Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 278

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बैलों की कथा ’ में यह प्रेम ओर संवेदना इतना मनखर गया है और प्रखर हो गया है मक मानव का पशु से प्रेम तो मदखता ही है , परंतु पशु का मानव के प्रेम के प्रमत जो प्रमतमक्रया अैर उनकी खुद की क् या संवेदनाएं हैं , उसका स् पसे मचत्रि ममलता है । यहां प्रेमचंद दो बैलों के हृदय में पैठकर यू ँ बात करते हैं मानो वे स् वयं उनकी बोली में बात कर रहे हैं – उनकी भार्षा समझ सकते हैं – उनके मनोभाव को अच् छी तरह समझ और व् यक् त कर सकते हैं ।
प्रेमचंद को अपने इस ग्राम् य जीवन से कोई हीनता का बोध नहीं होता , अमपतु इस सादे जीवन को वे जमटल जीवन-शैली जीने वाले और स् वाथा प्रेममयों के मलए दुबोध मानते हैं । उन पर तरस खाते हुए प्रेमचंद कहते हैं –‘’ स् वाथा , सेवी , माया के फं दों में फँ से हुए मनुष्ट्यों को यह शांमत , यह सुख , यह आनंद , यह आत् मोल् लास कहां नसीब ?’’ प्रेमचंद के संपूिा सामहत् य का उद्देश् य इसी रामराज् य की स् थापना है , जहां न कोई छल है , न कपट है , जहां द्घेर्ष और ईष्ट्याा का साम्राज् य नहीं , धोखा और झूठ जहां मकसी को आता नहीं , जहां बैर-भाव दूसरी दुमनया के समझे जाते हैं , धन मसफा आवश् यकताओं को पूरा करने का माध् यम है और भोग-मवलास के नाम पर लोग पेड़ों की ठंडी छांव तले चैन से पशुओं के साथ खेलते हैं , मीठे बेर खाते हैं । जहां कोई बड़ा या छोटा नहीं है , सभी अपना काम खुद करते हैं और प्रेम का , सत् य का , स् नेह का साम्राज् य चारों ओर छाया हुआ है । जहां अमभमान , अहंकार और शासन नहीं अमपतु नम्रता , सौजन् य और सेवा भाव का स् थान है ।
रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था । दोनों आमने- सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भार्षा में मवचार-मवमनमय करते थे । एक-दूसरे के मन की बात कै से समझ जाता था , हम नहीं कह सकते । अवश् य ही उनमें कोई ऐसी गुप् त शमक्त थी , मजससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्ट्य वंमचत है । दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सू ंघकर अपना प्रेम प्रकट करते , कभी-कभी दोनों सींग भी ममला मलया करते थे – मवग्रह के नाते से नहीं , के वल मवनोद के भाव से , आत् मीयता के भाव से , जैसे दोस् तों में घमनष्ठता होते ही धौल-धप् पा होने लगता है । इसके मबना दोस् ती कु छ फु सफु सी , हल् की-सी रहती है , मजस पर ज् यादा मवश् वास नहीं मकया जा सकता । मजस वक् त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत मदए जाते और गरदन महला-महलाकर चलते , उस वक् त हर एक की यही चेसेा रहती थी मक ज् यादा-से-ज् यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे । मदनभर के बाद दोपहर या संध् या को दोनों खुलते , तो एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान ममटा मलया करते । नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते , साथ नांद में मु ंह डालते और साथ ही बैठते थे । एक मु ंह हटा लेता , तो दूसरा भी हटा लेता था ।’’
इन बैलों के माध् यम से प्रेमचंद ने न मसफा उनकी संवेदनआों का प्रदशान मकया है बमल्क यह भी मदखाया है मक श्रेष्ठतम प्रािी मानव भी अपने मसद्धांतों में मडग जाते हैं , पर पशु अपनी अंमतम सांस तक लड़ते हैं , अपने मसद्धांतों की रक्षा करते हुए ।
हीरा-मोती न मसफा अपनी रक्षा करते हैं
प्रेमचंद दोनों बौलों के आपसी ररश् ते , उनकी
बमल्क संकट काल में वे खुद की जान खतरे में
आपसी समझ और प्रेम तथा भाईचारा का विान करते
डालकर बाकी सब जानवरों को आजादी मदलवाते हैं
हुए मलखते हैं –‘’ झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे
पर एक-दूसरे को छोड़कर नहीं भागते । सांड़ से लड़ाई
हीरा और मोती । दोनों पछाई ंजामत के थे – देखने में
भी वे ममलकर ही लड़ते हैं और अंतत : जीतते भी हैं
सु
ंदर , काम में चौकस , डील में ऊं चे , बहुत मदनों साथ
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
परंतु कभी भी अपनी शमक्त का इस् तेमाल मकसी
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017