Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 310

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
तीसरा आदमी कौन है ?/ मेरे देश की संसद मौन है ।” 23 कै सा समय रहा होगा जब एक तरफ सत्ताधारी लोग रोटी के साथ खेलते थे वहीं दूसरी तरफ साधारि जन गरीबी के कारि पानी- पी-पी कर अपने भूखी पेट को समझाते थे । मकतनी भयावह जीवन है भूख की समस्या , मजसका स्वाद खुद धूममल भी चखे हुए थे । वे मलखते हैं- “ लेमकन एक जरुरत मंद चेहरे के अलावा / वह धूममल नहीं - - / एक डरा हुआ महंदु है / उसके बीबी है / बच्चे हैं / घर है / अपने महस्से का देश / ईश्वर की दी हुई गरीबी है / ( यह बीबी का तुक नहीं है ।)” 24 धूममल की एक और कमवता है ‘ प्रजातंत्र के मवरुद्ध ’। इस कमवता के माध्यम से धूममल ने यह बताने का प्रयास मकया है मक मकस तरह हमारे देश में भूख की समस्या मवद्यमान है । भूख की समस्या ‘ रमजान ’ भाई और ‘ रामनाथ ’ दोनों के मलए है । भूख का कोई धमा नहीं होता , इस उमक्त को अपनी कमवता में चररताथा करके मदखाया है । देश की जनसंख्या में मदन प्रमतमदन वृमद्ध होती जा रही है , इसके मजम्मेदार कौन हैं । उन मस्थमतयों का मचत्रि स्पसे रूप से देखा जा सकता है- “ पेट में धँसे छु रे के साथ भागती है अलारक्खी / सस्ते गल्ले की दुकान की बाहरी / दीवार से टकराती है / उसकी खून भरी मुठठी में मभचा हुआ / राशन काडा , हररत क्रामन्त के मवरुद्ध / उसकी टाँगों में आफत है / मौत के मसरे पर एक मजन्दगी / शुरू हो रही है / ए भाई रमजान ! ए रामनाथ !!/ पेट में छु रा मनकालने के पहले / उसकी टाँगों में फटती हुई आफत को / मनकालो / और उस आततायी की तलाश करो , हाय हाय / इस बच्चे के मपता इस औरत के पमत की तलाश करो / यहीं कहीं / हाँ-हाँ- यही कहीं होगा / मकसी बट्टू मुहावरे की आड़ में / खुदखुशी की रस्सी लटकाता हुआ / पेट से लड़ते-लड़ते मजसका हाथ अपने प्रजातंत्र पर उठ गया है ।” 25
4 . नारी के प्रसत निीन दृसिकोण -
धूममल के काव्य में नारी के अनेक रूप देखने को ममलते हैं । उनके काव्य में नारी माँ , पत्नी , लड़की , प्रेममका , पड़ोसन , खानाबदोश औरत , पागल औरत , मबमटया , वेश्या , रंडी आमद न जाने मकतने रूप में मचमत्रत की गई हैं । यौन मवकृ मतयाँ का विान उनके काव्य में बहुत अमधक हुआ है । धूममल ने अपने काव्य-संग्रह ‘ संसद से सड़क तक ’ की पहली कमवता में मलखते हैं- “ एक सम्पूिा स्त्री होने के पहले ही / गभााधान की मक्रया से गुजरते हुए / उसने जाना की प्यार / घनी आबादीवाली बमस्तयों में / मकान की तलाश है / लगातार बाररश में भीगते हुए / उसने जाना मक हर लड़की / तीसरे गभापात के बाद / धमाशाला हो जाती है ।” 26 यमद इस काव्यांश का हम मवश्लेर्षि करें तो हमें इससे धूममल के ‘ प्यार ’ सम्बन्धी ्टमसेकोि का पता चलता है उक्त काव्यांश का अथा है- ‘ मजस प्रकार से मकान मजंदगी की एक बुमनयादी आवश्यकता है । आज के समाज में प्यार पाना उतना ही कमठन है मजतना मक घनी आबादीवाले शहर में मकान की तलाश करना है । मबना घरवाले उस व्यमक्त के मलए घनी आबादी वाले शहर में मकान न ममलना एक बहुत बड़ी समस्या है । आज के समाज में प्यार तलाशने पर भी नहीं ममलता । इस प्यार को प्राप्त करने का अंत में पररिाम यह होता है मक प्रायः हर लड़की एक सम्पूिा स्त्री होने के पहले ही गभााधान और गभापात की मक्रया से उसे गुजरना पड़ता है , अमधकतर उन लड़मकयों को मजन्हें “ बाररश में भीगना पड़ता है ।” और उसे अंत में मालूम होता है मक वह जीवन की बुमनयादी आवश्यकता “ प्यार ” को तलाशते-तलाशते एक धमाशाला बन गयी है ।’ इस प्रकार धूममल ने यहाँ यौन संबंधों के एक कटु सत्य को मचमत्रत मकया है ।
मजस प्रकार मकान के मबना घर संसार नहीं चल सकता , उसी प्रकार प्यार के मबना मानव जीवन नहीं चल सकता और प्यार के मबना उसका जीवन
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017