Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 268

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मध्यकाल की स्त्री-काव्यधारा को प्रभामवत नहीं मकया ; उनके सामामजक संघर्षा और कमवता से आधुमनक काल की कवमयमत्रयाँ प्रेररत-प्रभामवत हुई हैं । जैसे – आधुमनक मीरा कही जाने वाली महादेवी वम ा । कवमयमत्रयाँ ही नहीं ; कमव भी प्रभामवत हुए हैं । मीरा के महत्व को व्यक्त करते हुए मैमथलीशरि गुप्त ने कहा है :
लाख लोक भय बाधाओं से मवचमलत हुए न वीरा , वर गई िज राज पर मामनक मोती महरा धीरा । हरर चरिामृत कर वर मवर्ष भी पचा गई गंभीरा , नचा गई नट नागर को भी नाची तो बस मीरा ।
भमक्त आन्दोलन की एक बड़ी उपलमब्ध मीरा से कमव या भक्त समाज मजतना आकमर्षात हुआ उतना आलोचना-समाज नहीं । न तो ममश्र बन्धुओं ने ‘ महंदी नवरत्न ’ में उसे स्थान मदया ; न तो अन्य इमतहास-ग्रंथों में उसे प्राधान्य ममला । शुक्ल , मद्ववेदी , नगेन्द्र , नंददुलारे बाजपेयी ; यहाँ तक मक राममवलास और नामवर मसंह ने भी उन्हें उतना महत्त्व नहीं मदया मजतना अन्य मध्यकालीन कमवयों को ।
कोई भी रचनाकार अपने समय के सामामजक पररवेश से मनममात होता है । मीरा का अवतरि राजनैमतक अमस्थरता के समय हुआ । वह राठौड़ राजघराने की राजकन्या थी । जोधपुर बसानेवाले राव जोधा के पुत्र राव दूदा मेड़ता को मफर से बसाकर उसके अमधपमत बने । राव दूदा के सबसे बड़े पुत्र मवरमदेव के चौथे पुत्र रतनमसंह की पुत्री मीरा है । मीरा का मववाह मचत्तोड़ के रािा भोजराज के साथ हुआ । मीरा के कृ ष्ट्ि प्रेम को कु ल की मयाादा-भंग करनेवाला कृ त्य माना गया । मचत्तोड़ में मीरा को अपने स्वीकृ त मागा पर चलने के मलए बड़ा संघर्षा करना पड़ा । दुभाानय से पमत भोजराज अमधक समय तक जीमवत नहीं रहे । लेमकन मीरा ने
उस समय राजघरानों में प्रचमलत वैधव्य जीवन अपनाने से इंकार कर मदया । इस प्रकार मीरा ने सामामजक रूमढवादी व्यवस्था का मवरोध मकया । समाज राजसी सुख व वैभव की मजन्दगी गुजारने के मलए आज भी सभी तरह का छल-कपट , पाखंड , ईष्ट्य ा आमद अपनाता है , जबमक मीरा ने उसे न के वल छोड़ा ; घृिापूिा मतरस्कार भी मकया । उसने सामंतवादी व्यवस्था तथा उसकी सीमा का अपनी कमवता में संके त मकया है । यमद पांचसौ वर्षा बाद आज भी हमारे पररवेश में सामंतवादी जकडन है तो मीरा की हालत का हम अनुमान लगा सकते हैं । अपने समय मीरा अमद्वतीय एवं असाधारि मानी जाएगी क्योंमक छत्तीसों राजकु लों एवं पूरी राजपूती प्रथाओंका मवरोध करना सामान्य बात नहीं । ऐसा भी कहा जाता है मक पमत की मृत्यु पर मीरा को सती होने के मलए कहा गया था लेमकन उसने तब श्वसुर से कहा था मक ‘ मैं सती न हूँगी , मगररधर का गुि गाया करुँ गी क्योंमक वही मेरे पमत , माता-मपता , भाई सब कु छ हैं आपसे अब ज्येष्ठ पुत्रवधू का सम्बन्ध ही कहाँ रह गया , अब मैं सेवक मात्र रह गयी हूँ ।’ मगरधर-गोपाल को पमत मानना छोटी बात नहीं है । अत : मीरा को हम नारी चेतना का आद्य प्रवताक मानेंगे । अरे ! मीरा ने रैदास को गुरु मानकर जामतगत भेद को भी नकारते हुए समाज को सन्देश मदया ।
सत्संग को लेकर ननद ऊदाबाई ने मीरा को लाख समझाने की कोमशश की लेमकन मीरा का उत्तर रहा , ‘ मैंने रात-मदन सत्संग में रहकर ज्ञान प्रामप्त की है । मै तो प्रभु मगररधर नागर के हाथों मबक चुकी हूँ ।’ मीरा ने मनमभाकता के साथ सब सामामजक बन्धनों को तोडने की कोमशश की है । यह पद देमखए :
“ पग बांध घु ँघरयां िाच्या री ।।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017