Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 256

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सारांश
रामिृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में भारतीय िंस्कृ सत की झलक
सििेक कु मार , vivekmadhuban @ gmail . com शोधाथी , मवश्वमवद्यालय महंदी मवभाग ,
मत . मां . भागलपुर मवश्वमवद्यालय , भागलपुर
मकसी भी समाज की संस्कृ मत , उस समाज का जीवन , प्राि और आत्मा होती है । हर देश की अपनी संस्कृ मत होती है । हमारे देश की मवमशसे संस्कृ मत हमारी सांस्कृ मतक धरोहर हैं और हमारा यही वैमशसे्य हमें अन्य देशों से मवलग करता है । बेनीपुरी जी की भारतीय संस्कृ मत के अनन्य उपासक थे । उनकी रचनाओं में यत्र-तत्र हमारे देश की सांस्कृ मतक वैमशसे्य की झलक स्पसे मदखाई देती है । बेनीपुरी जी की कई रचनाओंयथा , तोरी फु लाइल : होरी आइल में होली का , दीप दान में दीवाली का , रूपा की आजी में मशवरामत्र के मेले का , मेरी माँ में भारतीय समाज की रूमढ़वादी परंपराओं का , मासानां मागाशीर्षोंहम में अगहन महीने का , रोपनी में खेती के ्टश्य और लोकगीतों का विान ममल जाता है । बेनीपुरी जी भारतीय समाज के सांस्कृ मतक क्षरि से बहुत आहत थे मजसका विान उन्होंने गेहूँ बनाम गुलाब में मकया है । ‘ गेहूँ और गुलाब ’ के माध्यम से उन्होंने बताया मक ‘ गेहूँ ’ है - मानव के भौमतक मवकास का प्रतीक तथा ‘ गुलाब ’ है हमारी संस्कृ मत और सांस्कृ मतक मवकास का प्रतीक । मनुष्ट्य के जीवन में ‘ गेहूँ ’ और ‘ गुलाब ’ दोनों में सम्यक संतुलन अत्यंत आवश्यक है । भौमतक जगत के आकर्षाि पाश में फँ सकर मानव ‘ गेहूँ ’ के पीछे रथ में जुते घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगा , पररिामस्वरूप , ‘ गुलाब ’ अथाात हमारे सांस्कृ मतक गुि- क्षमा , दया , तप , त्याग , दान , अमहंसा , सत्याग्रह , परोपकार , वसुधैव कु टुम्बकम की भावना का लोप हो
गया । पुरानी संस्कृ मत की जमीं पर वे सांस्कृ मतक पुनमनामााि का काया करना चाहते थे और सभी सामहत्यकारों को भारतीय संस्कृ मत के संरक्षि के मलए आह्वान करते थे । इसमलए स्वतंत्रता संघर्षा के पिात ही अपनी लेखनी के माध्यम से उन्होंने सांस्कृ मतक पुनजाागरि को मुख्य मुद्दा बनाया । अपनी रचनाओंमें भारतीय संस्कृ मत को शाममल कर तथा उन पर गहन मचंतन कर भर ही नहीं करते थे बमल्क , इसे उन्होंने अपने आचरि में शाममल भी मकया । यही कारि है मक सामहमत्यक क्षेत्र में संस्कृ मत दूत के रूप में उनकी अपनी एक मवमशसे पहचान है ।
की िडडकि
बेनीपुरी , संस्कृ मत , रोपनी , मासानां मागाशीर्षोंहम , मेरी माँ , कील , गेहूँ , गुलाब , चुड़ैल
िोधपि
संस्कृ मत वह है जो हमारे युगों से संमचत मवचारों , आदशों और व्यवहारों को स्वंय में समामहत कर , कालानुसार नवीनता प्रदान करते हुए , स्वतः प्रत्येक आने वाली पीढ़ी में प्रवेश कर जाती है । संस्कृ मत समाज का जीवन , प्राि और आत्मा होती है । मजस तरह शरीर की बाह्य गमतमवमधयों के माध्यम से उसके आंतररक प्रािों की अमभव्यमक्त होती है , उसी तरह समाज की मवमभन्न गमतमवमधयों यथा , सामामजक परंपराएँ , रीमत ररवाज , सामामजक अंतस्संबंध तथा दैनंमदन जीवन की गमतमवमधयाँ , अध्यात्म , धमा , कला इत्यामद के माध्यम से उस समाज की संस्कृ मत का बोध होता है । हर देश की अपनी संस्कृ मत होती है जो उस देश में रहने वाले लोगों के जीवन के हरेक अंग में ्टमसेगत होती है । हमारे देश की परम्पराएँ , नृत्य , संगीत , धमा , कला , मशल्प , भार्षा , पवा-त्यौहार , रीमत-ररवाज , खान-पान इत्यामद हमारी सांस्कृ मतक धरोहर हैं और
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017