Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 31

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 ‘‘दद . ् ..ऽ...ऽ...ऽ...दा..ऽ..ऽ” चम्पा की चीख स न ु हररया ने पलट कर देखा। पानी से भरी बाल्टी मलए चम्पा भागने की कोमशश कर रही है और एक गाय उसके पीछे लगी है। हररया और उसके साथ चल रह दो-तीन लोग फुती से चम्पा की ओर दौड़े। उन लोगों ने अपनी-अपनी लाठी के सहारे गाय को रोकने की कोमशश की मगर गाय प र ू ी ताकत से चम्पा की तरफ दौड़ी जा रही थी। कई मदनों की प्यासी गाय को चम्पा के हाथ में पानी भरी बाल्टी मदखाई दे रही थी। इसस पहले मक वे लोग चम्पा को गाय से बचा पाते, गाय न चम्पा को पटक मदया और जमीन पर फै ल गये पानी में म ह ँ ु मारने लगी। हररया ने आव देखा न ताव, प र ू ी ताकत से गाय पर लाठी जमा दी। भ ख ी-प्यासी गाय लाठी का ताकतवर वार सहन न कर सकी और तेजी से रंभा कर भागन की कोमशश में लड़खड़ा कर वहीं फै ले पानी में मगर पड़ी। हररया ने दौड़ कर चम्पा को उठाया और कुछ लोगों ने गाय की तरफ ध्यान मदया। ‘गइया मर गई’ स न ु घबरा कर हररया झ क ा और गाय पर हाथ फे रा मकन्तु सब बेकार। उसका एक वार गाय के प्राि ल च क ा था। वह भौंचक्का सा गाय के पास ही उकड़ ँ बैठा रहा। लोगों की भीड़ मृत गाय और हररया को घेरने लगी। ‘हररया ने गइया मार दई, पाप कर दओ, गऊ हत्या लगहै , महापाप हो गओ, हररया ने पाप कर दओ, हररया ने गइया मार दई’ का शोर उसके चारों ओर बढ़ता ही जा रहा था। “नई ऽ....ऽ....ऽ।” एक चीख के साथ हररया उठ बैठा। “का भओ, काये मचल्ला बैठे ? ” रामदेई ने एकदम उठकर प छ ा। हररया ने अपने आसपास देखा, वह तो अभी भी अपन घर पर ही है। मृत गाय, भीड़, चम्पा, पानी की बाल्टी, लाठी कुछ भी तो नहीं उसके पास। उफ्! सपना था, मकतना भयानक सपना। “लेओ पानी पी लेओ , लगत कोनऊ सपनो देख लओ त म ु ने।” रामदेई तब तक लोटे में पानी भर लायी। हररया ने पानी पीकर लोटा रामदेई को थमा मदया और स य ू ोदय की आशा में प र ू ब की तरफ देखने लगा। सप्तऋमर्ष मण्डल और अन्य तारों की मस्थमत जल्दी ही स य ू ोदय का स क े त दे रहे थे। गहरी सा स ं के साथ हररया लेट गया। रामदेई भी अपनी जगह पर आकर लेट गई। हररया का मदमाग अब अभी देखे सपने और पानी क इदा-मगदा म ड ं राने लगा. सपने में गाय की हत्या और वो भी पानी के मलए, कहीं ये मकसी बड़ी आपमत्त का स क े त तो नहीं. पानी अब समस्या बनता जा रहा है. नलों में पानी आना लगभग ब द ं है. आसपास क हैंडप प ं में भी पानी नीचे उतर च क ा है. क ँ ु ए भी स ख न लगे हैं. क्या उसे इस शहर को भी छोड़ना पड़ेगा? क्या उसे ये स्थान छोड़ना पड़ेगा? क्या अबकी बार पानी के मलए उसे मवस्थापन का ददा एक बार मफर सहना पड़ेगा? आमखर ये बसना, उजड़ना उसके साथ कब तक होता रहेगा? शहर के सौन्दयीकरि ने मच्छर चौराहे के मकनारे की अस्थायी रहाइश को हटाया तो वे सब शहर में अलग-अलग महस्सों में बस गए. मकसी के महस्से में बस स्टैंड आया तो मकसी के महस्से म अम्बेडकर चौराहा. मकसी ने स्टेशन को अपना मनवास बनाया तो मकसी ने मोक्षधाम के आसपास रहना पसंद Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई -सितंबर 2017 िासहसययक सिमिक: कहानी पानी भर सज़ द ं गी कुमारेन्द्द्र सकिोरी महेंद्र