Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 274

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
प्रेमचंद-िासहय य में मानिेय तर चेतना -डॉ . मीनाक्षी जयप्रकाश मसंह
प्रेमचंद-सामहत् य के हजारों पन् नों का प्रत् येक पन् ना मानव-प्रेम और सच् चे मूल् यों के उद्गार से भरा पड़ा ह । जहां प्रेम मसफा महलों के राजा के प्रमत या श्रद्धा मसफा आसमान के देवों से नहीं है बमल्क प्रेम खेतों में चरते गाय-बैलों से और श्रद्धा मनम् न-वगा के गृहस् थ-खेमतहर- मजदूरों से भी है । इस संदभा में भीष्ट्म साहनी कहते हैं –‘‘ प्रेमचंद का लेखन हामदाक है । मानतवा के प्रमत उनके गहरे प् यास और जीवन के प्रमत मवश् वास ने उनके लेखन में ऐसी क्रांमत भर दी है , जो बेहद संतोर्षप्रद है । उन् होंने सदैव अनुभूमत की तीव्रता के साथ लेखन मकया और इसने चाहे अपने को क्रु द्ध मवरोध , व् यंन य या मवडंबना के जररए अमभव् यक् त मकया हो , जैसा मक आरंमभक कहामनयों में ममलता है , या मफर गहरी व् यथा या उदासी के जररए जैसा मक बाद की कहामनयों में ममलता है , उनका स्रोत हमेशा समान था । पीमड़त मानवता के मलए गहरी करुिा और प् यार तथा उसके साथ पूिा तादात् म् य का भाव ।‘’
मजसमें कोई वगा-रंगभेद की गंध तक नहीं होती तथा कहानी आंखों के रास् ते हमारे हृदय को छू जाती है । डॉ . दुगाा दीमक्षत ने अपने आलेख में कहा है – ‘‘ प्रेमचंद ने गरीबी और पीड़ा को स् वयं भोगा था । देहातों में घूम-मफरकर मनम् नवगा के घृमित जीवन की मवडंबना को जाना था । पररिामत : युगबोध से संपृक् त उनकी अनुभूमत आदशावादी धरातल पर भातरीय मूल् यों के प्रमत आस् था में अमभव् यक् त हुई । दररद्र , अपढ़ मनम् नवगीय समाज की आत् मा को नसे करने वाली शमक्तयों का मचत्रि कर जबदास् त शोर्षि से उत् पन् न पीड़ा , दुख : ददा को उन् होंने वािी दी । उनका सामहत् य युगों-युगों से पीमड़त , उपेमक्षत , दीन-दुखी , दमलत जीवन के सारे शोर्षि की मवडंबना का दस् तावेज बना मजसमें दमलतों की असहाय मूक व् यथा , घनीभूत पीड़ा और कठोर शोर्षि का अंकन है ।’’
प्रेमचंद की कहामनयों की मवर्षय मवमवधता को देखकर आश् चया होता है । समाज में ऐसी कोई भी समस् या नहीं थी , जो उनकी कलम की नोंक और उनकी आलोचनात् मक ्टमसे से होकर न गुजरी हो , समाज का कोई ऐसा वगा नहीं , जो पात्र के रूप में उनकी तुमलका का मशकार न हुआ हो , मकं तु इतनी मवमवधताओंके बीच भी उनका मकस् सागो मरता नहीं , बमल्क वह हमेशा हँसता ही रहता है , जीमवत रहता है । मजस प्रकार कबीर बड़ी तथ् यात् मक बात , नीरस से नीरस नीमत और उपदेशपूिा बातों को भी बड़े रोचक ढंग से दो पंमक्तयों में कह देते थे वैसे ही प्रेमचंद ने भी समाज की सभी समस् याओं का अवलोकन ,
यही प्रेमचंद का संसार है जहां हमें होरी , धमनया , मतमलया , नोहरी , ढपोरसंख , राय साहब , मालती , खन् ना , मेहता , सुखदा , अमरकांत , मवनय , सोमफया , सूरदास तथा सैंकड़ों ऐसे पात्र ममल जाएंगे जो हमारे अपने ही हैं और इसमलए ये कहामनयां प्रेमचंद की कहामनयां न होकर हमारी अपनी कहानी बन जाती हैं मजन् हें पढ़कर हमारा ममस्तष्ट्क मवचारों के समालोचन और मचत्रि अपनी कहामनयों में मकया जंजाल में उधेड़बुन करते हुए उलझता नहीं अमपतु एक मफर भी उनकी कहामनयां नीरस नहीं हुई। ं उनकी अदभुत शांमत व सुकू न का अनुभव करता है । उसे इस जीवंतता ही प्रेमचंद की अपनी जीवंतता है । संसार में अजनबीपन का नहीं , अपनत् व का एहसास होता है क् योंमक यहां उसे अपने ही वगा के लोग , अपने
प्रेमचंद के सामहत् य में पात्रों के इतने
ही पड़ोसी , भाई-दोस् त-पररवारों की कथा ममलती है ,
मवमवधरूप हैं मक मानव स् वभाव का कोई पक्ष ,
भारतीय समाज का कोई भी अंग इनसे छू टा नहीं रह Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017