ज ग ं ल में घर से यह मनवाासन । उनकी कमवताओ ं में हमें भार्षा और मशल्प के स्तर उनकी सामहत्य और स स् ं कृ मत की समझ और पर तोड़-फोड़ और ख़ाररज़ होने की हद तक जोमखम सौंदयाबोध के मनमााि के मलए था । सौंदयाबोध क उठाने का स्वभाव मदखाई दाता है । एक कमव को मनमााि की इसी समझ और बोध ने उन्हें संघर्षारत अपनी जड़ता को तोड़ने के मलए ऐसी कोमशश ज़रूर बेहाल आमदवासी, दमलत और मनम्न वगा से जोड़ा भी है क्योंमक इसी से उसकी काव्य ्टमसे का मनमााि और शोर्षि को समझने की ब म ु द्ध दी । इसी से उनक होता है । इसके सत्यापन के मलए उनकी आग कमवता मलखे में मज र ू , आमजवासी, दमलत, मपछड़े लोगों का को देख सकते हैं- गान है, सतप ड़ ु ा की छमवयां हैं । और हो क्यों न क्योंमक मेरी मेज़ पर इन्हीं रास्तों से ग ज ु रते हुए ही उनकी प्रगमतशील ्टमसे और मवचार बने, मजसने उनकी कमवता को एक बृहत्तर आधार मदया । अतः कमव की काव्य ्टमसे में अगर कुछ है तो वह बचपन के इसी ग ज ु ारे सच है जो द म ु नया के अनेक छोरों से ज ड़ ु जाती है ; जैसे मक इनकी मन ष्ट् ु य टकराते ह शब्द से शब्द एक मचंगारी उठती ह और कमवता में आग की तरह फै ल जाती ह आग नहीं तो कमवता नहीं 44 आग तड़प है जो पवार-सी पीर को मपघला- और सृमसे के बीच की एकता की पक्षधरता, जो एक बेहतर द म ु नया के बनाने का मवकल्प पेश करता है । कर हमारी म म ु क्त के मागा को पशस्त करती है । तभी तो द ष्ट् ु य त ं कुमार ने कहा है मक ‘‘मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही/ हो कहीं भी आग, लेमकन आग 43 वही Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. 44 http://kavitakosh.org/kk/ आग _ लीलाधर _/_ मंडलोई वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017