Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 235

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
को समझना आम आदमी के बूते की बात नहीं । आज
इलेक्शन , पोस्टरबाजी , नारे , भार्षि इन सभी के पीछे
राजनीमत और राजनीमतज्ञों का जो मघनौना चेहरा हमारे
अनैमतक , भ्रसेाचार काम करता है ।’ 12
सामने है , ‘ नागपवा ’ उपन्यास में उसे यथाथापूिा ढंग से
वैद्यजी और बड़े भैया जैसा व्यमक्त हर युग में
उभारा गया है । बड़े भैया और उनके अमधकारी छल-
नेता ही बनकर रहता है । अंग्रेजों का राज्य हो या
कपट के सहारे प्रधानमंत्री तक अपनी पहुँच बनाएं
भारतीय लोगों का , इनकी नेतामगरी में कोई फका नहीं
रखते है और अपने मवरोमधयों का सफाया करते रहते
पड़ता । अमधकार लालसा और स्वाथा के ये पुतले
है । वह अपने महत के मलए मकसी भी हद तक जा
बहाना इस तरह का करते है मक मानो इनका नेतृत्व
सकते है , मकसी की भी हत्या करवाना वे एक ज़रूरी
समाज में कल्याि के मलए ही है । ऐसे नेता न कभी
काम मानते है , उनके मबछाए जाल में फं सकर डी . सी .
बूढ़े होते है , न बुढ़ापा इन्हें अमधकार से वंमचत बना
पी . वमाा का जो नैमतक पतन होता है , वह बहुत ही
सकता है । पुमलस , सरकारी अफसर सबको ये अपने
स्वाभामवक और मवश्वसनीय लगता है । इसी प्रकार
हाथ का मखलौना बनाते है । इनकी कथनी और करनी
‘ राग दरबारी ’ उपन्यास के पात्र वैद्यजी दोहरे चररत्र के
में बड़ा अंतर होता है ।
व्यमक्त हैं । बाह्य रूप से वह बड़े ही शीलवान ,
चररत्रवान , और प्रजातंत्रवादी व्यमक्त प्रतीत होते है ,
परन्तु भीतर से इसके मबलकु ल मवपरीत भ्रसे , महंसक
एवं शोर्षक व्यमक्त हैं । “ हर बड़े राजनीमतज्ञ की तरह
वे राजनीमत से नफरत करते थे और राजनीमतज्ञों का
राजनीमतक उपन्यासकार व्यमक्त को मकसी
वाद मवशेर्ष का पक्षधर नहीं बनाते , वे तो पाठक को
समाज में खुली आँखों चलने की सलाह देते है ।
जीवन की नस- नस में व्याप्त राजनीमत को श्रीलाल
मज़ाक उड़ाते थे ।” 10 ‘ नागपवा ’ उपन्यास में ऐसे मनकृ से
राजनीमतक हथकं डों को कई स्थलों पर दशााया गया
है । उदहारि- ‘ राजनीमत में वही मटक सकता है जो
शुक्ल ने अपने बहुचमचात उपन्यास ‘ रागदरबारी ’ में
माममाक ढंग से मचमत्रत मकया है । मवमभन्न संस्थाएं
मकस प्रकार राजनीमत के अखाड़े बनते है तथा मवमभन्न
जड़ों में पानी देने वाले की भी खबर रखें और जड़ों
राजनीमतक दलों की गुटबंमदयों की चपेट में देश के
को काटने वालों की भी ।’ 11 दुसरे स्थल पर देमखए
राके श की ममत्र प्रभा का यह कथन ‘ पैसा , पाटी ,
सवागीि मवकास की जड़ों पर कठोर- घात मकया जा
रहा है , मजसकी अमभव्यमक्त ‘ नागपवा ’ और
‘ रागदरबारी ’ दोनों उपन्यासों में बड़ी तीव्रता से हुई है
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017