Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 261

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
“ कु छ भी तो रूमानी नहीं ’ कहानी िंग्रह में स्त्री पािों के जीिन का उभरता िच ”
कु लदीप
शोधाथी-महंदी मवभाग महमर्षा दयानद सरस्वती मवद्यालय , अजमेर gmail-yadukul123 @ gmail . com
मनीर्षा कु लश्रेष्ठ ने अपनी कहामनयों के माध्यम से स्त्री की वास्तमवक मस्थमतयों को सामने लेकर आई है । इन कहामनयों में समाज में स्त्री की मस्थमत , उसके साथ घमटत होने वाली घटनाओं का बारीकी से मचत्रि मकया गया है । उनकी कहामनयों में यौन शोर्षि , मानमसक शोर्षि , औरत की घुटन , छटपटाहट , आरोप-लांछन , घर व बाहर मपसते रहने का ददा , मयाादाओं को ललकारने की कसमसाहट आमद का विान मकया हैं । स्त्री जीवन के यथाथा का कोई भी पहलु उनसे नजरअंदाज नहीं हुआ है । चहारदीवाररयों का सच लेमखका सामने लेकर आयी है । औरत की लड़ाई उसके अपने ही घर से शुरू होती है । उसके सगे-संबंधी उसे दबाकर रखने की कोमशश करते है , उसका मानमसक व शारीररक शोर्षि करते हैं । उनकी स्त्री मवर्षयक कहामनयाँ मपतृसत्तात्मक समाज से टकराती मदखाई देती है ।
‘ मास्टरनी ’ कहानी में स्त्री समस्याओं को सामने लाया गया हैं । घर व बाहर दोनों जगह उसके सामने आने वाली समस्याओं को इस कहानी में समेटा गया हैं । कहानी की पात्र सुर्षमा आमथाक ्टमसे से सम्पन्न है मफर भी उसका पमत उसे बराबरी का दज ा नहीं देता है । घर का काम व बच्चों की देखभाल उसकी मजम्मेदारी है । क्या बच्चे मसफा उसके ही हैं ? पमत-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं , दोनों ही एक-एक बच्चे को अपने साथ रखते हैं । पमत पत्नी पर धौंस
जमाता है । अपने तबादले के मलए सुर्षमा पमत से कहती है पमत आलस्य के मारे जाना नहीं चाहता और वह स्वयं जाये तो लोगों की गंदी नजरों का मशकार बनेगी । “ छु रट्टयों में आई है महारानी यू ँ नहीं मक ठीक से खाना-वाना बना कर के मखलाये , साल भर तो खुद ही ठेपते हैं अपनी और तेरे लाड़ले की रोटी । अभी आई है , आते ही साली रांसफर के चक्कर में पड़ गयी ।” 18 सुर्षमा अपने पररवार में ही अपनी खुमशयाँ और दुमनया ढूँढ़ती है । स्वयं जहाँ रहती है सु : खी है परंतु पमत व बच्चे की परवाह करती है । स्वयं पर मनभार होने के बावजूद सास व पमत के ताने सुनती है । अपने स्वामभमान को भूल गयी है । ररश्तों में अपने आप को घोल कर उसने अपना अमस्तत्व खो मदया । मजस पररवार के मलए वह मरती है उसी पररवार के सदस्य उसकी परवाह नहीं करते हैं । वतामान समय में भी औरत घर व नौकरी दोनों चीजों के बीच फं स गयी है । आमथाक ्टमसे से मजबूती भी उसे मानमसक रूप से मजबूत नहीं बना पाती । पमत का प्यार भी नहीं बचा , बस शारीररक जरूरतें बची हैं । उसे स्वतंत्रता तो आमथाक ्टमसे से संपन्न होने पर भी नहीं ममली । सुर्षमा प्यार , इज्जत और सम्मान चाहती है पर उसे ममल नहीं पाता । परंपरागत ढरे पर उसे चलने के मलए क्यों मजबूर मकया जाता हैं ? पुरुर्ष की मानमसकता क्यों नहीं बदल पाती हैं ? “ यन्त्रवत-सा ममलन उसे भाता नहीं है । प्रेम , नखरे , छेड़छाड़ तो कभी थे नहीं उनके ररश्ते में पर एक नयापन सा था स्पशों में ... लहरें थीं मजस्म में । ख़ुद पर कोफ्त हो रही थी मकसमलए कर मलये पैदा ये बच्चे झटाझट ? दाम्पत्य क्या है , यह समझ पाती तब तक तो ये अनचाहे मेहमान चले आए ।” 19 शादी से पहले उसके सपनों को कॉलेज में , घर में मकतना तवज्जो मदया जाता था पर शादी के बाद उसके सपने टूट जाते हैं । ससुराल वालों को नौकरी
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017