Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 277

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका जमीन का टुकड़ा भी इनके प् यार का, इनके ममत् वप ि ू स् नेह का अमधकारी हो जाता है। उसके मबना ये अपन जीवन की कल् पना भी नहीं कर सकते। अमीरों में यह संव द े ना नहीं क् योंमक ये संव द े नहीन होते हैं। गरीब मजन वस् त ओ ं का उपयेाग करते हैं उसे वे अपना खास समझते हैं , मसफा भोग के मलए नहीं बमल्क उसके द ख , उसके सुख को वे अपना लेते हैं मकंतु अमीर यमद मकसी वस् तु का उपयोग करते हैं तो मसफा तब तक जब तक उसकी जरूरत हो, आवश् यकता प र ू ी हो जाने क बाद उन् हें उस चीज को फें कने में जरा भी देर नहीं लगती – चाहे वह वस् तु हो, चाहे वह कोई जानवर हो, या कोई इन् सान या ररश् ता ही क् यों न हो। मगरधारी अपन खेतों के बारे में उसी प्रकार मचंता करता है जैसे वह अपने बेटों की और अपने पररवार की मच त ं ा करता है। मगरधारी के अपनी जमीन के प्रमत उसके प्रेम का विान करते हुए प्रेमच द ं कहते हैं –‘‘ये खेत मगरधारी क जीवन के अ श भ म ू म हो गए थे। उनकी एक-एक अ ग ं ल उसके रक् त से रंगी हुई थी। उनका एक-एक परमाि उसके पसीने से तर हो गया था। उनके नाम उ सकी मजह्वा पर