Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 242

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
“ ययागपि उपन्द्याि में असभव्यक्त व्यसक्त और िमाज के िहिम्बन्द्ध ”
कल्पना सिंह रािौर शोधाथी , भारतीय भार्षा कें द्र ,
जवाहरलाल नेहरु मवमश्वद्यालय , नईमदल्ली Email : kalpana24march @ gmail . com
Mob . + 91 9555994261
िोध िमस्या – त्यागपत्र उपन्यास के माध्यम से सामामजक व्यवस्था में स्त्री की मस्थमत का अध्ययन करना ।
िोध-िारांि –
िोध पि -
व्यमक्त का अमस्तत्व समाज के मलए है या समाज का अमस्तत्व व्यमक्त के मलए , यही द्वंद्व त्यागपत्र उपन्यास की मूल संवेदना है । यही वह मूल प्रश्न है जो पाठक के मन में शुरू से आमखर तक चलता रहता है और इस प्रश्न के प्रमत पाठक को सचेत करना जैनेन्द्र का मूल ध्येय भी जान पड़ता है । यह अलग बात है मक उनका तरीका सीधा न होकर थोड़ा घुमावदार है । यू ँ तो जैनेन्द्र प्रेमचंद्र के समकालीन थे , समकालीन इस अथा में मक प्रेमचंद के सामने ही जैनेन्द्र के तीन उपन्यास प्रकामशत हो चुके थे , लेमकन जैनेन्द्र और प्रेमचंद दोनों की रचना-भूमम अलग-अलग है , एक के के न्द्र में व्यमक्त है तो दूसरे के के न्द्र में समाज । जैनेन्द्र के सामहत्य का के न्द्र मबंदु स्त्री और उसकी मनोभूमम है । त्यागपत्र में जैनेन्द्र , व्यमक्त और समाज के सहसंबंधों पर वाद-मववाद करते हुए सामामजक व्यवस्था में स्त्री की मस्थमत की संवेदनशील व्याख्या करते हैं । जैनेन्द्र ने सुनीता की भूममका में मलखा भी है मक ‘ कहानी कहना मेरा उद्देश्य नहीं है । इसमलए मृिाल की कहानी , कहानी होते हुए भी समस्या का प्रस्तुतीकरि और साथ ही उसके मनदान का प्रयास भी है । मृिाल की कहानी पाठक को मसफा मनोरंमजत ही नहीं करती है बमल्क वह पाठक को उसकी अपनी सामाज व्यवस्था के प्रमत सोचने के मलए आमंमत्रत भी करती है ।’
मनुष्ट्य एक सामामजक प्रािी है । व्यमक्त के समुमचत मवकास में समाज और उसके मनयमों की महत्वपूिा भूममका होती है । मकन्तु कई बार यही सामामजक मनयम व्यमक्त के पतन का कारि भी बन जाते हैं । समाज जब अपनी मान्यताओंको लेकर रूढ़ हो जाता है तभी वह व्यमक्त के मवकास में बाधक बनने लगता है । नतीजतन या तो क्रामन्त होती है या मफर पतन । त्यागपत्र में जैनेन्द्र , व्यमक्त और समाज के सहसंबंधों पर वाद-मववाद करते हुए सामामजक व्यवस्था में स्त्री की मस्थमत की संवेदनशील व्याख्या करते हैं । मृिाल का प्रेम जो की सामामजक व्यवस्था में स्वीकाया नहीं था उसके वयमक्तक पतन का कारि बनता है । मृिाल इस पतन को समाज की कमी न
उपन्यास का मवधान फ़्लैश-बैक शैली में रचा मानकर अपनी मनयमत मानती है और मकसी कटी
गया है और इसके दो के न्द्रीय पात्र हैं – मृिाल और पतंग की तरह आसरे की तलाश में मनरंतर भटकती
प्रमोद । मृिाल और प्रमोद का बचपन साथ-साथ ही रहती है । मृिाल के चररत्र का यह नैरन्तया ही उपन्यास
बीता है और दोनों बुआ-भतीजे से ज्यादा सखा हैं । की कथा को मवस्तार देता है । त्यागपत्र में सामामजक
मृिाल के चररत्र में कई उतार-चढ़ाव आते हैं , इन व्यवस्था या उसके संस्कारों को लेकर जैनेन्द्र ने जो
पररवतानों को बालक प्रमोद भी देखता है और जज प्रश्न उठाये हैं वे प्रश्न ही इस उपन्यास को साथाकता
प्रमोद भी । वह मृिाल के बचपन से लेकर जीवन के प्रदान करते हैं ।
अंत तक का चश्मदीद गवाह रहा है । उसने मृिाल के Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017