Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 303

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
िुदामा पाण्डेय ‘ धूसमल ’ के काव्य िृजन की िाहसिकता
सििाल कु मार सिंह
महंदी सामहत्य के क्षेत्र में सन् 1960 के बाद मजस स्वस्थ और जनकें द्रीय काव्यधारा का मवकास हुआ है , उसमें धूममल का योगदान प्रवताक एवं मनदेशक के रुप में रहा है । क्योंमक साठोत्तरी काल में ‘ धूममल ’ ही ऐसे व्यमक्तत्व से संपन्न थे , मजसका प्रभाव इस युग के प्राय : सभी कमवयों पर मकसी न मकसी रूप में पाया जाता है । तभी तो काशीनाथ मसंह ने मलखा है- “ धूममल के आने तक आलोचना का मु ँह कहानी की ओर था । वह आया और आलोचना का मु ँह कमवता की ओर कर मदया । अके ले आलोचना का ही नहीं , कमव भी घूम गये । धूममल ने अकमवता , भूखी कमवता , श्मशानी कमवता , दैमनक कमवता आमद की लालसाओंको पटरा कर मदया और मूछों पर गुरो देता रहा - उस पट् ठे की तरह जो अखाड़े में चुनौती देते हुए घुम रहा हो मक जो चाहे आये हाथ-ममलाये ।” 1
धूममल के अब तक तीन काव्य-संग्रह प्रकामशत हुए हैं , जो कु छ इस प्रकार है -
1 . ‘ िंिद िे िड़क तक ’ 2 . ‘ कल िुनना मुझे ’ 3 . ‘ िुदामा पाण्डेय का प्रजातंि ’
इनका पहला काव्य-संग्रह ‘ संसद से सड़क तक ’ 1972 में छपा जो काफी चमचात हुआ । यह आठवें दशक की श्रेष्ठतम काव्य कृ मत है । ‘ संसद से सड़क तक ’ धूममल की पहली रचना होते हुए भी अपनी प्रौढ़ता के कारि महंदी काव्य की मवमशसे उपलमब्ध है । ऐसा कहा जाता है मक सन् 1970 के बाद ‘ महंदी
कमवता के क्षेत्र में अपनी तल्ख आवाज एवं नये मुहावरे के साथ जो धूमके तु की तरह उभरा वह ‘ धूममल ’ कहलाया ।’ धूममल को अपनी इन रचनाओं के मलए बहुत सारे सम्मानों से भी नवाज़ा गया । अतः आगे हम उनकी काव्य ्टमसे की चच ा करेंगे ।
1 . कसि ‘ धूसमल ’ की काव्य-दृसि -
कमव धूममल का काव्य-संसार मजन सामामजक , राजनीमतक आमद धारिाओंसे मनममात है , उसकी जाँच-पड़ताल मकये मबना न तो धूममल की कमवताओं का सही मूल्यांकन ही कर सकते हैं न ही इस बात का पता लगा सकते हैं मक उन्होंने कहाँ तक तथा मकस गहराई से अपनी रचनाओं में सामामजक दामयत्व का मनव ाह मकया है , मजनका वे अपनी कमवता संबंधी धारिाओं में दम भरते हैं ।
कमव ‘ धूममल ’ एक ऐसे व्यमक्त हैं , मजन्होंने अपने समय की समकालीन समस्याओं से सीधे मुठभेड़ करते हैं और अपने आक्रोश एवं मवद्रोह को व्यंनयात्मक लहजे में उद्वेमलत करने वाली पंमक्तयों के माध्यम से व्यक्त करने का दुस्साहस करते हैं । इसमलए धूममल की समस्त कमवताएँ इस बात का साक्ष्य है मक , वे कमवताओं को अन्याय और शोर्षि के मवरोध का महत्वपूिा अस्त्र मानते हैं और यही कारि रहा है मक , धूममल ने कमवता को समकालीन संदभा में पुन : पररभामर्षत मकया तथा कमवता के पारंपाररक मुहावरे को तोड़ा और ऐसी अनगढ़ और वमजात कही जानी वाली शब्दावमलयों का प्रयोग मकया है जो अपनी समय के मवसंगती पर तीखा प्रहार करती है । अपनी कमवता संबंधी अवधारिाओं को स्पसे करते हुए उन्होंने कई कमवताओंकी रचना की है । उनका मानना है मक , एक सही कमवता पहले एक साथाक वक्तव्य होती है । वे यह भी मानते हैं मक , आज कमवता मकसी के मन को बहलाने का साधन नहीं है वह तो ‘ मुज़रीम
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017