Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 265

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
को सहती है । “ दवा से ठीक नहीं हुई तो आपको बड़े शहर में जाकर इलाज करवाना होगा । बेटा मुझे तो तेरी ही दवा से काम चलाना होगा । मेरा भानय जो तू स्थानक में आ गई , दवा ममल जायेगी । हमें तो रोगों से भी अके ले ही जीतना होता है , न जीते तो नश्वर देह ही तो है । 29 भारतीय लोग मकताबी जीवन व व्यवहाररकता में आये मसद्धातों को अलग-अलग रखते हैं । हकीकत में पुरापंथी मवचारों में जकड़े रहेंगे और मकताबी ज्ञान को मकताबों तक ही सीममत रख देते है । व्यावहाररकता में अमल नहीं करते । पुखराज की पत्नी सुमेधा को अगर जैन साधु ने मन ही मन चाह मलया तो सुमेधा तो कहीं गलत नहीं ठहरती मफर क्यों पुखराज सुमेधा से चार महीने नहीं ममलता । कौन सा वैरानय है यह ! स्त्री है इसमलए उसके प्रमत मकसी का भाव तुम्हे पसंद नहीं , इसमें उसकी क्या गलती है । उसे ही दोर्ष मदया जाता है मक तुम्हे इन परंपरागत चीजों में टांग नहीं अड़ानी चामहए ।
‘ कामलंदी ’ कहानी वेश्यावृमत्त के जीवन के ददा को बयां करती है मक मकस तरह वह मज़बूरी में स्वयं को बेचती है । उनको मकतनी शारीररक यातनाओं से गुजरना पड़ता है पेट पालने के मलए । वहाँ पैदा होने वाले बच्चों का भमवष्ट्य भी अंधकार में चला जाता है । बच्चों को सही माहोल नहीं ममलता । वेश्या का जीवन जीने वाली स्त्री अपने बेटी को भी उसी में धके ल देती है । अगर वह खुद को इस चंगुल से बचाती है तो मकसी और के हाथों में पड़कर , नये- नये गृहस्त जीवन के सपने देखकर शोर्षि का मशकार हो जाती है । “ कस्टमर ’ शब्द उस गली के हम उम्र के बच्चों के बीच एक डरावना शब्द था । एक मपशाच जो औरतों का गला दबाया करता था , औरतें उसकी मगरफ़्त में कराहतीं ... थीं । एक मपशाच मजसके न आने से ... कभी कटोरदान में रोटी कम पड़ जाती थी या
मफर ... बचती तो सब्जी या शोरबे के मबना ही खानी होती थीं । 30 कामलंदी वेश्यावृत जीवन से बचना चाहती थी इसीमलए वह उस जीवन से भागना चाहती थी । एक युवक ने उसे प्यार के सपने मदखाकर इस माहौल से दूर ले जाने का वादा कर उसका शोर्षि करता है । वह युवक पहले से शादीशुदा था । उसे वापस अजन्मे बच्चे के साथ उसके घर छोड़ जाता है । माँ द्वारा पीटे जाने पर वह सात माह के बच्चे को जन्म देती है । इसके बाद कामलंदी अपनी जीमवका चलाने के मलए वेश्याओं के नोंचे हुए मजस्मों की मामलश करती है , उनके कपड़े धोती है और अपने बच्चे को पालने के मलए न्यूड मॉडमलंग का काम करती है । जहाँ नननता को नहीं कला को महत्व मदया जाता है जहाँ एक पोज में घंटो खड़े रहना पड़ता है मजसमें पूरा शरीर और नसें दुखने लग जाती है । यह बहुत मेहनत का काम है । इसी काम के चलते बच्चा अपनी माँ पर शक करता है मक वह धंधा करती है । कामलंदी की माँ अपने बच्चों को पालने के मलए धंधा करती है तब कामलंदी अपनी माँ का मवरोध करती है मक क्यों चंद पैसों के मलए तुम मकसी के शोर्षि का मशकार बनती हो । मकं तु कामलंदी की माँ धंधा न करें तो बच्चों को क्या मखलायें और इस माहोल में वह बदनाम हो चुकी है तो कोन उस पर मवश्वास करके उसको काम देगा । वेश्यावृमत्त समाज की बहुत बड़ी समस्या है जहाँ ममहलाओं को उसमें धके ल मदया जाता है और वह वहाँ से मनकल नहीं पाती । ताउम्र उसी दलदल में फ़सी रहती है ।
इस प्रकार मनीर्षा कु लश्रेष्ठ की कहामनयों में ममहलाओं के यथाथा जीवन की मस्थमतयों से अवगत कराया गया है मक मकस प्रकार जीवन में वह मभन्न- मभन्न पररमस्थमतयों से गुजरती है जहाँ उनका शारीररक व मानमसक हर प्रकार का शोर्षि होता है । वह पढ़ी
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017