Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बैलों की कथा ’ में यह प्रेम ओर संवेदना इतना मनखर गया है और प्रखर हो गया है मक मानव का पशु से प्रेम तो मदखता ही है , परंतु पशु का मानव के प्रेम के प्रमत जो प्रमतमक्रया अैर उनकी खुद की क् या संवेदनाएं हैं , उसका स् पसे मचत्रि ममलता है । यहां प्रेमचंद दो बैलों के हृदय में पैठकर यू ँ बात करते हैं मानो वे स् वयं उनकी बोली में बात कर रहे हैं – उनकी भार्षा समझ सकते हैं – उनके मनोभाव को अच् छी तरह समझ और व् यक् त कर सकते हैं ।
प्रेमचंद को अपने इस ग्राम् य जीवन से कोई हीनता का बोध नहीं होता , अमपतु इस सादे जीवन को वे जमटल जीवन-शैली जीने वाले और स् वाथा प्रेममयों के मलए दुबोध मानते हैं । उन पर तरस खाते हुए प्रेमचंद कहते हैं –‘’ स् वाथा , सेवी , माया के फं दों में फँ से हुए मनुष्ट्यों को यह शांमत , यह सुख , यह आनंद , यह आत् मोल् लास कहां नसीब ?’’ प्रेमचंद के संपूिा सामहत् य का उद्देश् य इसी रामराज् य की स् थापना है , जहां न कोई छल है , न कपट है , जहां द्घेर्ष और ईष्ट्याा का साम्राज् य नहीं , धोखा और झूठ जहां मकसी को आता नहीं , जहां बैर-भाव दूसरी दुमनया के समझे जाते हैं , धन मसफा आवश् यकताओं को पूरा करने का माध् यम है और भोग-मवलास के नाम पर लोग पेड़ों की ठंडी छांव तले चैन से पशुओं के साथ खेलते हैं , मीठे बेर खाते हैं । जहां कोई बड़ा या छोटा नहीं है , सभी अपना काम खुद करते हैं और प्रेम का , सत् य का , स् नेह का साम्राज् य चारों ओर छाया हुआ है । जहां अमभमान , अहंकार और शासन नहीं अमपतु नम्रता , सौजन् य और सेवा भाव का स् थान है ।
रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था । दोनों आमने- सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भार्षा में मवचार-मवमनमय करते थे । एक-दूसरे के मन की बात कै से समझ जाता था , हम नहीं कह सकते । अवश् य ही उनमें कोई ऐसी गुप् त शमक्त थी , मजससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्ट्य वंमचत है । दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सू ंघकर अपना प्रेम प्रकट करते , कभी-कभी दोनों सींग भी ममला मलया करते थे – मवग्रह के नाते से नहीं , के वल मवनोद के भाव से , आत् मीयता के भाव से , जैसे दोस् तों में घमनष्ठता होते ही धौल-धप् पा होने लगता है । इसके मबना दोस् ती कु छ फु सफु सी , हल् की-सी रहती है , मजस पर ज् यादा मवश् वास नहीं मकया जा सकता । मजस वक् त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत मदए जाते और गरदन महला-महलाकर चलते , उस वक् त हर एक की यही चेसेा रहती थी मक ज् यादा-से-ज् यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे । मदनभर के बाद दोपहर या संध् या को दोनों खुलते , तो एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान ममटा मलया करते । नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते , साथ नांद में मु ंह डालते और साथ ही बैठते थे । एक मु ंह हटा लेता , तो दूसरा भी हटा लेता था ।’’
इन बैलों के माध् यम से प्रेमचंद ने न मसफा उनकी संवेदनआों का प्रदशान मकया है बमल्क यह भी मदखाया है मक श्रेष्ठतम प्रािी मानव भी अपने मसद्धांतों में मडग जाते हैं , पर पशु अपनी अंमतम सांस तक लड़ते हैं , अपने मसद्धांतों की रक्षा करते हुए ।
हीरा-मोती न मसफा अपनी रक्षा करते हैं |
प्रेमचंद दोनों बौलों के आपसी ररश् ते , उनकी |
बमल्क संकट काल में वे खुद की जान खतरे में |
आपसी समझ और प्रेम तथा भाईचारा का विान करते |
डालकर बाकी सब जानवरों को आजादी मदलवाते हैं |
हुए मलखते हैं –‘’ झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे |
पर एक-दूसरे को छोड़कर नहीं भागते । सांड़ से लड़ाई |
हीरा और मोती । दोनों पछाई ंजामत के थे – देखने में |
भी वे ममलकर ही लड़ते हैं और अंतत : जीतते भी हैं |
सु
ंदर , काम में चौकस , डील में ऊं चे , बहुत मदनों साथ
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
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परंतु कभी भी अपनी शमक्त का इस् तेमाल मकसी
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017
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