Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 204

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सिक्षा , िंसिधान एिं पािडयिम : एक पुनसिकचार
अधेंदु ( Ardhendu ), शोध छात्र , राजनीमत अध्ययन कें द्र ,
समामजक मवज्ञान संस्थान , जे . एन . यू ., नई मदल्ली ,
110067 . Mail ID- ardhendoo @ gmail . com
क्या स्कू ल मशक्षा के मलए एक ढांचा स्थामपत करना न्याय की बात है ? इस प्रकार हम मनिाय और मवतरि के संबंध में इस प्रश्न को उठाते हैं । पाठ्यक्रम मडजाइन या पाठ्यपुस्तक मडजाइन के संबंध में सबसे महत्वपूिा सवाल न्याय का नहीं बमल्क ज्ञान का है ; वह भी मवशेर्षज्ञों का ज्ञान जो लेखन या मडजाइन करने के काया के साथ ममलते हैं । यह ज्ञान सावाजमनक क्षेत्र में इन लोगों की मवशेर्षज्ञता और स्वीकृ मत से आता है , लेमकन स्वतंत्र भारत के इमतहास के तहत मवमभन्न लोकतांमत्रक शासनों के दौरान प्रमतवामदताएं की गई हैं और इसमलए ज्ञान का यह अमनवाया प्रश्न भी न्याय का सवाल बन जाता है जब इसे लोकतांमत्रक शासन में संबोमधत मकया जाता है । यह सच है मक हम एक लोकतांमत्रक समाज में रहने के मलए स्वीकार करते हैं , ज्ञान के इस प्रश्न को भी न्याय का सवाल बनाते हैं और मूल रूप से उन चीजों को मलखने और मडजाइन करने के मलए ढांचे की मांग करते हैं जो सावाजमनक उपयोग के मलए जाते हैं ; और यहां एक बहुत ही संवेदनशील जनता से पहले यह ढाचा हमारे स्कू ल जा रहे बच्चों के मलए है । एक और चीज को ध्यान में रखा जाना चामहए जो स्कू ल मशक्षा के संबंध में लोकतंत्र की धारिा को कमजोर करने लगता है , जो लोग इन पाठ्यपुस्तकों का प्रयोग करेंगे वे लोकतंत्र के अनुबंध के मलए एक समान पाटी नहीं हैं , मजसका अथा है मक हमने पहले से ही मान मलया है मक मवद्यालय के छात्रों को अभी तक आदशा नागररकों और गुिवत्ता के योगदानकतााओं के रूप में संमम्ममलत होने के मलए प्रमशमक्षत नहीं मकया गया है और यही उनका उद्देश्य है मक मजन जनता के मलए
पाठ्यपुस्तकें मलखी जा रही हैं , उनके पास उमचत संवैधामनक नागररकता का दज ा नहीं है , क्योंमक वे बच्चे हैं और उन्हें उसी रूप में देखा जाना चामहए । जब तक वे उस क्षेत्र में योगदान करने में सक्षम न हो तब तक उन्हें राज्य और समाज की अमतररक्त और मवशेर्ष देखभाल की आवश्यकता होती है ।
भारत के संबंध में जब कोई इस प्रश्न को देख रहा है , तो मुद्दे और मचंताएं हमेशा बढ़ती जा रही हैं , इसका कारि इमतहास , राजनीमत , समाज आमद के संभामवत मडजाइनों के मनम ाि के मलए उपलब्ध संसाधनों की अमधकता है । इस देश में इमतहास लेखन सबसे ज्यादा चुनौतीपूिा राजनीमतक प्रश्नों में से एक है । इतना ही नहीं , मवमवधता के मुद्दों के माध्यम से , देश में मवमभन्न राजनीमतक ताकतों ने स्कू ल जाने वाले बच्चों के मलए पाठ्यपुस्तकों को बदलने की बार-बार कोमशश की है । राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्य पुस्तकों का कोई भी अभ्यास करने के मलए असंख्य ऐसी मचंताओं को ध्यान में रखना होता है और इनमें से कु छ ऊपर वमिात हैं । ऐसा लगता है मक मशक्षा के मलए चौखटे के मुद्दों पर मकसी भी समझौते के मलए रास्ता आगे कम है । मस्थमत वास्तव में कमजोर है यमद कोई एकता मदखाने के मसद्धांतों के बजाय मवमवधता मदखाने के मसद्धांतों का पालन करता है । हमारा मूलभूत मसद्धांत एक संयुक्त लोकतांमत्रक समाज के रूप में खुद को संगमठत करने में है और हमारे पास इसके मलए और साथ ही पहले से एकजुट उपमस्थत होने के मलए बहुत मजबूत संभावनाएं हैं । मेरे मवचार में मशक्षा के मलए सवोत्तम संभव ढांचे के पास देश की संवैधामनक प्रथाओं का आधार होना चामहए और यह अके ले देश में प्रभामवत मन के मलए पाठ्यपुस्तकों को मडजाइन करने के मलए मागादशाक मसद्धांत होना चामहए ।
सिक्षा पर िंसिधान
भारत का संमवधान , जो भारतीय राजनीमत और समाज पर एक मवशाल पाठ है , मुख्य रूप से दो भागों
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017