Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 307

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मकान कमवता के जररये धूममल ने टूटते हुए स्वप्नों , गरीबी , घुटन का जीवंत मचत्रि मकया है । धूममल अक्सर ऐसे मकानों की बात करते हैं मजनकी छतें कबूतर की बीट से मैली हो गयी है , मजनके आँगन में धूप कभी नहीं जाती , मजनके शौचालयों में खासी मकवाड़ों की काम करती है । जहाँ बूढ़े और जवान लड़मकयाँ खाना खाने के बाद अंधे हो जाते हैं , बच्चे अंगूठा चूसते हैं और नौजवान लोग रोजगार के मलए दफ्तरों का चक्कर काटते हैं । ऐसे मकानों की आड़ में ऐसे लोग भी रहते हैं जो दूसरों को नमक की ढेले की तरह गला देते हैं । मकान जब कमरा बनता है यानी गरीब आदमी जब थोड़ा ऊपर उठने की कोमशश करता है तब उसकी हत्या कर दी जाती है ।
धूममल के बारे में यह माना जाता है मक , जब राजकमल चौधरी की मृत्यु हुई तब धूममल ने जीवन की अनेक मवसंगमतयों , मवड़म्बनाओंको भार्षा के नये मुहावरे में ढालने का प्रयास मकया । कमवयों और कमवताओं पर भी उन्होंने मवमशा मकया है- “ मकान / मारे गये आदमी के नाम पर / छतों की सामज़श है जहाँ रात / ररश्तों की आड़ में / पशुओं को पालतू बनाती है ।” 12
2.5 . ‘ पिकथा ’ -
पटकथा धूममल की कमवताओं में सबसे लंबी कमवता है । ‘ संसद से सड़क तक ’ की यह अंमतम कमवता लगभग 30 पृष्ठों में फै ली हुई है । सन् 47 से लेकर 70-71 तक का समय भारतीय राजनीमत के मलए , सामामजक जीवन के मलए बहुत दु : ख-पूिा समय था । या यू ँ कहे तो यह दौर नैमतक मूल्यों का ह्रास का समय था । इस कमवता को पढ़कर लगता है मक , यह मुमक्तबोध की कमवता का मवस्तार है । जैसे- “ जब मैं बाहर आया / मेरे हाथों में / एक कमवता थी और मदमाग में / आँतों का एक्स-रे ।” 13
‘ मैं ’ जो काव्य नायक है , वह बाहर आता है जहाँ हवा है , धूप है , घास है लेमकन उसे वास्तमवक सुकू न आजादी से ममलती है । कमवता के एक बड़े भाग में कमव का उल्लास और उत्साह मदखाई पड़ता है । कमवता में इस व्यमक्तगत उल्लास के साथ आजादी के बाद राजनीमत में बनावटी उल्लास देखने लायक है । आगे चलकर कमव का भ्रम टूट जाता है । अन्य देशवामसयों की तरह स्वतंत्रता को लेकर कमव ने जो सपने संजोये थे वे एक-एक कर टूटने लगता है । काव्य नायक यह महसूस करता है मक जनता त्याग , संस्कृ मत और मनुष्ट्यता यह सारे भारी भरकम शब्द मात्र हैं । धीरे-धीरे कमवता के ‘ मैं ’ को यह समझ में आ जाती है मक कथनी और करनी में मकतना बड़ा फ़ासला होता है । तभी तो धूममल कहते हैं- “ मैं इंतजार करता रहा .../ इंतजार करता रहा .../ इंतजार करता रहा .../ जनतंत्र , त्याग , स्वतंत्रता .../ संस्कृ मत , शांमत , मनुष्ट्यता .../ ये सारे शब्द थे / सुनहरे वादे थे / खुशफहम इरादे थे ।” 14
धूममल काव्य नायक द्वारा उस युद्ध की ओर इशारा कर रहे हैं जो नये-नये स्वतंत्र हुए देश को एक भयानक युद्ध की ओर ढके ल रहा था । मबना काम मकये लाभ पाने की तकनीक का मवकास हो चुका था । मजसे देख काव्य नायक का मोहभंग हो जाता है- “ मैंने अचरज से देखा मक दुमनया का / सबसे बड़ा बौद्ध-मठ / बारूद का सबसे बड़ा गोदाम है ।” 15
कमवता के माफा त धूममल यहाँ कहना चाहते हैं मक , जनता ने यह कभी नहीं सोचा था की नेता उसके आस-पास एक अंधा कु आँ का मनमााि करते जा रहे हैं और उसके मनगाहों की रोशनी छीनती जा रही है जो उसे परावलम्बी और पंगु बनाती जा रही है- “ गोदाम अनाज से भरे पड़े थे और लोग / भूखों मर रहे थे ... सहानुभूमत और प्यार / अब ऐसा छलावा है मजसके जररये / एक आदमी दूसरे को , अके ले / अंधेरे
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017