Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 316

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
अमनवाया हो गया ।” 7 संमवधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायती और स्थानीय मनकायों के चुनावों में अनुसूमचत जामतयों , अनुसूमचत जनजामतयों और मस्त्रयों के मलए आरक्षि का प्रावधान मकया गया । फलतः मनचले तबके के लोगों की व्यापक स्तर पर राजनीमतक भागीदारी , राजनीमतक सचेतनता और राजनीमतकरि इस दौर की महत्त्वपूिा उपलमब्ध है । हालांमक कई जगहों पर इसका मवडंबनात्मक स्वरूप भी मदखाई पड़ता है । मनचले तबके के लोगों का महज राजनीमतक इस्तेमाल मकया जाता है । ये प्रभुत्वशाली वगा के मुहरे भर होते हैं । उदय प्रकाश की कहानी ‘ और अंत में प्राथाना ’ का ढींगर गांव “ आमदवासी जनजामतयों के मलए सुरमक्षत संसदीय क्षेत्र । लेमकन चुनाव और राजनीमत के सारे मोहरे गौर-आमदवासी लोगों द्वारा ही संचामलत होते थे । भुलई साधो यहां के मनवाामचत सांसद थे , लेमकन इस आमदवासी सांसद के बारे में हर कोई जानता था मक वह मजले के मामफया मकं ग मत्रभुवन मसंह का नौकर है ।” 8 ऐसे जन प्रमतमनमध जनता और जनतंत्र के मकतने महत साधक हो सकें गे , इसे आसानी से समझा जा सकता है ।
राजनीमतक भ्रसेाचार और अपराधीकरि इस दौर की राजनीमत की तीसरी प्रमुख प्रवृमत्त है । प्रायः सभी राजनीमतक दलों में आंतररक लोकतंत्र का अभाव है । ये दल व्यमक्तवाद और पररवारवाद के ऊपर नहीं उठ पाते हैं । दलों के शीर्षा नेताओं के चारों तरफ दरबारी पररवेश सामान्य बात हो गई है । इस पररवेश में आगे बढ़ने के मलए कामबमलयत की बजाय नेता के प्रमत वफादारी या चाटुकाररता ज्यादा जरूरी है । दूसरी बात यह मक शायद ही कोई दल अपने आय-व्यय का लेखा जोखा पारदशी ढंग से सबके मलए प्रकामशत करता है । क्योंमक ये राजनीमतक दल प्रायः पू ंजीपमतयों से प्राप्त काले धन पर ही मनभार रहते हैं । इसीमलए भारतीय राजनीमत पर पू ंजीपमतयों का ही प्रभाव
सवाामधक है । ये पू ंजीपमत घराने अपने लाभ के मलए सरकारी नीमतयों को परोक्ष रूप से मनधााररत करते हैं । लगातार खचीली होती चुनाव प्रमक्रया जनतंत्र को मनरंतर भ्रसे बनाती जा रही है । प्रायः सभी दल चुनाव आयोग द्वारा मनधााररत खचा की सीमा और आचार संमहता को तोड़ते रहते हैं । राजनीमत भी एक व्यवसाय या धंधे का रूप लेती जा रही है । जनता और सरकार को अपने पक्ष में करने के मलए राजनेता पू ंजीपमतयों के अलावा अपरामधयों से भी संबंध बनाते हैं । मतदान के बाद बहुमत न ममलने की मस्थमत में सांसदों मवधायकों की खरीद फरोख्त मकसी भी दल या दलीय मोचों की सामान्य प्रवृमत्त हो गई है । इस पड़ाव पर कई बार भारतीय संमवधान , कानून और चुनाव आयोग भी लाचार से मदखते हैं । वर्षा 1996 के आम चुनाव के ठीक बाद ऐसी ही पररमस्थमत के मद्देनजर उदय प्रकाश ने 11 मई 1996 को राष्ट्रीय सहारा के एक कॉलम में मलखा- “ मकसी भी राजनीमतक दल को स्पसे बहुमत नहीं ममला है और सरकार बनाने के मलए संसदीय इमतहास का सबसे बड़ा पशु मेला या घोड़ा बाजार जल्दी ही हमारी आंखों के सामने होगा । यह वह मबंदु है जहां भारतीय मतदाता मसफा दशाक की तरह अपने मतदान से मनममात होने वाली संसद का मनमााि सत्ता के बाड़े के बाहर खड़ा होकर देखेंगे और मुख्य चुनाव आयुक्त टी . एन . शेर्षन की कोई भी हेकड़ी या कोई भी आतंक वहां काम नहीं आएगा । यह वह दौर है मजसमें नरमसंह राव , अटल मबहारी वाजपेयी , ज्योमत बसु , लालू यादव , वी . पी . मसंह या नारायि दत्त मतवारी जैसे राजनीमतक मदनगज कु छ समय के मलए इस महामंच के ग्रीन रूम में छु प गए हैं और जो अमभनेता संसदीय खरीद-फरोख्त के घोड़ा बाजार मंच पर अवतरमत है उनके नाम कु छ इस प्रकार हैं : अमर मसंह , जयंत मल्होत्रा , भजनलाल , प्रेम गुप्ता , मतहाड़वासी चंद्रास्वामी आमद इत्यामद । यानी राजधानी में काले
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017