Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 236

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
राजनीमत , प्रशासन का सीधा सम्बन्ध समाज के साथ होता है । सामामजक जीवन में उभरने वाली समस्याएँ ही राजनीमतक प्रश्न बनते हैं । परन्तु यहाँ पररमस्थमतयाँ मवपरीत हैं ।
राजनीमतक जीवन से उत्पन्न समस्याएँ ही सामामजक प्रश्न बने हैं । ‘ राग दरबारी ’ राजनीमतक जीवन का मचत्र ही नहीं प्रस्तुत करता , बमल्क स्वातंत्र्योत्तर समाज में पररवमतात होते जीवन- मूल्यों , संबंधों के मवघटन आमद की गाथा को अत्यंत यथाथा रूप में प्रभावशाली ढंग से व्यंमजत करता है । डॉ . नंदलाल कल्ला के शब्दों में “ गाँवों की समूची संवेदनात्मक अनुभूमत और वैचाररक मानमसकता , सामामजक सम्बन्ध और मूल्यबोध की संक्रमानात्मक अनुभूमत की पररवमतात और गमतशील अमभव्यमक्त इस कृ मत में सम्पूिा रूप से उपलब्ध है । ग्रामीि जीवन की समस्त मवसंगमतयों , प्राचीन-नवीन मूल्यों का तनाव , मवर्षमता के बेमेल स्वर की स्वीकारोमक्त की गू ंज ‘ राग दरबारी ’ में कदम- कदम प्रमतध्वमनत होती है । ” 13
समाज के स्थामयत्व के मलए व्यमक्तयों का उमचत और ठीक रूप से काया करना आवश्यक है । यमद प्रत्येक व्यमक्त अपनी आवश्यकताएँ सवोपरर माने और अपनी इच्छानुसार काया करने लगे तो सामामजक संरचना के भनन होने की संभावना हो जाती है । इस प्रकार की धारिा को डॉ . गुरचरि मसंह ने
अपने उपन्यास ‘ नागपवा ’ द्वारा स्पसे मकया है- “ जब घर में ही आग लगी हो , अपने ही लोग घर को लूट रहे हों , चारों ओर आगजनी , लूट- हत्या- बलात्कार का बाज़ार का गमा हो , चारों ओर आतंक के तले असुरमक्षत जीवन ज़ी रहे हों- तब हमारा क्या कताव्य है ?” 14 एक अन्य स्थल पर ‘ नागपवा ’ उपन्यास के प्रधान पात्र ममस्टर वम ा का कथन उल्लेखनीय हैं- ‘ व्यमक्त का मवरोध तथा मवद्रोह करना होगा । जब तक वह चुपचाप सहता रहेगा या तटस्थ भाव से घमटत होते हो देखता रहेगा , मूल्यों का मवघटन जारी रहेगा । मूल्यों के मलए , समाज को आधार देने के मलए , जनता को एक जुट होना होगा ।’ 15
उपन्यासकार का सामथ्या सामामजक पररवेश को उसकी अच्छाइयों-बुराइयों के साथ समग्रता में यथाथा रूप से मचमत्रत करना है । श्रीलाल शुक्ल जी की यही खूबी है मक वे पात्रों को पररमस्थमत , युग , समाज के पररप्रेक्ष्य के बीच प्रस्तुत करते हैं । समाज को अनुशामसत रखने के मलए सामामजक नैमतकता परम अपेमक्षत है ।
नैमतकता व्यमक्तगत है और सामामजक भी । समाज की व्यवस्था के मलए दोनों आवश्यक हैं । ‘ राग दरबारी ’ उपन्यास में सामामजक नैमतकता सहायक होने के बजाय उपहास का मवर्षय बन गई है ।
मालवीय जी छंगामल कॉलेज के मप्रंसीपल तथा प्रबंधक वैद्यजी द्वारा मकए जा रहे कायों
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017