Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
जमीन का टुकड़ा भी इनके प् यार का, इनके ममत् वप ि ू
स् नेह का अमधकारी हो जाता है। उसके मबना ये अपन
जीवन की कल् पना भी नहीं कर सकते। अमीरों में यह
संव द े ना नहीं क् योंमक ये संव द े नहीन होते हैं। गरीब मजन
वस् त ओ
ं का उपयेाग करते हैं उसे वे अपना खास
समझते हैं , मसफा भोग के मलए नहीं बमल्क उसके द ख
,
उसके सुख को वे अपना लेते हैं मकंतु अमीर यमद
मकसी वस् तु का उपयोग करते हैं तो मसफा तब तक जब
तक उसकी जरूरत हो, आवश् यकता प र ू ी हो जाने क
बाद उन् हें उस चीज को फें कने में जरा भी देर नहीं
लगती – चाहे वह वस् तु हो, चाहे वह कोई जानवर हो,
या कोई इन् सान या ररश् ता ही क् यों न हो। मगरधारी अपन
खेतों के बारे में उसी प्रकार मचंता करता है जैसे वह
अपने बेटों की और अपने पररवार की मच त ं ा करता है।
मगरधारी के अपनी जमीन के प्रमत उसके प्रेम का विान
करते हुए प्रेमच द ं कहते हैं –‘‘ये खेत मगरधारी क
जीवन के अ श
भ म ू म
हो गए थे। उनकी एक-एक अ ग ं ल
उसके रक् त से रंगी हुई थी। उनका एक-एक परमाि
उसके पसीने से तर हो गया था। उनके नाम उ सकी
मजह्वा पर