Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 196

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
होते हैं । इन्हें बच्चों के मक्रयाकलापों एवं मकस प्रकार पढ़ाना है पहले ही बता मदया जाता है । इन योनयताओं के बावजूद अब तो अध्यापक पात्रता परीक्षा ( टी . ई . टी .) भी पास करके आना होता है । इतनी योनयता तो प्राइवेट मवद्यालयों के अध्यापक के पास मुमश्कल से ही ढूंढे ममलेगी । सरकारी मशक्षकों को वेतन से लेकर प्रत्येक प्रकार की सरकार सहायता भी देती है । इन सबके बावजूद हमारे सरकारी स्कू लों की मशक्षि व्यवस्था दयनीय हो गई है । इसकी गुिवत्ता की बात की जाय तो नाम मात्र की हो सकती है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है मैं कु छ स्कू लों को गया जहां बच्चों से राष्ट्रपमत एवं प्रधानमंत्री का नाम पू ंछा जो मक बच्चे नहीं बता पाएं । सम्पूिा साक्षरता अमभयान तो सरकारी कागजों पर ही मदखाई दे रहा है । अगर उसकी वास्तमवकता पता करनी हो तो सरकारी स्कू ल जाकर देखी जा सकती है ।
मक मकसी स्कू ल में छु ट्टी हो गई है । इस प्रकार की मशक्षा मजदूरी करने वाला अमभभावक नहीं दे पाता और सरकारी स्कू लों में मशक्षक ममड-डे-मील मखलाने और पल्स-पोमलयो मपलाने में ही अपना बहुमूल्य समय मनकाल देते हैं । इसी प्रकार की सरकार की गलत तरीके से मक्रयांमवत नीमतयों का मशकार अबोध मवद्यामथायों को बनना पड़ता है । इन बालकों को इस समय यह समझ ही नहीं होती मक उनके भमवष्ट्य के साथ मखलवाड़ हो रहा है । इन्हीं सब कारिों से सरकारी और प्राइवेट स्कू लों की मशक्षा की गुिवत्ता का दायरा मनरंतर बढ़ता जा रहा है ।
वतामान मशक्षा की आवश्यकता एवं अमनवायाता को स्वीकार करते हुए अच्छी , गुिवत्तापूिा एवं नैमतक मशक्षा के मलए प्रयत्न करने होंगे । इसके मलए कमाठ , प्रमशमक्षत , लगनशील , अध्ययनशील एवं संवेदनशील अध्यापक भी चामहए , जो अपने उत्तरदामयत्व को अंतमनामहत कर चुके हों । भारत की नई पीढ़ी को तैयार करने के पमवत्र काया में भागीदारी मनभा सकें । मशक्षा ही ऐसा माध्यम है , मजसके माध्यम से बालक का शोधन एवं मागािंतीकरि मकया जा सकता है । गाँधीजी भी ऐसी मशक्षा के पक्षधर थे मजससे बालक का सवािंगीि मवकास हो सके । 3 सरकारी तंत्र ने इसे समझा नहीं या इसे जानबूझ कर नजरअंदाज कर मदया । मनजी स्कू लों में बच्चों को प्रवेश मदलाने के मकए जो आपाधापी प्रमतवर्षा मचती है , वह मशक्षा के माध्यम से जुड़ाव का नहीं बमल्क अलगाव की कहानी है ।
इसके पिात ले चलते हैं प्राइवेट मशक्षि संस्थानों की तरफ मैंने तो जाकर देखा है मक प्राइवेट स्कू ल मकसी मशक्षाशास्त्री या मकसी उच्चयोनयता प्राप्त व्यमक्त के कम ही ममलेंगे अमधकतर नेताओं एवं मामफयाओंके ही ममलेंगे । इन लोगों का स्कू ल खोलने का एकमात्र लक्ष्य लाभ कमाना होता है । इनसे गुिवत्ता परक मशक्षा का ख्वाब भी करना बेकार है क्योंमक दोनों एक साथ नहीं चल सकते । इन स्कू लों में ज्यादतर अध्यापकों की योनयता इण्टर एवं स्नातक अथ ात अनरेंड ममलेंगे । बहुत कम ही व्यमक्त ममलेंगे जो उस क्लास एवं सम्बंमधत मवर्षय को पढ़ाने की योनयता रखते हैं । प्राइवेट स्कू लों को देखकर ऐसा
सन् 2015 में न्यायालय का मनिाय भारत की लगता है मक मानों मशक्षा का व्यावसायीकरि सा हो
मशक्षा व्यवस्था की वस्तुमस्थमत का बड़ा ही सटीक गया है । बच्चों को स्कू ल की क्लासों से ज्यादा
विान करता है । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर- कोमचंग संस्थान गुिवत्तापरक एवं भमवष्ट्योन्मुखी
प्रदेश सरकार को आदेश मदया मक वे लोग जो लगने लगते हैं । लखनऊ जैसे शहर में सम्पूिा मदन
सरकारी कोर्ष से वेतन पाते हैं , अपने बच्चों का नाम मजधर मनकलो प्रत्येक दो या तीन घंटे बाद कोमचंग
सरकारी स्कू लों में मलखाएं । 4 इस आदेश की सरकारी
संस्थानों की इतनी भीड़ मनकलती है । ऐसा लगता है Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017