Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 171

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका “सजंदगी औरत की’ एक नारी सिमिक” -सप्रयंका चाहर नारी मवमशा से तात्पया है नारी का अमस्तत्व और उसकी अमस्मता को बनाये रखना । उसे आमथाक , सामामजक, पाररवाररक, राजनीमतक क्षेत्र में बराबरी का हक देना । नारी मवमशा की बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं परंतु वह मसफा मकताबों तक ही सीममत होकर रह गया है । ना ही उस पर अमल मकया जाता है ना ही उसे व्यवहार में लाया जाता है । मकतनी ही मस्त्रया स्वयं के अमधकारों को जान पाती है ? प्रभा खेतान कहती है मक “स्त्री न स्वयं ग ल ाम रहना चाहती है और न ही प रु ु र्ष को ग ल ाम बनाना चाहती है । वह चाहती है के वल मानवीय अमधकार ।” औरत ही क्यों हमेशा छली जाती है ? क्यों बचपन से उसे औरत बनाने की जन्म-घ ट ँ ू ी मपलाना श रू कर मदया जाता है ? एक बच्ची का जब जन्म होता है तो सब के चेहरे पर माय स ु ी छा जाती ह ैं । घर के वातावरि में मवरानापन- सा छा जाता है , क्योंमक सब तो इ त ं जार बेटे का कर रहे थे । कुछ इस तरह श रू होता है उसका जीवन जहा उसके आने की कोई ख़ श ी, कोई उल्लास नहीं होता । बचपन से ही उसके साथ भेद-भाव मकया जाता है । भाई पर ही सारा स्नेह ल ट ु ाया जाता है । भाई-बहन क परवररश में बड़ा अ त ं र देखने को ममलता है जैसे- कपडें , मखलौने , खाने , स्कूल और खेलने में आमद । बहन को घर का काम और सलीके से रहना मसखाया जाता है । लड़मकयों को भी मशक्षा, खान-पान, रहन- सहन, मवचारों की अमभव्यमक्त, जीवन का लक्ष्य मनधाारि व जीवन साथी को च न ु ने की स्वतंत्रता होनी चामहए । लड़की हमेशा घ ट ु न भरा जीवन जीती है । लड़की को सब से पहले उसे आमथाक रूप स आत्ममनभार बनने की आवश्यकता है । उसे अपने ही घर में बार-बार एहसास कराया जाता है मक वह लड़क की बराबरी नहीं कर सकती; वह तो वंश चलाएगा, Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 पैसा कमायेगा, ब ढ़ ु ापे में सहारा बनेगा और त म ु सस र ु ाल चली जाओगी । हजारों पाबंदी उसी पर लगा दी जाती है ; यह मत करो, वह मत करो, यहाँ मत जाओ, वहाँ मत जाओ, ऐसे मत बोलो, घर वक्त प आओ हर बात को लेकर बेटी को टोका जाता है । यही बात लड़कों पर लागु नहीं होती । आमखर क्यों यह परंपराएँ एक लड़के को मदा बना देती है मक उसका औरत पर अमधकार है । वह उसके साथ जो चाहें जैसा चाहें बतााव कर सकता है । क्यों उसका वह मामलक बन बैठा है ? वह बचपन से ही असमानता का मशकार होती है । उसे हर भ म ू मका अच्छी तरह मनभानी है । सब के कहे अन स ु ार चलना है ; यही हर ररश्ता उसस अपेक्षा रखता है । स्त्री मकसी से क्या अपेक्षा रखती ह कोई नहीं जानना चाहता । उस पर क्यों सब मयाादाएँ , अमधकार थोपें जाते है ? प रु ु र्ष से यह अपेक्षा क्यों नहीं रखी जा सकती मक वह अच्छा मपता, भाई, पमत और बेटा बन सकता है ? स्त्री का जन्म से लेकर मृत्यु तक एक चक्र बनता है और इस चक्र में वह अनेक भ म ू मकाएँ मनभाती हैं- पत्नी, बेटी, बहु , बहन आमद, परंतु इनमें से कोई भी भ म ू मका उसकी प्राथममक पहचान नहीं होती । पत्नी मकसी की होती है , बेटी मकसी की होती है , बहु मकसी की और बहन मकसी की होती है । लड़की जब य व ु ा हो जाती है तो अपने अमस्तत्व को खोजने के मलए घर से बाहर मनकलती है ; तब कदम- कदम पर उसे इ स ं ान के वेश में भेमड़यें ममलते हैं । वह अच्छी मशक्षा प्राप्त कर बेहतर जीवन जीना चाहती ह । कुछ बनकर अपने सपने सच करना चाहती है , अपन पैरों पर खड़ा होना चाहती है तभी अचानक कोई प रु ु र्ष प्रेमी बन उसके जीवन में प्रवेश करता है । स्त्री भाव क होती है इसी बात का वह फायदा उठाता है । वह उस सब्ज बाग मदखाकर, स ंद ु र-स ंद ु र कल्पनाओ ं में ल जाकर, मीठी-मीठी बातें कर उसकी मववशता का फ़ायदा उठाकर उसका शारीररक व मानमसक शोर्षि वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017