Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 306

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
आदमी की समख्सयत और स्वामभमान को तलाशने की चेसेा करते हैं । धूममल मोचीराम के द्वारा यह कहलवाते हैं- “ और बाबूजी !/ असल बात तो यह है मक मजंदा रहने के पीछे / अगर सही तका नहीं है / तो रामनामी बेचकर या रमण्डयों की / दलाली करके रोज़ी कमाने में कोई फका नहीं है ।” 8
इस तरह हम देखते हैं मक , धूममल साधारि आदममयों के पास मसफा दया और करूिा लेकर नहीं उपमस्थत होते बमल्क उनके रोजमराा के संघर्षा का साक्षी बनते हुए उनकी मवचार ्टमसे एवं बुमनयादी लोगों के प्रमत उनकी भावनात्मक मक्रया-प्रमतमक्रया को भी अंमकत करते हैं । कमवता की अंमतम पंमक्तयों में वे यह मदखाते हैं मक , गरीब की चीख और चुप्पती दोनों अपने-अपने जगह पर सहीं हैं- “ जबमक मैं जानता हूँ मक ‘ इनकार से भरी हुई एक चीख ’/ और ‘ एक समझदार चुप ’/ दोनों का मतलब एक है- / भमवष्ट्य गढ़ने में , ‘ चुप ’ और ‘ चीख ’/ अपनी-अपनी जगह एक ही मकस्म से / अपना-अपना फजा अदा करते हैं ।” 9 इस कमवता में ‘ धूममल ’ ने अपनी प्रगमतशील मचंतन का एक सशक्त उदाहरि मदया है । मजसमें उन्होंने आम आदमी के मवसंगमतयों का एवं दयनीय जीवन का यथाथा मचत्रि प्रस्तुत मकया है ।
2.3 ‘ प्रौढ़ सिक्षा ’ -
धूममल इस कमवता में जनशमक्त की महत्ता को प्रमतपामदत करते हुए कहते हैं मक , कृ र्षक जो सही मायनों में पृथ्वी-पुत्र है , जो संसार का अन्नदाता है , ये सब ऊँ ची-ऊँ ची संज्ञाएँ उसे ठगने के मलए बनायी गयी है । असमलयत में उसकी अमशक्षा और मनरक्षरता उसे शोर्षकों के गलत इरादों से उसे दूर अथवा अपररमचत रखती है । भारत का इतना बड़ा महस्सा या वगा स्वयं आधी पेट रह कर , दुमनया को ढकना चाहता है वह अपना हस्ताक्षर करने में भी असक्षम एवं अयोनय है ।
आजाद भारत के मलए इससे ज्यादा शरममंदगी और क्या हो सकती है । भार्षा जो प्रमतवाद की प्रबल क्षमता रखती है , मनरक्षर के मलए वह कै से व्यथा हो जाती है उसे धूममल ‘ प्रौढ़ मशक्षा ’ कमवता के माफा त कु छ यू बताते हैं- “ कल मैंने कहा था मक वह दुमनया / मजसे ढकने के मलए तुम नंगे हो रहे थे / उसी मदन उघर गयी थी / मजस मदन हर भार्षा / तुम्हारे अंगूठा-मनशान की / स्याही में डुबकर मर गयी थी ।” 10
प्रकृ मत के साथ पूरे तरह घुले ममले , अपनी खेती और खमलहान के प्रमत पूिा मनष्ठा के साथ जुड़े लोग यद्यमप आगे आने वाले खतरों के प्रमत मकं मचत आगाह हो रहे हैं । हर बात के समथान में हाथ उठाकर हाँ-हाँ करना मकसानों को महत में नहीं है , जमीनी सच्चाई से जुड़कर साक्षर होकर दुमनया को बदलने का संकल्प लेने का समय आ गया है । तभी तो धूममल ललकारते हुए कहते हैं- “ तनो / अकड़ो / अमरबेली की तरह मत मजयो / जड़ पकड़ो / बदलो-अपने- आपको बदलो / यह दुमनया बदल रही है / और यह रात है , मसफा रात / इसका स्वागत करो / यह तुम्हें / शब्दों के नये पररचय की ओर लेकर चल रही है ।” 11
इस कमवता में धूममल ने मशक्षा के महत्व को उजागर मकया है । यह बताया है मक देश के साधारि आदमी की दयनीय दशा का कारि उसकी अज्ञानता है । इस जनतंत्र देश की सबसे अमधक आबादी गरीब , मकसान और मजदूर आदमी ही अमधक मपसता है क्योंमक चालाक-चररत्रहीन नेता जो जनतंत्र को चलाते हैं , वे अपने नर-भक्षी शोर्षि नीमत का मशकार इन गरीब मजदूर और मकसानों को बनाते हैं । ये स्वाथी नेता और सुमवधापरस्त लोग इन अनपढ़ और साधारि लोगों का अनेक प्रकार से शोर्षि करते हैं ।
2.4 . ‘ मकान ’ -
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017