Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 218

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
इसी कड़ी में ‘ मकन्नर कथा ’ मकन्नर समाज की पीड़ा की पैरवी में मलखा गया उपन्यास प्रबुद्ध पाठक वगा का ध्यान आकमर्षात करता है और मकन्नरों को अपने सम्मान और अमधकारों के प्रमत जागरूक करता है । इसमें समाज , परम्परा और खोखले मूल्यों पर एक साथ चोट करते हुए नवीन जीवन मूल्यों को अमभव्यमक्त प्रदान की गई है । ‘ मकन्नर कथा ’ के माध्यम से मकन्नरों की आह और वेदना की उपमस्थमत दजा की गई है जो अपने ही पररवार और समाज से मनरंतर दुखों की पीड़ा झेलते रहते है । मानव समाज अपने चरम मवकास के युग में प्रवेश करके स्वयं को गोरवामन्वत अनुभव कर रहा है मकं तु समाज का यह वगा अभी भी इस मुख्य धारा से जुड़ नहीं पा रहा है इसके मूल में अनेक कारि मवद्यमान है मकं तु मूल कारि है जन सामान्य की इस वगा के प्रमत हेय मानमसक अवधारिा । इस उपन्यास में राजघराने में जन्मी चंदा की कहानी है मजसके मकन्नर होने का पता चलने पर अपने ही मपता के द्वारा मरवाने का प्रयास मकया जाता है “ उसके खानदान की साख को बट्टा न लगे , वंश में महजड़ा बच्चा पैदा होने के कलंक से बच जाए । कु ल की मयाादा सुरमक्षत रहे , वह सौंप दे अपनी बेटी को मृत्यु का ग्रास बनने के मलए ।” 12 उपन्यास के कथानक में अधूरी देह की पीड़ा , सामामजक उपेक्षा , पारम्पररक एवं पारस्पररक संघर्षा , अवसाद एवं मवद्वेर्ष जैसे नकारात्मक भावों को दशााते हुए लेखक ने मकन्नर समाज की कारुमिक कथा को अमभव्यमक्त देने का प्रयास मकया है । शारीररक रूप से यमद कोई मवकलांग हो तो उसको इतना दंश नहीं झेलना पड़ता मजतना यौमनक रूप से मवकलांग व्यमक्त को । इससे वह मानमसक और शारीररक दोनों ही रूपों में हीन ग्रंमथ का मशकार हो जाता है । इसमें मकन्नरों की अनदेखी , अनसुनी पीड़ा की खुलकर अमभव्यमक्त हो पायी है ।
हम इक्कीसवी सदी के मशीनी युग में जी रहे है मफर भी अपनी परम्परागत धारिाओं और मान्यताओंसे अपना पीछा नहीं छु ड़ा पा रहे है । आज मकन्नर समाज की अत्यंत दयनीय मस्थमत के पीछे हाथ हमारे समाज का ही है जो उन्हें चैन और सम्मान से जीने भी नहीं देता है । समाज की वैचाररक मानमसकता मकन्नरों के उत्थान काया के बारे में सोचने से भी महचमकचाती है , नीरजा माधव ने ‘ यमदीप ’ में मकन्नरों की सामामजक मस्थमत का यथाथा मचत्रि प्रस्तुत मकया है साथ ही इन्हें समाज की मुख्यधारा में बुमनयादी हक देने का मुख्य रूप से प्रयास उपन्यास में मकया गया है । मकन्नर को सामामजक , शारीररक और मानमसक भेदभाव और शोर्षि से गुजरना पड़ता है इस संवेदनशीलता की मस्थमत ने इनकी मस्थमत में और भी अमधक मगरावट उत्पन्न कर दी है । अपनी सामामजक ्टमसे की सम्पन्नता और जागरूकता के बल पर ही लेमखका ने मकन्नरों की यथाथा मस्थमत से पद ा उठाया है सामान्य आम आदमी को मकन्नरों की तकलीफ से कोई लेना-देना नहीं है । उनका मदल मकस प्रकार धड़कता है , कै सी भावनाओं की आकांक्षा करता है इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है क्योंमक वह खुद सामान्य है और मकन्नर असामान्य । मकन्नर समाज अपनी जैमवक असमानता को झेलता है , यमद माता- मपता ऐसी संतान को स्वीकार करना भी चाहे तो इसे हमारा समाज स्वीकार नहीं करने देता , यही सवाल ‘ यमदीप ’ में उठाया गया है । नंदरानी के माता-मपता उसे अपने पास रखना चाहते है , नंदरानी की माता उसे पढ़ा-मलखाकर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती है । नंदरानी की माँ के सामने महताब गुरु सवाल उठाते है मक “ माता मकसी स्कू ल में आज तक महजड़े को पढ़ते मलखते देखा है । मकसी कु सी पर महजड़ा बैठा है । मास्टरी में , पुमलस में , कलेक्टरी में – मकसी में भी अरे
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017