Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 20

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका क्योंमक पार्षाि होने के कारि त म ु में/आदम जामत की मामनंद मवकमसत नहीं हो सका ह्रदय सागर जो द र ू कर पाता त म ु में समाया मसफा अपना ही अमस्तत्व सवाशमक्तमान होने का अह भ ं ाव। शायद यही वजह है मक अपने आसपास सम च ू ी द म ु नया बसने के बावज द ू नहीं महस स ू कर सक त म ु /कभी भी पंमछयों की चहचहाहट और स य ू ा के शैशवकाल स प्रौढ़ होने तक के अ त ं राल म समामहत/जीवन क अलौमकक परमआनन्द और/शाश्वत सत्य का आत्मबोध। यह सब मकसी मवडंबना का पररचायक नहीं ह बमल्क/यह ख द ु त म् ु हारे ही स्थामपत मकए आदशों और उस ल ों का प्रमतफल ह जो, अब त म् ु हारी मनयमत बन च क े हैं। ---- -ि ब ु ोध श्रीिास्ति, 'माडनक सिला', 10/518, खलासी लाइन्स,कानप र ु (उप्र)-208001. मो.09305540745 ई-मेल: [email protected] Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 दीपक कुमार की कसिताए कसिता-1 भीड़ का कोई चेहरा नही होता ----------------------------- भीड़ का कोई चेहरा नही होता । यह नकाब ओढ़े , सैकड़ो की तादात में आते है । धमा , जामत, मल ग ं ,ऊंच- नीच क आवरि धारि मकए हुए । शेर की खाल में भेमड़ए बन हुए । और न जाने , मकतनों को मौत के घाट उतार जाते हैं । मनमामता , दयमह त ं ा , मह स ं क्ता , क्रूरता, ही इनके औजार है । मजनसे मशकार करते है , यह मास म ू ों का । इनकी अदालत में , बच्चें , ब ढ़ ू े ,ममहला सब एक समान है । हाँ , अगर मन कर जाए इनका , तब, मस्त्रयों की इज्ज़त को तार-तार करने में यह देर नही लगाते । यह धमा के सौदागर भी ह और तथाकमथत संरक्षक भी । और भक्षक भी ,,, यह आदमखोरों की बस्ती है । इनके मलए जान बहुत सस्ती है । मकसी को मारना कौन सी बड़ी बात ह ख़ न ू खराबा करना ही इनका रोजग़ार है । यह भीड़ है साहब और वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017