Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | страница 311

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सूखी नदी के समान सूख जाता है । धूममल ने अपनी एक कमवता में मलखा है- “ मुझे पता है / स्त्री / देह के अंधेरे में / मबस्तर की / अराजकता है / स्त्री पू ँजी है / बीड़ी से लेकर / मबस्तर तक / मवज्ञापन में फै ली हुई ।” 27 उपयु ाक्त कमवता में धूममल ने पुरुर्ष समाज की नारी के प्रमत भोगवादी ्टमसे का मचत्रि मकया है , जहाँ पू ँजीपमत वगा अपनी उत्पाद्य वस्तुओं की मबक्री हेतु मवज्ञापनों में नारी के देह-प्रदशान का सहारा लेता है । धूममल की एक ओर कमवता ‘ उस औरत की बगल में लेटकर ’ से उनकी देहवादी ्टमसेकोि पुसे होती मदखाई देती है- “ उस औरत की बगल में लेटकर / मैंने महसूस मकया है मक घर / छोटी-छोटी सुमवधाओंकी लानत से / बना है ।” 28 कमव इस कमवता के माध्यम से लादी हुई गृहस्थ जीवन को इंमगत कर रहे हैं । हैं । वे यह भी कहते हैं मक , मानव में लादी हुई गृहस्थी जीवन के प्रमत उदासीनता का भाव मदखायी देना स्वाभामवक है । इस प्रकार धूममल ने अपनी कमवताओं में नारी को मदखाया है । अगर उनके काव्यों का सही मवश्लेर्षि मकया जाए तो यह लगता है मक , धूममल नारी को के वल देह नहीं मानते बमल्क उससे आगे और बहुत कु छ मानते हैं । वे मलखते हैं- “ औरत : आँचल है / जैसा मक लोग कहते हैं-स्नेह है , मकन्तु मुझे लगता है .../ इन दोनों से बढ़कर / और एक देह है / मेरी भुजाओं में कसी हुई / तुम मृत्यु की कामना कर रही हो / और मैं हूँ--मक इस रात के अँधेरे में / देखना चाहता हूँ .... धूप का / एक टुकड़ा तुम्हारे चेहरे पर ।” 29
में माँ और बेटी के रूप पर भी ज्यादा बल देते हैं । नारी के प्रमत उनका ्टमसेकोि कु छ इस प्रकार है- “ ररश्तों को सोचते हुए / आपस में प्यार से बोलते ,/ कहते मक ये मपता हैं / यह प्यारी माँ है , यह मेरी बेटी है / पत्नी को थोड़ा अलग / करते- तू मेरी / हम मबस्तर नहीं- मेरी / हमसफ़र है ।” 30 धूममल नारी के अदम्य साहस और देश प्रेम वाले रूप को अत्यमधक सम्मान की ्टमसे से देखते हैं । ऐसी नाररयों के प्रमत उनके मन में अपार श्रद्धा एवं प्रेम है । इसीमलए तो कमव धूममल ने अपनी कमवता का द्वार उनके मलए खोल मदया था । धूममल कहते हैं- “ मुममकन था यह भी मक अपने देशवामसयों की गरीबी से / साढ़े तीन हाथ अलग हटकर / एक लड़की अपने प्रेमी का मसर छाती पर रखकर / सो रहती देह के अँधेरे में / अपनी समझ और अपने सपनों के बीच / मैं उसे कु छ भी न कहता मसफा कमवता का दरवाजा उसके मलए / बंद रहता / लेमकन क्या समय भी उसे यू ँ ही छोड़ देता ।” 31 उपयु ाक्त उदाहरि से हमें एक बात स्पसे मदखाई देती है मक धूममल ने स्त्री को के वल देह ही नहीं माना है , बमल्क उससे आगे देश की स्वतंत्रता के मलए अपना बमलदान कर देने वाली एक वीर और साहसी नारी भी माना है ।
5 . भाषा पक्ष -
सामहत्य में भार्षा की भूममका अत्यंत महत्वपूिा है । पर जहाँ तक धूममल की भार्षाई चेतना के बारे में कहा जाता है , उनके काव्य में अश्लील शब्दों का प्रयोग अत्यमधक हुआ है । जैसे- “ जनता और जरायम पेशा / औरतों के बीच की / सरल रेखा को काट कर ।” 32 लेमकन सामहत्य में अगर कोई कमव इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर रहा है तो उसके मलए यह वमजात नहीं है क्योंमक मचत्रि में भी उसका एक लक्ष्य रहता है । और वह इन शब्दों के माध्यम से पाठकों को यह संदेश भेजता है मक समाज के ऐसे घृमित रूप को
धूममल की कु छ कमवताएँ ऐसी भी हैं मजनमें उनका स्त्री के प्रमत स्वच्छ एवं साफ-सुथरी ्टमसे का पता चलता है । जो लोग यह आरोप लगाते हैं मक धूममल के काव्य में नारी का मचत्रि के वल भोग की वस्तु के रूप में मकया गया है वे स्वयं देख लें मक धूममल ने नारी को मात्र भोनया न मानकर जीवन-साथी के रूप में स्वीकार करने की बात की है । वे नारी संबंधों
सामहत्य के माध्यम से देख कर उसमें कु छ सुधार का Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017