Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 22

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका समदयों से.... कभी कभी लगता ह बदलनी ही होगी चयनमाला.... जीवन की ; मौन से म ख रता की ओर । 3) सिचार-सिमि एक रोज़ दही से मथ मदए सारे मवचार अम्मा न कहे मक यही मवमशा है ! साध लो...!! आँगन में गढ़ी मसल और गहरा गई आजन्म लोढ़े सी अम्मा पीसती है... तीखे मसाले और मवचार बहुत हुआ... मझली का ! कमबख्त बी ए की मकताब क्या क्या मसखा गई ं बहुओ ं को.. बड़की ने तो काट मलए थ प र ू े बारह बरस.... आँगन में खाटों पर स ख ते सूखत पापड़ और बड़ी के साथ सो तो न कौंधे मवचार....! छुटकी भी गाय की घण्टी सी बजती है म द ं म द ं लच्छन की मारी है..!! और ये मझली....हाय!! कोहराम मचा है इसका मक कुछ ज़्यादा ही करती है तक Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 मनाही पर भी मवचारती ह और बेपदाा संवादों स मवमशा साधती है । 4) प्रेसमल कसिताए प्रेम में उमगी जब जब कमवताए कुछ रूपक छाँट बाँट मलए हमन अनहद बहते भावों पर गठजोड़ी बाँध बनाए हमनें ! प्रेम की उपमाएँ भी बहुत अन ठ ू ी होती ह मैं ; त म् ु हारे मलए त म् ु हारी सम्प ि ू ा कमवता हू और त म ु मेरी कमवताओ ं के वे च म् ु बकीय शब्द हो मजससे कमवता दर कमवता मनखर रहा है प्रेममल काव्य... म झ ु े भाता है व्याकरि बने रहना उन च म् ु बकीय शब्दों के बीच क्योंमक म झ ु े भाता है अथा हो जाना मसफ़ा त म् ु हारे साथ ! त म ु म झ ु े मानते रहे हो त म् ु हारी उदात्त कल्पनाए और लगाते रहे हो गोत अतीत या भमवष्ट्य में.... पर मैंने आज को जीना सीखा ह इसीमलए प्रेममल काव्य म त म ु मेरे यथाथा हो । वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017