Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 169

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
अपना नाम बदलू ँ । वैसे भी आजकल शादी के बाद भी कौन बदलता है । मुझे कु छ नहीं चामहए , मसफा दूबे जी ... यहाँ तक मक कोई संतान तक नहीं ।” 18
‘ गोमा हंसती है ’ मैत्रेयी पुष्ट्पा की अनमेल मववाह पर आधाररत कहानी है । अनमेल मववाह सदैव से ही स्त्री- पुरुर्ष के सम्बन्ध में दरार पैदा करने का कारि बना है । मववाह तो हो जाता है लेमकन यह सम्बन्ध के वल झेला जाता है , गोमा एक सु ंदर और सुशील लड़की है । जबमक मकड्ढा एक आंख का काना कु रूप है । वह काना है इस कारि उसका मववाह नहीं हो रहा है । पड़ोस की चाची मकसी तरह अपनी ररश्तेदारी में कहीं उसके मववाह की बात चलाती हैं और बोलती हैं- “ मैं जानती हूँ मक बेमेल ररश्ते की बात चलायी है मैंने , पर बैयारवानी हूँ , करमजली के मलए इतना तो कह ही सकती हूँ मक इस खू ंटे बंध जाए । क्या मालूम कौन कसाई मोल देकर हांक ले जाए ? मकड्ढा जैसा हीरा मफर कहाँ ममलेगा ?” 19 मकसी तरह मकड्ढा का बापू गोमा के मपता को पैसा देकर , गोमा की शादी मकड्डा से करवा देता है । मकड्ढा गोमा की सुमवधा के मलए पानी का नल लगवा देता है । यह देखकर आस-पास के लोग मचढ़ते हैं और व्यंनयात्मक शैली में बोलते हैं- “ खसम की एक आँख पर सबर मकया है तो ‘ नल ’ का पानी तो मपयेगी ही । लाड़ली है काने की । गाड़ी-भर रुपया फे ककर लाया है , बाप ने डमलया में धरकर बेची और गरब देख लो पटरानी पद्मनी जी का ।” 20
खसम ? रांड हो गई ? मतररया चमलत्तर ! पड़ी रह भूखी- प्यासी ! देखें मकतने मदन चलेगा तेरा स्वांग ?” 21 समय मकतना भी बदल जाए , लोग मकतने भी अपने आप को माडना बना लें लेमकन आज भी कोई स्त्री या पुरुर्ष अपने जीवन साथी के मकसी और के साथ सम्बन्ध नहीं देख सकते हैं । जब बलीमसंह और गोमा का सम्बन्ध मकड्ढा के बदााश्त से बाहर हो जाता है तब वह गोमा पर झपटता है- “ आयन्दा यह मेरे घर आया तो तेरा मसर फोड़ डालू ँगा कु मतया इस हरामी को फें क दू ंगा गोद से उठाकर , उस भुजंग को देखकर मखलती है सूरजमुखी ! मुझे देखकर तेरा मुहँ तोरई की तरह लटक जाता है ।” 22
स्त्री- पुरुर्ष की तुलना में सदैव से ही भावुक और कमजोर मदल की रही है । उससे मकसी का भी दुःख बद ाश्त नहीं होता है , पुरुर्ष स्त्री की तुलना में कठोर मदल का होता है । वह अंदर-बाहर दोनो से ही कठोर होता है । जब पुरुर्ष स्त्री की भावुकता को समझ नहीं पाता तब स्त्री और पुरुर्ष में तनाव का माहौल बन जाता है । उनके संबंधों में एक मबखराव सा आने लगता है । उर्षा यादव की कहानी ‘ आदमखोर ’ दहेज समस्या पर आधाररत कहानी है , मजसमें दहेज के मलए स्त्री का मकस प्रकार मवमभन्न प्रकार से शोर्षि मकया जाता है यह मदखाया गया है । अंत में उसे जला कर मार मदया जाता है , लेमकन यह सब शोर्षि देखकर उनके पड़ोस में रहने वाले दंपमत्त में तनाव आने लग जाता है । छमव चाहती है मक इस शोर्षि के मखलाफ कु छ करना चामहए लेमकन संदीप की इस मामले में कोई प्रमतमक्रया नहीं ममलती है । वह कहता है मक- “ तुम समझती क्यों नहीं , यह उनका व्यमक्तगत मामला है । महज तमाशबीन की तरह वहाँ ताक-झांक करने वाली औरतों की बात छोड़ दो , कोई मजम्मेदार आदमी तुम्हें इस मामले में संजीदा मदखाई देता है ? मकसी शख्स को तुमने कु छ बोलते देखा है ?” 23 छमव और संदीप की
स्त्री-पुरुर्ष कोई भी मकतना भी सुखी रह ले लेमकन कमी कभी भी छु पती नहीं है । मकसी भी स्त्री या पुरुर्ष को एक भरपूर , मबना मकसी कमी के जीवन साथी चामहए । गोमा मकड्ढा के ममत्र बलीमसंह से यौन सम्बन्ध रखने लगती है । इस बात की भनक मकड्ढा को लगती है वह बौखला जाता है । “ उसका मन हुआ , गामलयाँ दे । उठाकर पटक दे गोमा को । साली शोक मना रही है ? चूमड़यां-मबंमदया फोड़कर रो रही है ! मर गया तेरा
मानमसकता में काफी अंतर है । संदीप छमव को नहीं Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017