Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 264

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
उसकी मजंदगी को छीन लेना वाला रोग मदया उस स्टैला की आज कोई कीमत नहीं रह गयी । वो उसे अपने नरक का महस्सा बना गया और चलते वक्त कहता है वह अपनों के साथ रहना चाहता है उसे अपने नरक का महस्सा नहीं बनाना चाहता । पुरुर्ष मकतना स्वाथी है जो लड़की अपनी मजंदगी उसे दे रही है वह उसी की मजंदगी छीन कर भाग रहा है । भागना ही था तो क्यों तीन साल उसकी मजंदगी में ठहरा ? “ माफ़ कर देना मैं अपने अतीत का बैग साथ लाया था , उसमें न जाने कब यह रोग बंधा चला आया । बैग फैं क मदया मगर यह फ़ै ल गया हमारे बीच । फु ल ब्लोन एड्स का अथा समझती हो न । मैं उस हद तक पहुँचू उससे पहले अपनी जमीन पर , अपने लोगों के बीच लौट जाना चाहता हूँ ।” 26 साथ ही एड्स पीमड़त ममहलाओं को सकारात्मक सोच प्रदान करती है , यह कहानी उनमें जीने की चाहत पैदा करती है मक अभी भी मजंदगी ख़तम नहीं हुई है । मजंदगी के मकतने साल बचे है उन्हें ख़ुशी से जी लो । सकारात्मक सोच ही हमें मजंदगी जीने की नई प्रेरिा देगी । एड्स पीमड़त ममहलाएँ नौकरी भी करती है , वे मजंदगी को प्यार भी करती है । और मरने के डर को खुद से दूर भगा मदया है । अपनी मजजीमवर्षा की शमक्त को बरकरार रखे हुये है । एड्स पीमड़त ममहलाओं को भी खुशनुमा जीवन जीने का अमधकार है । जीवन हर मस्थमत में खुबसूरत है अगर उसमें से मरने का डर मनकाल मदया जाये तो अपने नये सपने , नई उमंगे , नये उल्लास के साथ जीने का मजा ही कु छ ओर है । “ हमको टीबी हुआ तो हमने खून का जाँच कराया । हाँ हमको सरकारी हस्पताल का कं पोटर आके बोलै के ये तुम्हारा रपोट ... तुम एचआईवी पोंमझमटव ... तुम पाँच मईना में मर जायेगा ।” हमने रपोट का कागज फाड़ा चाँटा ... माटी मैला
बच्चा लोग को क्या तेरा बाप संभालेगा । पन मशस्टर बाद में सब समझाया और हम रैड लाईट में ‘ बी बोल्ड ’ की कम्युमनके टर बन गया । उस बात को पांच साल हो गया होइंगा । हम मजन्दा न अभीच । धंधा भी बरोबर ...।” 27
‘ क्या यही है वैरानय ’ कहानी में सुमेधा कायस्थ पररवार की बेटी व जैन पररवार की वधु है । स्वयं डॉक्टर होने के बावजूद भी ससुराल की परम्पराओं को मबना इंकार मकये मनभाती है । खाने पीने में परहेज रहन-सहन तौर तरीके संस्कृ मत आमद । एक तरफ भारतीय ममहलाओं के स्वास्थ्य की बात उठायी गई है । जहाँ ममहलाएँ बीमारी पर जब तक ध्यान नहीं देती तब तक वह बड़ी या गंभीर न हो जाए । ग्रामीि ममहलायें ममहला डॉक्टर न ममलने के कारि पुरुर्ष डॉक्टर के सामने अपनी बीमारी प्रकट करने से कतराती है । दूसरी तरफ भी वे पाररवाररक मजम्मेदाररयों में इतनी व्यस्त रहती हैं मक उनका खुद पर ध्यान ही नहीं जाता । इस तरह का समपाि इन्हें बड़ी बीमारी का मशकार बना देता है । “ अमधकतर भारतीय ममहलाएँ अपने स्वास्थ्य को तब तक अहममयत नहीं देतीं जब तक वह बड़ी मबमारी बन कर सामने न आ जाए , उस पर आंतररक समस्याएँ तो सबसे ज्यादा मछपाई और उपेमक्षत की जाती है ।” 28 जैन धमा को स्वीकार कर सामध्वयाँ वैरानय धारि कर लेती है । तब इतने मनयम कायदों में खुद को बांध लेती है मक स्वास्थ्य से बड़ा धमा हो जाता है । जहाँ स्तन कैं सर की बीमारी में वो बाहर अस्पताल नहीं जाएँगी और आश्रम में रहकर इस रोग का ईलाज नहीं होगा । इस तरह बार-बार स्वास्थ्य का मगरना बार-बार तकलीफ सहकर धमा का मनवाहन करना ही तो सबसे बड़ा नहीं । क्यों धमा के नाम पर वह इतनी तकलीफ
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017