Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 173

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
समाज मस्त्रयों को त्याग , बमलदान की मूमता बनाकर सहनशीलता का मलवाज पहनाता है । जाने मकतनी लड़मकयाँ प्रेम के झूठे बहकावे में आकर आत्महत्या का रास्ता अपना लेती है । वे अपने प्रमत हुए अत्याचार को अपने पररवार से कहेगी तो कोन उनका साथ देगा ? 80 से 90 % लड़मकयाँ डर के कारि पुमलस में ररपोटा दजा नहीं करवाती । ररपोटा मलखवा भी दे तो उसकी ही समाज में बदनामी होगी और बदचलन भी उसे ही कहा जायेगा । आये मदन न जाने मकतनी ख़बरें अखबारों में पढ़ने को ममलती है मजसमें लड़की आत्महत्या कर लेती है । तसलीमा नसरीन लड़मकयों के आत्महत्या करने के बारें में मलखती है मक “ प्यार में असफल होने पर लड़मकयाँ आत्महत्या कर लेती हैं । प्रेमी ने अपमान मकया या मफर धोखा मदया है , वे सोचती हैं इसमलए उन्हें मजंदा रहने की कोई जरुरत नहीं । समस्या का समाधान अमूमन वे इसी तरह करती हैं अपनी मजंदगी को इतना ही तुच्छ समझती हैं ।”
काममनी को मनमथ अपने झूठे प्यार के जाल में फँ साता है । मनमथ काममनी को धोखा देकर भाग जाता है और लौटकर क्षमा-याचना करता है परंतु अब काममनी उसके झूठे प्यार के जंजाल से मनकल चुकी है । वह उसके जीवन में दुबारा प्रवेश करने की कोशीश करता है । जब मनमथ काममनी को लेने उसके घर जाता है तो काममनी दरवाज़ा नहीं खोलती क्योंमक अब वह उस आदमी की असमलयत से वामखफ़ हो चुकी थी । आज उसका सच से सामना हो चूका है । मनमथ को ठुकराने में ही उसके जीवन की साथाक पररिमत नजर आती है क्योंमक अब वह आजाद हो चुकी है । “ वास्तव में ‘ उत्तरामधकाररिी ’ की काममनी के शुरुवाती बेढबपन , भावुक रोमानीपन और सबसे बढ़कर एहसासे-कमतरी से उबरने की कथा है यह उभरना ही उसके आमखरी कृ त्य में प्रदमशात होता है ।”
पमत भी उसे दबाये रखना चाहता है , पाबंधी लगाता है । उसकी मजंदगी घर की चार मदवारी तक ही मसमट कर रह गयी है । झाड़ -बतान , खाना बनाना , पमत की सेवा , बच्चे पैदा करना और इसके अलावा क्या बचा है उसके जीवन में । मपता के घर से लेकर पमत के घर तक उसे पुरुर्ष के मनगरानी में रहने की महदायतें दी
अमधकांश पुरुर्ष पड़दे की आड़ में सज्जनता और
सह्रदयता का नाटक कर मस्त्रयों के मनबाल मन का लाभ
उठाकर उनके साथ मखलवाड़ करते हैं । एक पुरुर्ष
अपने क्षमिक वासना की पूमता के मलए न जाने मकतने
तरह के दाँव-पेंच इस्तेमाल करता है । प्रेममका को
जाती हैं । बड़े-बूढ़े हर वक्त उसके कानों में एक ही मंत्र
धोखा देने के बाद दुमनया और पत्नी की नजर में सीधा
फू कते ममलेंगे मक उसे पमत में सारा जहाँ देखना है ।
इंसान बनने की कोमशश करता है । वह तो वैसा ही
पुरुर्ष चाहता है स्त्री उस पर आमथाक रूप से मनभार रहे
हुआ जैसे ‘ सौ चूहें खाकर मबल्ली हज को चली ।’
। अगर वह स्वयं आमथाक रूप से मजबूत हो गई तो
प्रेम मसफा क्या औरतों के मलए बना हैं ? पुरुर्षों के मलए
वह उससे आगे मनकल जायेगी और वह उस पर
तो के वल दैमहक सुख ही बना हैं । अगर ऐसा ही है तो
अनुशासन नहीं लगा पायेगा । वह नहीं चाहता मक
हम लड़मकयों को बदलना चामहए । एक पुरुर्ष को प्यार
औरत उसे भूलकर जीवन में आगे बढ़े वह उसकी
करने का मतलब अपनी मजंदगी उस पर न्योछावर
दुमनया अपने तक ही सीममत बनाये रखना चाहता है ।
करना है । औरत ही इस आग में क्यों जलती है ? सीता
“ अगर तुम उसे छोड़ने के बाद कहीं टीचरी या कोई
को ही क्यों अमनन-परीक्षा देनी पड़ी ? राम भी तो
और मामूली सी नौकरी करके गुमनाम-सी होती तब
अके ले रहे थे ? क्यों उन पर मकसी ने अंगुली नहीं
वो कभी तुम्हारा मजक्र नहीं करते । पर अब तुम्हारा
उठाई ? राधा ही प्रेम के नाम पर क्यों ठगी गयी ?
नाम है , इसमलए उन्हें दुःख होता है कोई भी पुरुर्ष यह
मनोहर श्याम जोशी के ‘ उत्तरामधकाररिी ’ उपन्यास में
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017