Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 217

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सकन्द्नर िमाज : िम्मान की दरकार िंदना िमाक
िोधाथी- हैदराबाद कें द्रीय मवश्वमवद्यालय , हैदराबाद मपन न . 500046
मेल- vandanahcu @ gmail . com
मो .
9460906022 ‘ मकन्नर ’ नाम सुनते ही एक लज्जा का भाव हमारे मदमाग में आ जाता है , लेखन तो दूर नाम लेने मात्र से भी लोग कतराते है शायद आपने भी यह भाव कभी महसूस मकया हो ! ‘ मकन्नर ’ शब्द सुनते ही हमारे ममस्तष्ट्क में एक मनोग्रंमथ बन जाती है और हम शमा महसूस करने लगते है । ‘ मकन्नर ’ शब्द को मैंने इसीमलए मवशेर्ष जोर देकर कहा तामक आपका ध्यान आकमर्षात हो सके और आप इस शब्द के परे जाकर इनके मलए सोचने और समझने की ्टमसे उत्पन्न कर सके । मकन्नर समाज मजसके साथ मबल्कु ल उपेमक्षत सा व्यव्हार मकया जाता है , उपहास उड़ाया जाता है उसको आज सम्मान की दरकार है । वे आम आदमी की तरह जीने का अमधकार रखते है । आज उनकी व्यथा-कथा , समस्याएँ , उपेक्षा और तकलीफ से हमारे समाज को रू-ब-रू होने की आवश्यकता है । उनको भी समाज की मुख्य धारा , मुख्य समाज में रहने , जीने का अमधकार है । आज सामहत्य उनकी पीड़ा की अमभव्यमक्त के मलए तरस रहा है मकं तु उसको उमचत अमभव्यमक्त नहीं ममल पा रही है । मकन्नर समाज को लेकर अभी तक कम ही लेखन हुआ है लेमकन मजतना भी हुआ है उसने सामहत्य के प्रमत हमारे ्टमसेकोि में खासा पररवतान मकया है ।
सामामजक पूवााग्रह से युक्त हमारा तथा- कमथत सभ्य समाज इस प्रजामत को हेय और घृमित ्टमसे से देखता है । ऐसे कई अवसर आते है जब उन्हें उनके अमधकारों से वंमचत रखा जाता है । चाहे मवद्यालय हो , प्रमशक्षि संस्थान हो या मफर नौकरी देने की बात हो उनके साथ उपेमक्षत व्यवहार मकया जाता है । हमारे गररमामय भारतीय समवधान में इस बात का साफ-साफ उल्लेख है मक जामत , धमा , मलंग के आधार पर नागररकों के साथ भेदभाव नहीं मकया जाएगा । लेमकन मफर भी इन लोगों के साथ यह भेदभाव क्यों मकया जाता है ।
लैंमगक ्टमसे से मववामदत समाज के जो लोग प्राय : ‘ महजड़े ’ कहकर बुलाये जाते है वे जीवन जीने की कशमकश और ऊहापोह के बीच ददानाक जीवन गुजारने पर मववश हो जाते है । इनको समाज द्वारा पररत्यक्त महस्सा माना जाता है और उपहास मकया जाता है जबमक उनके इस प्रकार जन्म लेने में उनका कदामचत दोर्ष नहीं होता है । महंदी कथा-सामहत्य में इन पर अमधक मात्रा में लेखन काया नहीं हुआ है लेमकन मजतना भी हुआ है उन सभी से इनको सम्मान की दरकार रही है । यह लोग भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं . अमधकारों और आम आदमी की तरह जीवन यापन करने की आकांक्षा रखते है । इनके आजीवन संघर्षारत रहने की व्यथा-कथा मचत्रि करने वाले कु छ महत्त्वपूिा उपन्यासों की चचाा मैं यहाँ करना चाहूँगी मजनके माध्यम से लेखकों ने जो मवर्षय अब तक शमा का मवर्षय समझा जाता था उसको प्रकाश में लाने का साहमसक कदम उठाया । इसी क्रम में महेंद्र भीष्ट्म द्वारा मलमखत ‘ मकन्नर कथा ’, नीरजा माधव का ‘ यमदीप ’ प्रदीप सौरभ का ‘ तीसरी ताली ’ मनमाला भुरामड़या का ‘ गुलाम मंडी ’ मचत्रा मुद्गल का ‘ पोस्ट बॉक्स नं . 203 नाला सोपारा ’ का नाम मलया जा सकता है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017