Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 27

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका मदन के बाद उतरती है रात रात के बाद चढ़ते हैं मदन साँप छोड़ जाते हैं अपने के च ए ु रसास्वादन कर भँवर छोड़ जाते हैं उदास फूल० इि कसिन िमय में! ------------------------------- इस कमठन समय म जब यहाँ समाज के शब्दकोश स मवश्वास, ररश्ते , संव द े नाए और प्रेम नाम के तमाम शब्दों को ममटा मदये जाने की म म ु हम जोरों पर है० त म् ु हारे प्रमत मैं बड़े संद ह े की मस्थमत में हू मक आमखर त म ु अपनी हर बात अपना हर पक्ष मेरे सामने इतनी सरलता और सहजता के साथ कै से रखती हो हर ररश्ते को मनश्छलता के साथ जीती इतनी स व ं द े नाएँ कहाँ से लाती हो त म ु ० बार-बार उठता है यह प्रश्न मन म क्या त म् ु हारे जैसे और भी लोग अब भी शेर्ष हैं इस द म ु नया म देखकर त म् ु ह थोड़ा आशामन्वत होता हू ० ँ मखलाफ मौसम के बावज द ू त म् ु हारे प्रेम म कभी उदास नहीं होता हू ० ँ िगी जाती हो तुम! -------------------------- पहले वे परखते ह Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 त म् ु हारे भोलेपन को तौलते हैं त म् ु हारी अल्हड़ता नाँपते हैं त म् ु हारे भीतर संव द े नाओ ं की गहराई० मफर रचते हैं प्रेम का ढ़ोंग फें कते है पाशा सामजश का मदखाते हैं त म् ु ह आसमानी स न ु हरे सपने० जबतक तुम जान पाती हो उनका सच उनकी सामजश वहशी नीयत के बारे म वे त म् ु हारी इजाजत स टटोलते हुए त म् ु हारे वक्षों की उभार रौंद च क े होते ह त म् ु हारी देह० उतार च क े होतें ह अपने मजस्म की गमी अपने यौवन का ख म ु ार ममटा च क े होतें ह अपने ग प्त ु ांगों की भ ख ० और इस प्रकार त म ु हर बार ठगी जाती हो अपने ही समाज म अपनी ही संस्कृ मत म अपने ही प्रेम म अपने ही जैस तमाम शक्लों के बीच० - पररतोष कुमार 'पीयूष ' 7870786842, 7310941575 वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017