Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
इक्कीििीं िदी की सह द ं ी कहासनयों में स्त्री की
बदलती िामासजक छसि
सप्रयंका िमा
मह द ं ी एवं त ल
नात्मक सामहत्य मवभाग
महात्मा गांधी अ त ं रराष्ट्रीय मह द ं ी मवश्वमवद्यालय, वधा
ई मेल[email protected]
इस धरती पर कुदरत ने स्त्री और प रु ु र्ष दोनों
को एक समान ब म ु द्ध, शमक्त और सामथ्या के साथ पैदा
मकया है। जीवन रूपी गाड़ी को आगे बढ़ाने में दोनों
की भ म ू मका महत्वपूिा है , दोनों एक द स ू रे के प र ू क हैं।
एक के मबना द स ू रे के अमस्तत्व की कल्पना नहीं की
जा सकती। भारतीय दशान में जहाँ प रु ु र्षों को आय एव
रक्षा का माध्यम माना गया है वहीं नारी को द ग ु ाा ,
सरस्वती, लक्ष्मी आमद के रूप में प्रमतमष्ठत मकया गया
है। भारतीय समाज में मस्त्रयों को सदा प रु ु र्षों से कमतर
आँका गया। अबला, कमजोर और मनबाल कहकर
उसका उपहास उड़ाया गया। एक तरफ उसे देवी का
दजाा मदया गया तो, द स ू री तरफ उसके साथ अमानवीय
व्यवहार मकया गया। परंपरा और धमा का सहारा लेकर
मपतृसत्तात्मक समाज ने उसे बेमड़यों में जकड़ कर
रखा। धीरे -धीरे नारी की मस्थमत बद से बदतर होती
चली गयी। प रु ु र्षों द्वारा नारी को उसके कोमल ग ि ु ों-
दया, ममता, मवश्वास, श्रद्धा आमद की आड़ में छला
जाने लगा। रक्षा की आड़ में मपतृसत्तात्मक समाज न
ममहलाओ ं के अमधकारों को सीममत कर उन्हें प र ू ी तरह
से प रु ु र्षों पर आमश्रत कर मदया। पररिामतः समाज म
मस्त्रयों की मस्थमत और भी भयावह होती चली गयी।
19वीं सदी के उत्तराद्धा से ममहलाओ ं की
सामामजक मस्थमत में स ध ु ार हेतु वैमश्वक स्तर पर अनेक
आ द ं ोलन मकए गये , मजनमें स्वयं ममहलाओ ं ने अपन
अमधकारों के मलये बढ़-चढ़ कर महस्सा मलया और
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
स्त्रीयों के उत्थान हेतु कई कदम भी उठाये। स्वतंत्रता
प्रामप्त के बाद मशमक्षत व सक्षम ममहलाओ ं के ्टमसेकोि
में बदलाव आया। वे पररवार व समाज में अपनी
भ म ू मका को लेकर शारीररक व मानमसक रूप से संघर्ष
करती रहीं। स्वतंत्रता की प्रामप्त के बाद मस्त्रयों क
स्वरूप में होने वाले पररवतानों के संदभा में डॉ॰ वीरें द्र
मसंह मलखते हैं- “एक ओर जहाँ पररवार का परंपरागत
स्वरूप टूटा, वहीं द स ू री ओर स्त्री स्वतंत्रता के कारि
नवय व ु क मस्त्रयों के स्वरूप में पररवतान आया। जो
मस्त्रयाँ आजीमवका के साधन स्वयं ज ट ु ाती थीं उनकी
मानमसकता में धीरे -धीरे व्यापक पररवतान आया और
इस प्रकार उन्होंने जीवन और मचंतन के स्तर पर प रु ु र्षों
के समान ही स्वयं को प्रस्त त ु करने की कोमशश की”।
स्पसे है मक देवी की उपामध के ब ध ं न को तोड़ती आज
की बहुम ख
ी प्रमतभाशाली ‘स्त्री’ सतत स घ ं र्षा का
पररिाम है। जहाँ उसने स्वयं को प रु ु र्ष आल ब ं न से म क्त
एक स्वत त्र ं अमस्तत्व माना है।
21वीं सदी में मस्त्रयों ने सफलता के मवमभन्न
आयामों को छुआ है। वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र म
अपनी कामयाबी का परचम लहराते हुए प रु ु र्षों क
समकक्ष खड़ी ही नहीं बमल्क उनके वचास्व को भी
च न ु ौती दे रही हैं। अपनी मेहनत के बल पर उसने स्वय
का एक अलग अमस्तत्व व पहचान कायम की है।
आज की स्त्री परंपरा के खोल को तोड़ कर नए-नए
आयाम स्थामपत करने में ज ट ु ी है। वे अब परंपरा व
रीमत-ररवाज के नाम पर मकसी भी प्रकार का शोर्षि,
दमन व अत्याचार सहन नहीं करती बमल्क अन्याय क
मखलाफ प र ू ी ताकत के साथ संघर्षा करने को तत्पर है।
आज की जागरूक स्त्री द स ू री मस्त्रयों को भी जागरूक
करने को तत्पर है। उसकी लज्जा, शमा , सहनशीलता
का स्थान उसके अमस्तत्व के होने की जद्दोजहद ने ली।
इस बदलते हुए परर्टश्य में हमारे य व ु ा कहानीकारों न
स्त्री मजजीमवर्षा के बदलते तेवर को अपनी कहामनयों
में रे खांमकत मकया और बदलते समय, पररवेश ,
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017