Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 318

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पररवतान मकया जा सकता है । यही कारि है मक जनसंख्या मवस्फोट , पयाावरि , प्रदूर्षि , पाररमस्थमतकीय असंतुलन , ऊज ा का प्रश्न , खाद्य सुरक्षा , युद्ध और शांमत जैसे गंभीर प्रश्नों पर न तो राष्ट्रीय सहममत है , न कोई साथाक कायाक्रम । जनता की भावनाएं गौर जरूरी मुद्दों पर भड़कायी जाती है पररिाम होता है मदशाहीन राजनीमत का मवस्तार ।” 13
वर्षा 1991 में नई आमथाक नीमत के लागू होने से राजनीमतक परर्टश्य भी प्रभामवत हुआ है । उदारीकरि , मनजीकरि और भूमंडलीकरि ने बाजार को शीर्षा मनयामक के रूप में ला खड़ा मकया है । सरकार अपने उत्तरदामयत्व से मवमुख हो रही है । रजनी कोठारी लमक्षत करते हैं मक - “ राज्य की भूममका में होते ह्ै्रास और नये प्रौद्योगीकीय दबाव में आमथाक गमतमवमधयों के बहुराष्ट्रीयकरि की इन दो प्रमक्रयाओं के साथ हम जनोन्मुखी राजनीमत के युग का पतन भी देख सकते हैं । आमथाक रूप से यह अराजनीमतककरि और ‘ राजनीमत की मगरती साख ’ का पररिाम है ।... यह गरीब तबके को हामशए पर फें के जाने का नतीजा है । भमवष्ट्य की तरफ बढ़ रही इस व्यवस्था को वंमचतों की कोई जरूरत नहीं है ।” 14 इस दौर की राजनीमत को पू ंजी और कॉरपोरेट घराने ही तय करने लगे हैं । इनका लक्ष्य अपना लाभ है , जनसामान्य का नहीं ।
फै क्टर ’ मकसी भूत की तरह मपछले छह साल से , हर बार चुनावों के समय नेताओंके मसर पर मंडराता रहता है । वे हेमलकॉप्टर पर चढ़े हुए हों या अपने राजकाज की उपलमब्धयों की सूची के साथ मकसी बौनर या कट आउट में दैत्याकार हाथ जोड़े मुस्कु रा रहे हों , ‘ मलंनदोह-फै क्टर ’ का भय उनके मसर पर सवार रहता था ।... ‘ मलंनदोह फै क्टर ’ ने भारतीय लोकतंत्र की लाज बचाकर उसे राजनीमतक वैधता मदलाई ।” 15 भ्रसेाचार , क्षेत्रवाद , जामतवाद , अपराध और काले धन से बजबजाती राजनीमत में तेज तर ार ईमानदार जन प्रमतबद्ध उच्च अमधकाररयों की भूममका अमत महत्त्वपूिा है । ऐसे संस्थाओं और अमधकाररयों की बदौलत ही सामान्य लोगों का लोकतंत्र में मवश्वास बरकरार है । साथ ही मीमडया की समक्रयता तथा अनेक घटनाक्रमों पर सवोच्च न्यायालय के कारगर हस्तक्षेप से ही लोकतंत्र की साख बनी और बची हुई है ।
िंदभक-िूची
1 . पटनायक , मकशन , तीसरी दुमनया का जनतंत्र ( लेख ), भारत का राजनीमतक संकट , सं . - राजमकशोर , वािी प्रकाशन , नई मदल्ली , संस्करि-1994 , पृष्ठ सं . - 152
इस दौर की राजनीमतक बेहद जमटल होती गई । इस जमटल राजनीमत के चक्रव्यूह में मघरा लोकतंत्र अभी पूिातः धराशायी नहीं हुआ है । लोकतंत्र में जनता की 2 . उदय प्रकाश , नयी सदी का पंचतंत्र , वािी आशा और आस्था अभी बनी-बची है । लोकतंत्र की प्रकाशन , नई मदल्ली , संस्करि 2008 , पृष्ठ सं . -32- मवश्वसनीयता को बचाने में चुनाव आयोग और 33 ईमानदार , प्रमतबद्ध चुनाव आयुक्त की भूममका सवाामधक महत्त्वपूिा है । टी . एन . शेर्षन , जे . एम . मलंनदोह
3 . नंदी , आशीर्ष , नयी राजनीमतक संस्कृ मत
जैसे चुनाव आयुक्तों की मुक्त प्रशंसा उदय प्रकाश ( लेख ), लोकतंत्र के सात अध्याय , सं . - अभय कु मार
करते हैं । उदय प्रकाश वर्षा 2004 के चुनाव पर मलंनदोह दुबे , वािी प्रकाशन , नई मदल्ली , 2005 , पृष्ठ सं . -193
फै क्टर को ही सबसे महत्त्वपूिा मानते हैं । “ ‘ मलंनदोह Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017