Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
ISSN: 2454-2725
मनहत् थे , मकसी स् त्री या घायल बैरी पर नहीं करत
बमल्क इसे अपने उस ल
ों के मखलाफ मानते हैं।
वे जहां नफरत को समझने की नजर रखते ह
वहीं वे प् यार की भार्षा भी भली-भांमत समझते हैं। कुल
ममलाकर कहा जा सकता है मक प्रेमचंद ने मानवेतर
जीवों की मनोदशा, उनके द्व द्व ं -अ त ं द्विंद्व और उनकी
स क्ष् ू म भावनाओ ं का मचत्रि करने में कोई कसर नहीं
छोड़ी बमल्क वे इस क्षेत्र में भी उतने ही मसद्धहस् त
सामबत होते हैं मजतना मक अन् य मवर्षयों के मचत्रि में।
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017