Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
“सजंदगी औरत की’ एक नारी सिमिक”
-सप्रयंका चाहर
नारी मवमशा से तात्पया है नारी का अमस्तत्व और
उसकी अमस्मता को बनाये रखना । उसे आमथाक ,
सामामजक, पाररवाररक, राजनीमतक क्षेत्र में बराबरी
का हक देना । नारी मवमशा की बातें तो बड़ी-बड़ी की
जाती हैं परंतु वह मसफा मकताबों तक ही सीममत होकर
रह गया है । ना ही उस पर अमल मकया जाता है ना
ही उसे व्यवहार में लाया जाता है । मकतनी ही मस्त्रया
स्वयं के अमधकारों को जान पाती है ? प्रभा खेतान
कहती है मक “स्त्री न स्वयं ग ल
ाम रहना चाहती है और
न ही प रु ु र्ष को ग ल
ाम बनाना चाहती है । वह चाहती
है के वल मानवीय अमधकार ।” औरत ही क्यों हमेशा
छली जाती है ? क्यों बचपन से उसे औरत बनाने की
जन्म-घ ट ँ ू ी मपलाना श रू
कर मदया जाता है ? एक
बच्ची का जब जन्म होता है तो सब के चेहरे पर
माय स ु ी छा जाती ह ैं । घर के वातावरि में मवरानापन-
सा छा जाता है , क्योंमक सब तो इ त ं जार बेटे का कर
रहे थे । कुछ इस तरह श रू
होता है उसका जीवन जहा
उसके आने की कोई ख़ श
ी, कोई उल्लास नहीं होता ।
बचपन से ही उसके साथ भेद-भाव मकया जाता है ।
भाई पर ही सारा स्नेह ल ट ु ाया जाता है । भाई-बहन क
परवररश में बड़ा अ त ं र देखने को ममलता है जैसे-
कपडें , मखलौने , खाने , स्कूल और खेलने में आमद ।
बहन को घर का काम और सलीके से रहना मसखाया
जाता है । लड़मकयों को भी मशक्षा, खान-पान, रहन-
सहन, मवचारों की अमभव्यमक्त, जीवन का लक्ष्य
मनधाारि व जीवन साथी को च न ु ने की स्वतंत्रता होनी
चामहए । लड़की हमेशा घ ट ु न भरा जीवन जीती है ।
लड़की को सब से पहले उसे आमथाक रूप स
आत्ममनभार बनने की आवश्यकता है । उसे अपने ही
घर में बार-बार एहसास कराया जाता है मक वह लड़क
की बराबरी नहीं कर सकती; वह तो वंश चलाएगा,
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
पैसा कमायेगा, ब ढ़ ु ापे में सहारा बनेगा और त म ु
सस र ु ाल चली जाओगी । हजारों पाबंदी उसी पर लगा
दी जाती है ; यह मत करो, वह मत करो, यहाँ मत
जाओ, वहाँ मत जाओ, ऐसे मत बोलो, घर वक्त प
आओ हर बात को लेकर बेटी को टोका जाता है ।
यही बात लड़कों पर लागु नहीं होती । आमखर क्यों
यह परंपराएँ एक लड़के को मदा बना देती है मक उसका
औरत पर अमधकार है । वह उसके साथ जो चाहें जैसा
चाहें बतााव कर सकता है । क्यों उसका वह मामलक
बन बैठा है ? वह बचपन से ही असमानता का मशकार
होती है । उसे हर भ म ू मका अच्छी तरह मनभानी है । सब
के कहे अन स ु ार चलना है ; यही हर ररश्ता उसस
अपेक्षा रखता है । स्त्री मकसी से क्या अपेक्षा रखती ह
कोई नहीं जानना चाहता । उस पर क्यों सब मयाादाएँ ,
अमधकार थोपें जाते है ? प रु ु र्ष से यह अपेक्षा क्यों नहीं
रखी जा सकती मक वह अच्छा मपता, भाई, पमत और
बेटा बन सकता है ? स्त्री का जन्म से लेकर मृत्यु तक
एक चक्र बनता है और इस चक्र में वह अनेक
भ म ू मकाएँ मनभाती हैं- पत्नी, बेटी, बहु , बहन आमद,
परंतु इनमें से कोई भी भ म ू मका उसकी प्राथममक
पहचान नहीं होती । पत्नी मकसी की होती है , बेटी
मकसी की होती है , बहु मकसी की और बहन मकसी
की होती है ।
लड़की जब य व ु ा हो जाती है तो अपने अमस्तत्व को
खोजने के मलए घर से बाहर मनकलती है ; तब कदम-
कदम पर उसे इ स ं ान के वेश में भेमड़यें ममलते हैं । वह
अच्छी मशक्षा प्राप्त कर बेहतर जीवन जीना चाहती ह
। कुछ बनकर अपने सपने सच करना चाहती है , अपन
पैरों पर खड़ा होना चाहती है तभी अचानक कोई प रु ु र्ष
प्रेमी बन उसके जीवन में प्रवेश करता है । स्त्री भाव क
होती है इसी बात का वह फायदा उठाता है । वह उस
सब्ज बाग मदखाकर, स ंद ु र-स ंद ु र कल्पनाओ ं में ल
जाकर, मीठी-मीठी बातें कर उसकी मववशता का
फ़ायदा उठाकर उसका शारीररक व मानमसक शोर्षि
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017