Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 262

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
चामहए , गाने बजाने का शौक उनके मलए पालतू की चीज है । “ यह मसतार-मवतार क्यों उठा लाई मायके से ? फालतू जगह घेरेगा । वैसे भी हमारे घर में मकसी को पसंद नहीं गाना-बजाना ।” 20
सुर्षमा को पमत की लापरवाही के चलते बार-बार एबॉशान्स करवाना पड़ता था । मकतना ददा सहना पड़ता है मफर भी पमत ऑपरेशन नहीं करवाते । ऑपरेशन करवाये तो उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं । पत्नी के स्वास्थ्य पर पमत का कोई ध्यान नहीं जाता है ना उसे कोई फका पड़ता है । ऐसी समस्याएँ मकतनी ही ममहलाओं को झेलनी पड़ती हैं । “ मकतने एबॉशान्स कराएगी ? नौकरी के साथ यह सब झेलना मकतना मुमश्कल हो जाता है । इनसे मकतना कहा है करवा लो ऑपरेशन ... पर कान पर जू ँ नहीं रेंगती । मैं नहीं करवाता यह सब ... मपछली अगस्त से अभी एक साल भी नहीं बीता है । ऑपरेशन नहीं करवा सकते ... पर लाइटबंद होते ही सबसे पहले वही सब याद आता है । आनाकानी करो तो ... अपने अगले तीन मदन कलेश में मनकालो । मफर भी चैन कहाँ है ?” 21 दहेज़ की समस्या के चलते , पापा के ना रहते जल्दबाजी में उसका मववाह कर मदया गया जहाँ उससे ना कु छ पूछा ना उसे बताया गया । वह जैसा दाम्पत्य संसार चाहती थी उसके मकतने मवपरीत था सब । “ उसे आपमत्त मववाह से नहीं थी पर जो उसने मववाह की कल्पना की थी उससे यह दाम्पत्य जीवन जरा भी मेल नहीं खाता था ।” 22 सुर्षमा के पमत का चररत्र अच्छा नहीं था उसकी वजह से घर में कोई कामवाली बाई नहीं मटकती थी । पड़ोस की दीपा भी उनके घर आती जाती रहती थी , यह बात उसका बेटा उसे बताता है । मकतना सहन करेगी सुर्षमा , कौनसा सु : ख मदया है इस दाम्पत्य जीवन ने उसे नौकरी , घर के काम , पमत की चररत्रहीनता , पमत व सास के ताने , बार-बार एबॉशान्स , शारीररक ददा , पमत की बेरूखी , बच्चों की मजम्मेदारी ,
मववाह के बाद मबखर चुके सपने आमद का मचत्रि इस कहानी में मकया गया हैं । सुर्षमा शादी से पहले मकतनी अलग थी , गाना बजाना , पढ़ना , हँसना , सहेमलयों की मीठी छेड़छाड़ , पापा का उसे संगीत मसखाना , घर व कॉलेज में उसके संगीत को सम्मान ममलना , उसकी सु ंदरता , उसकी आवाज में एक जादू था । यह सब उसे तब याद आया जब वह अपने कॉलेज के सीमनयर को मवधायक के रूप में ममलती है जब उसे अपना तबादला करवाना था , जो उसे पसंद करता था । तब वह अपनी हालत से संकु चा जाती है । लापरवाही से बंधी साड़ी , बालों को कसकर बांधना , थकान व तनाव में मशमथल शरीर , चहरे व मन के रंग फीके पड़े हुए । वह अपने सीमनयर मवधायक के अपनेपन के व्यवहार को देखकर रुआँसी हो जाती है । “ अब वह भीगी नजरें टपकने को ही थीं । उसे स्वयं पर नलामन हो रही थी । इस फटीचर हाल में ही उसे इससे ममलना था वह भी अनायास इतने सालों बाद ।” 23 यह कहानी पररवार के आपसी ररश्तों , बंधनों तथा पुरुर्ष सत्ता के कै द में छटपटाती स्त्री के मुमक्त की दबी चाह को व्यक्त करती है ।
‘ फ़ांस ’ कहानी लड़के व लड़की के भेदभाव को रेखांमकत करती है जहाँ पुत्र न होने की वजह से पत्नी को बार-बार अपमामनत मकया जाता है । पुत्री का जन्म हो या मरि कोई बात नहीं पर पुत्री जन्म ले तो पररवार में मातम छा जाता है साथ ही उसके मववाह व दहेज़ की समस्या सामने आती है जो आज भी एक मवकराल समस्या बनी हुई है ; दहेज़ प्रथा पर कानून बनने के बावजूद भी । लगातार चार पुमत्रयों के जन्म से पमत पत्नी के प्रमत संवेदनहीन हो जाता है । पत्नी के जीने मरने से उसे कोई मोह नहीं रह गया है । पुत्र ना देने की वजह से वह पत्नी से मु ँह फे र लेता है , बुरा व्यवहार करता है , अन्य स्त्री से संबंध रखता है मफर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017