Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 232

‘ रागदरबारी ’ और ‘ नागपिक ’ उपन्द्यािों का तुलनायमक अध्ययन : राजसनसतक एिं िामासजक पररप्रेक्ष्य में
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725

‘ रागदरबारी ’ और ‘ नागपिक ’ उपन्द्यािों का तुलनायमक अध्ययन : राजसनसतक एिं िामासजक पररप्रेक्ष्य में

मुदसस्िर अहमद भट्ट शोधाथी महंदी मवभाग
कश्मीर मवश्वमवद्यालय श्रीनगर email : mudasirhindi @ gmail . com
तुलनात्मक प्रवृमत मनुष्ट्य की जन्मजात प्रवृमत है । अपनी इसी प्रवृमत के द्वारा ही मनुष्ट्य वस्तुओं में अन्तमनामहत अंतर को तथा उनकी श्रेष्ठता को जान लेता है । ज्ञान की पररपुमसे एवं समृमद्ध वस्तुतः तुलना के मबना संभव नहीं है । तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा मवज्ञान , सामहत्य , कला , उद्योग आमद मवमभन्न क्षेत्रों का अनुशीलन एवं मूल्यांकन मकया जाता है । इसी सन्दभा में श्रीलाल शुक्ल के ‘ राग दरबारी ’ तथा गुरचरि मसंह के ‘ नागपवा ’ उपन्यासों का तुलनात्मक अध्ययन मकया जा रहा है । इस अध्ययन में आलोच्य कृ मतयों में मचमत्रत राजनीमतक एवं सामामजक साम्य- वैर्षम्य का मूल्यांकन मकया जाएगा ।
स्वातंत्र्योत्तर भारत की राजनीमत ने आदशों से स्वाथों तथा मनकृ से कोमट की महत्वाकांक्षाओंतक की यात्रा बहुत कम समय में तय कर ली है तथा अब
यह आवरि हटाकर अपने अत्यंत मवकृ त एवं मघनौने रूप में हमारे समक्ष अट्टहास करती अपनी कु मटल जीत के वीभत्स जश्न मना रही है , मजसका यथाथा मचत्रि बड़े ही सहज ढंग से ‘ राग दरबारी ’ एवं ‘ नागपवा ’ उपन्यासों में हुआ है ।
‘ राग दरबारी ’ उपन्यास में उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल स्वातंत्र्योत्तर राजनीमत के मवमभन्न पक्षों को मवमभन्न रूपों में मचमत्रत करता है । ग्रामीि पररवेश की राजनीमत स्वतंत्रता पिात् मकन पररवतानों एवं पररवेशों से होकर गुजरी है , उसी को उपन्यासकार रेखांमकत करता है और एक मवकृ त एवं मवरूप समाज की तस्वीर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है । राजेश जोशी इस उपन्यास को एक ऐसा रूपक मानते हैं “ जो आज़ादी की कथा और आज़ादी के बाद बने शमक्त के न्द्रों को महीन कु शाग्रता से उजागर करता है ।” 1 वही डॉ . चंद्रकांत वांमदवडेकर का मानना है- “ राग दरबारी ’ स्वातंत्र्योत्तर पररमस्थमत के सम्यक पररवेश को समेटने वाला जीवंत दस्तावेज़ है ।” 2 उपन्यासकार गुरचरि मसंह ने भी अपने उपन्यास ‘ नागपवा ’ में भ्रसे राजनीमतक सत्ता तथा पुमलस तंत्र की मवभीमर्षकाओं को उजागर करने का सफल प्रयास मकया है । इस उपन्यास के सम्बन्ध में डॉ . शैल कु मारी का मत हैं- “ आज़ादी के बाद देश में मवर्षम राजनीमतक और आमथाक मस्थमतयों के कारि उत्पन्न मानव मूल्यों का
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017