Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 304

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बने हुए उन बेकसूर आदममयों का हलफनामा है जो शब्दों के अदालत में खड़े होकर खाता है । अत : भार्षा में कमवता वह अमभव्यमक्त है जो आदमी होने की तमीज़ है ।’ वे मलखते हैं- “ कमवता क्या है ?/ कोई पहनावा है ?/ कु ताा-पाजामा है ?/ ना , भाई , ना !/ कमवता / शब्दों की अदालत में / मुजरीम के कटघरे में खड़े / बेकसूर आदमी का हलफनामा है ।/ क्या यह व्यमक्तत्व बनाने की- / चररत्र चमकाने की- / खाने- कमाने की चीज है ?/ ना , भाई , ना !/ कमवता / भार्षा में / आदमी होने की तमीज है ।” 2
यहाँ कमव का अमभप्राय आदमी को सहजता से सामहत्य को जोड़ना है । वे तो एक कमवता को बौखलाये हुए आदमी का संमक्षप्त एकालाप मानते हैं । उनका मानना है मक कमवता हमें एक ऐसी समझ और अमभव्यमक्त देती है , मजससे ‘ आम ’ को आम और ‘ चाकू ’ को चाकू समझा जा सके । वे कमवताओं के माध्यम से टुटते हुए संबंधों और मनरंतर खोती हुई मनुष्ट्यता के कारिों की पड़ताल करती हैं । आमथाक अभाव और समाज में फै ली असमानता को धूममल पहचानते हैं । उनका मानना है मक , वे अपनी कमवता के माध्यम से ही संघर्षाशील जन के चररत्र को भ्रसे होने से बचा सकते हैं । ऐसे देखा जाए तो धूममल की कमवता मवचारों की और आंदोलनों की कमवता है । वे साठोत्तरी पीढ़ी के महत्वपूिा कमव हैं । उनकी कमवताओं को पढ़कर पाठक आंदोमलत हुए मबना नहीं रह सकते । उनकी कमवताओं का पररवेश हमारा देखा-जाना हुआ पररमचत पररवेश है । उनकी कमवताओं के कें द्र में ‘ आदमी ’ है । यह आदमी कई मुद्राओं वाला आदमी है । वह कहीं सीधा-सरल , शोमर्षत-पीमड़त आदमी है , कहीं मुखौटे को ओढ़े हुए आदमी है , कहीं हाथ फै ला कर भीख माँगता आदमी है और कहीं हाथ उठा कर मुिी बांधा हुआ आदमी है । धूममल के तीनों संग्रहों की कमवताएँ इस बात का
प्रमाि है , वे आदमी के अमश्लयत को पाठक के सामने रखना चाहते थे । ‘ संसद से सड़क तक ’ में संकमलत जो-जो कमवताएँ हैं वे आज भी इस ्टमसे से महत्वपूिा हैं । आगे ‘ संसद से सड़क तक ’ में संकमलत कमवताओं की चचाा प्रस्तुत की जा रही है ।
2 . ‘ िंिद िे िड़क तक ’ -
धूममल का यह काव्य-संग्रह स्वंय उन्हीं के द्वारा चयमनत शीर्षाक से उनके सामने प्रकामशत हुआ था । मजसमें उन्होंने शव्दों का जान-बूझ कर जीवन के ननन यथाथा को प्रत्यक्ष रूप से उभारा । संग्रह में संगृमहत सभी कमवताएँ मभन्न-मभन्न पहचान मलए अपनी- अपनी भूममका बनाती है , लेमकन कु छ कमवताएँ ऐसी हैं मजनके कारि ‘ संसद से सड़क तक ’ संग्रह आज भी जानी जाती है । पाठक आज भी धूममल के ‘ मोचीराम ’ को नहीं भुले ।
2.1 . ‘ बीि िाल बाद ’ की कमवता में ‘ धूममल ’ झंडा को प्रतीक बनाकर सवाल करते हैं- “ क्या आजादी मसफा तीन थके हुए रंगों का नाम है ,/ मजन्हें एक पमहया ढोता है / या इसका कोई खास मतलब होता है ?” 3 स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भारतीय जनमानस में एक तरह की बेचैनी पैदा हुई नजर आती है । राजनीमत में भाई-भतीजावाद , पररवारवाद और भ्रसेाचार बढ़ने के साथ-साथ सामान्य जन के ममस्तष्ट्क में जो आमथाक खुशहाली , सुखमय जीवन एवं अपनी महत्ता के सपने पल रहे थे वे टूटने लगे थे । प्रजातंत्रीय व्यवस्था में घुसे अप्रजातंत्रीय तत्वों के पररिाम स्वरूप शोमर्षत , उपेमक्षत जनता की मोहभंग मानमसकता के साथ-साथ हमें तथाकमथत राजनीमत में फै ली भ्रसेाचार की छमव भी साफ नजर आती है । यह कमवता राजनैमतक ढोंग , छल , पाखंड और उसकी मानव-मवरोधी हरकतों पर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017