Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 220

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
होने का के वल अंत आत्महत्या के रूप में पररिीती , मकन्नर जीवन का एक और सच उपन्यास के माध्यम से हमारे सामने आता है । आमथाक मवर्षमता के चलते मकन्नरों के काया कलापों पर भी लेखक ने प्रयास डाला है मजसमें उनको भीख तक मांगनी पड़ती है यथा- “ मैं मदा रहूँ , औरत रहूँ या मफर महजड़ा बन जाऊं , इससे मकसी को कोई फका नहीं पड़ता , पेट की आग तो न जाने बड़े बड़ों को क्या-क्या बना देती है ।” 16 यहाँ मकन्नर समाज की उस सच्चाई को सामने रखने का प्रयास मकया गया है मजसे दुमनयाँ से मछपाकर रखा जाता है । उभयमलंगी वमजात समाज के तहखाने में झाँकने का लेखक ने भरपूर प्रयास मकया है । यह उस दुमनयाँ की कहानी है मजसे न तो जीने का अमधकार न और न ही सभ्य समाज में रहने का ।
अभी हाल ही में मचत्रा मुद्गल का उपन्यास ‘ पोस्ट बॉक्स नं 203 नाला सोपारा ’ प्रकामशत हुआ है । इसमें लेमखका ने मकन्नर समाज की ददानाक पीड़ा को अमभव्यमक्त देने का प्रयास मकया है । यह उपन्यास मकन्नर समाज की दशा और मदशा से हमारा पररचय कराने में अपनी महती भूममका अदा करता है । उनकी मजन्दगी का हर पाठ यातना , क्रू रता और मचर उपेक्षा का पाठ है । जेंडर के अके लेपन और समाज में सम्मान से जीने की ललक से भरपूर दुमनयाँ के माममाक पहलू को लेमखका ने यहाँ उजागर मकया है । मकन्नरों के दुःख-ददा को बयाँ करता यह उपन्यास स्त्री-मवमशा के बासी , उबाऊ , अथाहीन दम तोड़ते मुद्दों से कहीं दूर जाकर मलखा गया है इसके संदभा में ममता कामलया ‘ नवभारत टाइम्स ’ में मलखती हैं मक “ नाला सोपारा मनतांत नई कथावस्तु प्रस्तुत करने वाला नये मशल्प का उपन्यास है मजसमें मलंगभेदी समाज की समस्या को अत्यंत मानवीय ्टमसे से उठाया गया है ।” 17 मवनोद उफ़ा मबन्नी नामक पात्र को मकन्नर होने का
वीभत्स दंश झेलते हुए मदखाया गया है । जब अन्य महजड़ों को उसके मकन्नर होने का पता चलता है तो वे सब उसे लेने आ जाते है लेमकन तभी उसे उनसे उसके छोटे भाई को मदखाकर बचाया जाता है लेमकन बाद में उसकी पहचान ममटा दी जाती है । इस प्रकार का मुमश्कल कथानक मकन्नर समाज पर गहरी ्टमसे डालने पर मजबूर करता है साथ ही हमें सोचने और समझने पर भी मववश करता है मक कै से इस समाज का मवकास मकया जाये ।
उपयु ाक्त मववेचन से स्पसे है मक हमारे समाज के एक अमभन्न अंग मकन्नर समुदाय पर मलखे गए यह उपन्यास कहीं न कहीं हमारे समाज को मकन्नरों की पीड़ा , दुःख-ददा , जीवन जीने की मवभीमर्षका और भयंकर त्रासद मस्थमत से अवगत कराना चाहते है । मकन्नरकथा यमदीप , तीसरी ताली , गुलाम मंडी , पोस्ट बॉक्स नं 203 नाला सोपारा इन उपन्यासों में एक मकन्नर होने का ददा क्या होता है ? उस नारकीय जीवन में व्याप्त घृिा , अपमान , घुटन और इससे बाहर मनकलने की बैचेनी क्या होती है ? इसका सफल मचत्रि मकया गया है । इन सबसे मुमक्त की कामना करता यह समाज आज अपने सम्मान और अमधकारों की मांग के मलए अपनी झोली फै लाए खड़ा है मजसे हमारे समथान की आवश्यकता है । इस क्षेत्र में और भी उपन्यासों के आने की दरकार हमें है मजससे मकन्नरों के वास्तमवक जीवन को हम पहचान पाए , तामक उनके दुःख ददा , उनकी पीड़ा को समझकर हम उनके अमधकारों तथा सम्मान हेतु समुमचत प्रयास कर सके । यही इस आलेख का उद्देश्य भी है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017