Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 175

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
तभी तो देवी बना दी गयी है । यह हर औरत की दास्तान है । न जाने मकतनी कहामनयों को वो अपने में समेटे हुए हैं । आज तक स्त्री चुप्पी साधकर अत्याचार और शोर्षि को सहन कर रही है क्योंमक समाज और पररवार ने उसके होठों को सील मदया है । आज लगता है हमारे साथ इंसान ने ही नहीं भगवान ने भी अन्याय मकया है । क्यों बचपन से ही भगवान ने हमें मवद्रोही नहीं बनाया ? लड़की पैदा होकर हम ने कोनसा पाप मकया ? मजतना हक पुरुर्षों का हैं उतना ही हमारा , मजतनी आजादी पुरुर्षों की हैं उतनी हमारी भी हैं ; मफर क्यों हमें हमारे अमधकारों से वंमचत रखते हो ? हर नारी को अपने अमधकारों के मलए लड़ाई लड़नी होगी । इस लड़ाई की शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी । हर जगह बराबरी का अमधकार हमें भी चामहए । हमारा भी स्वामभमान है , इज्जत है । हम भी हमारा वचास्व चाहते हैं । हम मकसी के गुलाम बनकर जीना नहीं चाहते । लड़की का कन्यादान करने से ही मपता का दामयत्व ख़त्म नहीं हो जाता । हर समय हर क्षेत्र में पुरुर्ष को अपनी बेटी , अपनी बहू और अपनी पत्नी को सम्मान देना होगा । “ लड़की के जैसे-तैसे हाथ पीले करके घर से बाहर धक्का देना है , यह अवधारिा ही दोर्षपूिा है । लड़की को बाहरवालों के मुकाबले अपने घरवालों के अन्याय से पहले बचाना है ।” समाज ने हमें बेमड़यों में कै द कर के रखा है ; अब तोड़ना चाहते हैं हम ये बेमड़याँ । लड़मकयाँ अपने जीवन में कु छ करना चाहती हैं , आगे बढ़ना चाहती हैं । पुरुर्षों को अपनी रुगुि मानमसकता को बदलना होगा । पमत हो या प्रेमी वह स्त्री से शरीर के स्तर पर ही जुड़ना चाहता है । आज स्त्री खुले मवचारों की हैं , आधुमनक हैं , फ़ै शन को अपना रही हैं , उच्च मशक्षा ग्रहि कर रही हैं साथ ही मवमभन्न पदों को प्राप्त कर रही हैं , अपने मवचारों को स्वतंत्र रूप से अमभव्यक्त कर रही हैं ; तो जमहर-सी बात है मक उसे देह के स्तर पर न आँका जाये वह देह से परे भी कु छ हैं । हमें भी स्वामभमान से जीना हैं , हमारे
अमस्तत्व को बचाना है उन भावनाओं में नहीं बहना जो हमें कमजोर बनाती हैं और भेमड़यों का हमथयार बनती है । क्यों पुरुर्ष अपनी मानमसकता बदलने के मलए तैयार नहीं हैं ? कहते है मक औरते ज्यादा पढ़- मलख कर मबगड़ जाती हैं । हाँ हमारे अमधकार पढ़- मलख कर जान मलए तो मबगड़ गयी हम ? तुम्हारे अत्याचार के मखलाफ आवाज उठा ली , पलटकर जवाब देने लगी और घर की चार मदवारी लांगने लगी तो आपको चुबने लगी और हमें बदचलन कहने लगे । तुम्हारे पास अब कोई हमथयार नहीं बचा हमें कै द करने के मलए । “ अगर वह अपने पर हुए जुल्मों-मसतम बयां करती है तो बदचलन कही जाती है । औरत की इज्जत मरद की इज्जत जैसी न हौवे । लुगाई का भाग मरद के खू ंटे से बंधा होवे ।”
मपता व भाई का दामयत्व बहन को दबाये रखकर खत्म नहीं होता । प्रेमी का दामयत्व मवश्वास घात करके ख़त्म नहीं होता , पमत का दामयत्व भोग की वस्तु और बच्चे पैदा करने की मशीन समझ कर पूरा नहीं होता । बेटे का दामयत्व वृद्ध अवस्था में छोड़कर पूरा नहीं होता । समाज का दामयत्व लड़की को आगे बढ़ते देख उसकी टांग खींचना नहीं होता । एक स्त्री ना तो दानवी है , ना वह देवी है ; वह तो मसफा एक मानवी है ।
िंदभक ग्रंथ : -
1 . डॉ . अनीता नेरे , डॉ . योमगता हीरे , ‘ साठोत्तरी महंदी कथा सामहत्य : स्त्री-मवमशा ’, शांमत प्रकाशन , रोतक हररयािा , पृ . 138
2 . वही , पृ . 28
3 . ररनू गुप्ता , ‘ स्त्री मन की व्यथा और अमस्मता की कहामनया ’, समीक्षा , अंक-2 , जुलाई-मसतम्बर 2010 , पृ . 45
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017