Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
मलखी है । आमथाक ्टमसे से ख द ु पर मनभार है उसक
बावज द ू भी वह स्वतंत्र नहीं है । वह ख ट ं ू े से बंधे बछड़
के समान है जो कुलाचे तो भर सकता है परंतु उस ख ट ं ू े
से आजाद नहीं हो सकता । उसको उतना ही खोला
जाता है मजतना की उसकी जरुरत है । वह घर में कमा
के भी लाये मफर भी उसकी स्वतंत्रता प रु ु र्ष के हाथ म
रहेगी । जैसे वह ताला है और उसकी चाबी प रु ु र्ष क
हाथ में है । वह जब चाहे उसको खोले और जब चाह
उसको बंद करे । मपतृसत्तात्मक समाज आमथाक ्टमसे
सपन्न ममहलाओ ं को भी अपनी मगरफ्त में मलए हुए ह
।
ISSN: 2454-2725
13. वही, पृ. 87
14.वही, पृ. 51
15वही, पृ. 27
िंदभक ग्रंथ:-
1.मनीर्षा कुलश्रेष्ठ, ‘कुछ भी तो रूमानी नहीं’
(2008), ‘अ म ं तका प्रकाशन’, गामज़याबाद, पृ. 69
2. वही, पृ. 69
3.वही, पृ. 69
4.वही, पृ. 68
5.वही, पृ. 69
6.वही, पृ. 80
7.वही, पृ. 80
8.वही, पृ.43
9.वही, पृ. 49
10.वही, पृ. 49
11.वही, पृ. 57
12.वही, पृ. 62, 63
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017