Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 275

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
जाता । यहां गरीब , मोची , पासी , चमार , धोबी , मजदूर , मकसान , खेमतहर , मभखारी हैं तो यहां जमींदार , लेखक , संपादक , मवद्वान , शास् त्री और पंमडत भी हैं । यहां कायर , नीच , लालची , स् वाथी और कं जूस हैं तो यहां दयालु , भावुक , उदार , परोपकारी और दानी भी हैं । इन पात्रों की प्रासंमगकता आज लुप् त नहीं हुई है । आज भी इन पात्रों को हम अपने आस-पास देखते हैं । प्रेमचंद के ये पात्र भले ही अपनी कथा में मसफा अपने जैसा एक है , मकं तु वह अपने पूरे वगा का प्रमतमनमध भी बन जाता है क् योंमक प्रेमचंद उसके माध् यम से उस पूरे समाज को , समाज के उस वगा को और उस वगा के प्रत् येक अंग को व् यक् त करते हैं । इन पात्रों की साथाकता इस बात में नहीं है मक ये प्रेमचंद द्वारा अपनी कथा में उपयुक् त हैं , मफट हैं या अमद्वतीय हैं , बमल्क इनकी साथाकता इस बात में है मक ये अपनी असाधारिता में भी अत् यंत साधारि , अपनी मवमशसेता में भी अत् यंत सामान् य के प्रतीक बन जाते हैं , ‘‘ इसीमलए , मबना मकसी अमतशयोमक्त के यह कहा जा सकता है मक प्रेमचंद-सामहत् य में संपूिा भारतीय जनता , अपने सच् चे रूप में अमभव् यक् त हुई है । परंपरागत अंधमवश् वासों और नैमतक आडंबरों को जीतती हुई , भय , आतंक , दमन के मपशाच को कु चलती हुई , अपनी प्रखर प्रमतभा , अथक मेहनत व संकल् प , मनष्ट्कपट-सहृदयता , सच् चाई की टेक , अमतशय सरस- कोमलता , ईमानदारी , भमवष्ट्य में अटूट आशा , करुिा , दया , प्रेम , वात् सलय और भ्रातृत् व के साथ देश की समस् त सांस् कृ मतक मवरासत को अपनी गोदी में मलए , भरतीय जनता के चरि प्रगमत के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं ।
प्रत् येक पात्र का मनमााि प्रेमचंद ने मवमभन् न मूल् य-्टमसेयों को नजर में रखते हुए मकया है , मकं तु मूलत : इन पात्रों के मनम ाि का उद्देश् य मसफा एक है और वह है मानवता का उन् नयन और पामश्वकता का
दमन । अपने इसी उद्देश् य की पूमता के मलए उन् होंने सैकड़ों पात्रों को मसरजा है , उन् हें मवचार मदया है , आवाज दी है और उन् हें अपने सामहत् य का अंग बनाया है ।
प्रेमचंद सामहत् य में जहां मानव जीवन की सूक्ष्म बारीमकयों का मववेचन-मवश् लेर्षि ममलता है , वहीं उनके सामहत् य में मानवेतर जीवों के अन् यतम रूप के दशान भी होते हैं । उनकी कहामनयों और उनके उपन् यासों में पशुओं के प्रमत संवेदना का मचत्रि तो है ही , ‘ पशुओंकी संवेदना ’ का भी बड़ा ही सटीक और हृदयग्राही मचत्रि ममलता है । मानवेतर जीव प्रेमचंद के सामहत् य में मदखाने के मलए या मनोरंजन के मलए नहीं आते बमल्क उनके माध् यम से भी बहुधा प्रेमचंद अपनी सामहमत्यक उपयोमगताओंकी मसमद्ध करते नजर आते हैं ।
ग्राम् य जीवन और कृ मर्ष का अधार ही होता है पशु-पालन । मकसान और गाय-बैल-बकरी एक- दूसरे के पूरक होते हैं । मकसानों और पशुओं का यह प्रेम प्रेमचंद-सामहत् य में अपने उच् चतम और मवशुद्ध रूप में ममलता है ।
प्रेमचंद ने हमेशा एक सपना देखा था । वे मशीन युग के पररिाम इस मशीनी जीवन से नाखुश थे । वे संपूिा जीवन गांव में रहकर जीवन-यापन करने का सपना देखते हैं मकं तु उसे साकार न कर पाए । प्रेमचंद पाश् चात् य सभ् यता के मूल मशीन तथा धन और शहरीकरि से बहुत मनराश थे । उनकी नजर में जीवन जीने का सबसे ऊं चा तरीका गांवों का सीधा- सादा जीवन है । आज आधुमनक युग में शहरीकरि और मशीनों की आपाधापी ने मनुष्ट्य को भी मशीन बना मदया है , उसकी संवेदनाएं मशीनों की आवाज के नीचे दब गई हैं , ऐसे में गांव का वह रमिीय वातावरि जो मनुष्ट्य की सोई हुई संवेदनाओंको जगा सकता है ,
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017