Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 17

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
और दोनों मे ज्यादा का फका नहीं है एक में हमें मुजररम का पता होता है दूसरें में हम कौन की तलाश करते है ये तलाश बहुत लम्बी होती है मजसमें शहर की कई पीमढ़याँ गुजर जाती है ।
हमारा शहर हरेक साल रोता है मकसी न मकसी ददा से - अब आँखों में आँसू नहीं है बस चेहरे पर उसकी धार बाकी है जो बहुत गहरी हो चली है हमारा शहर ......।
जब तक तुम्हारे हाथों में
जब तक तुम्हारे हाथों में मेरी मजंदगी का माँझा था गगन की ऊँ चाईयों से डर नहीं लगता था हवा का रूख कोई हो उड़ने से डर नहीं लगता था जब तक तुम्हारे हाथों में ....
दोपहर की तमपश बेसर होती थी क्योंमक शाम होते तुम - अपने पास बुला लेती थी तुम्हारे हाथों की कं पन मुझे तुमसे उँचाई व दूरी बता देती थी उन काँपते हाथों में एक मवश्वास था मक तुम मुझे कु छ भी हो जाए
छु टने टुटने कटने - न दोगी इस पतंगों की भीड़ में ।
बच्चे अब सखलौने के सलए
बच्चे अब मखलौने के मलए मजद्द कहाँ करते वो तो इस बात पर अड़ जाते है मक - आज बोतल का दूधु नहीं मपऊँ गा मपऊँ गा तो – मसफा ममा का दूधु ।
मपता को बहाना करने नहीं आता करता भी है तो पकड़ा जाता इसमलए माँ रोज मपता को एक बहना देकर जाती मक आज वह इस बात पर मजद्द पर आए तो क्या कहना तुम । लेमकन – मपता उस बहाने से भी बच्चा को समझा नहीं पाता क्योंमक – बच्चा जानता है मपता के पास रोज एक बहाना होता ।
और – ये मजद्द - रोने बदल जाता है रोना मससमकयों में बदल जाता मससमकयाँ लेते – लेते जब वह थक जाता मपता के सीने से लग कर सो जाता ।
आधी रोतों में अध-मनंद में बच्चा
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017