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अमधकांश पुरुर्ष पड़दे की आड़ में सज्जनता और
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सह्रदयता का नाटक कर मस्त्रयों के मनबाल मन का लाभ | |
उठाकर उनके साथ मखलवाड़ करते हैं । एक पुरुर्ष | |
अपने क्षमिक वासना की पूमता के मलए न जाने मकतने | |
तरह के दाँव-पेंच इस्तेमाल करता है । प्रेममका को |
जाती हैं । बड़े-बूढ़े हर वक्त उसके कानों में एक ही मंत्र |
धोखा देने के बाद दुमनया और पत्नी की नजर में सीधा |
फू कते ममलेंगे मक उसे पमत में सारा जहाँ देखना है । |
इंसान बनने की कोमशश करता है । वह तो वैसा ही |
पुरुर्ष चाहता है स्त्री उस पर आमथाक रूप से मनभार रहे |
हुआ जैसे ‘ सौ चूहें खाकर मबल्ली हज को चली ।’ |
। अगर वह स्वयं आमथाक रूप से मजबूत हो गई तो |
प्रेम मसफा क्या औरतों के मलए बना हैं ? पुरुर्षों के मलए |
वह उससे आगे मनकल जायेगी और वह उस पर |
तो के वल दैमहक सुख ही बना हैं । अगर ऐसा ही है तो |
अनुशासन नहीं लगा पायेगा । वह नहीं चाहता मक |
हम लड़मकयों को बदलना चामहए । एक पुरुर्ष को प्यार |
औरत उसे भूलकर जीवन में आगे बढ़े वह उसकी |
करने का मतलब अपनी मजंदगी उस पर न्योछावर |
दुमनया अपने तक ही सीममत बनाये रखना चाहता है । |
करना है । औरत ही इस आग में क्यों जलती है ? सीता |
“ अगर तुम उसे छोड़ने के बाद कहीं टीचरी या कोई |
को ही क्यों अमनन-परीक्षा देनी पड़ी ? राम भी तो |
और मामूली सी नौकरी करके गुमनाम-सी होती तब |
अके ले रहे थे ? क्यों उन पर मकसी ने अंगुली नहीं |
वो कभी तुम्हारा मजक्र नहीं करते । पर अब तुम्हारा |
उठाई ? राधा ही प्रेम के नाम पर क्यों ठगी गयी ? |
नाम है , इसमलए उन्हें दुःख होता है कोई भी पुरुर्ष यह |
मनोहर श्याम जोशी के ‘ उत्तरामधकाररिी ’ उपन्यास में | |
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . |
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |