Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 160

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका इक्कीििीं िदी की सह द ं ी कहासनयों में स्त्री की बदलती िामासजक छसि सप्रयंका िमा मह द ं ी एवं त ल नात्मक सामहत्य मवभाग महात्मा गांधी अ त ं रराष्ट्रीय मह द ं ी मवश्वमवद्यालय, वधा ई मेल[email protected] इस धरती पर कुदरत ने स्त्री और प रु ु र्ष दोनों को एक समान ब म ु द्ध, शमक्त और सामथ्या के साथ पैदा मकया है। जीवन रूपी गाड़ी को आगे बढ़ाने में दोनों की भ म ू मका महत्वपूिा है , दोनों एक द स ू रे के प र ू क हैं। एक के मबना द स ू रे के अमस्तत्व की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय दशान में जहाँ प रु ु र्षों को आय एव रक्षा का माध्यम माना गया है वहीं नारी को द ग ु ाा , सरस्वती, लक्ष्मी आमद के रूप में प्रमतमष्ठत मकया गया है। भारतीय समाज में मस्त्रयों को सदा प रु ु र्षों से कमतर आँका गया। अबला, कमजोर और मनबाल कहकर उसका उपहास उड़ाया गया। एक तरफ उसे देवी का दजाा मदया गया तो, द स ू री तरफ उसके साथ अमानवीय व्यवहार मकया गया। परंपरा और धमा का सहारा लेकर मपतृसत्तात्मक समाज ने उसे बेमड़यों में जकड़ कर रखा। धीरे -धीरे नारी की मस्थमत बद से बदतर होती चली गयी। प रु ु र्षों द्वारा नारी को उसके कोमल ग ि ु ों- दया, ममता, मवश्वास, श्रद्धा आमद की आड़ में छला जाने लगा। रक्षा की आड़ में मपतृसत्तात्मक समाज न ममहलाओ ं के अमधकारों को सीममत कर उन्हें प र ू ी तरह से प रु ु र्षों पर आमश्रत कर मदया। पररिामतः समाज म मस्त्रयों की मस्थमत और भी भयावह होती चली गयी। 19वीं सदी के उत्तराद्धा से ममहलाओ ं की सामामजक मस्थमत में स ध ु ार हेतु वैमश्वक स्तर पर अनेक आ द ं ोलन मकए गये , मजनमें स्वयं ममहलाओ ं ने अपन अमधकारों के मलये बढ़-चढ़ कर महस्सा मलया और Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 स्त्रीयों के उत्थान हेतु कई कदम भी उठाये। स्वतंत्रता प्रामप्त के बाद मशमक्षत व सक्षम ममहलाओ ं के ्टमसेकोि में बदलाव आया। वे पररवार व समाज में अपनी भ म ू मका को लेकर शारीररक व मानमसक रूप से संघर्ष करती रहीं। स्वतंत्रता की प्रामप्त के बाद मस्त्रयों क स्वरूप में होने वाले पररवतानों के संदभा में डॉ॰ वीरें द्र मसंह मलखते हैं- “एक ओर जहाँ पररवार का परंपरागत स्वरूप टूटा, वहीं द स ू री ओर स्त्री स्वतंत्रता के कारि नवय व ु क मस्त्रयों के स्वरूप में पररवतान आया। जो मस्त्रयाँ आजीमवका के साधन स्वयं ज ट ु ाती थीं उनकी मानमसकता में धीरे -धीरे व्यापक पररवतान आया और इस प्रकार उन्होंने जीवन और मचंतन के स्तर पर प रु ु र्षों के समान ही स्वयं को प्रस्त त ु करने की कोमशश की”। स्पसे है मक देवी की उपामध के ब ध ं न को तोड़ती आज की बहुम ख ी प्रमतभाशाली ‘स्त्री’ सतत स घ ं र्षा का पररिाम है। जहाँ उसने स्वयं को प रु ु र्ष आल ब ं न से म क्त एक स्वत त्र ं अमस्तत्व माना है। 21वीं सदी में मस्त्रयों ने सफलता के मवमभन्न आयामों को छुआ है। वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र म अपनी कामयाबी का परचम लहराते हुए प रु ु र्षों क समकक्ष खड़ी ही नहीं बमल्क उनके वचास्व को भी च न ु ौती दे रही हैं। अपनी मेहनत के बल पर उसने स्वय का एक अलग अमस्तत्व व पहचान कायम की है। आज की स्त्री परंपरा के खोल को तोड़ कर नए-नए आयाम स्थामपत करने में ज ट ु ी है। वे अब परंपरा व रीमत-ररवाज के नाम पर मकसी भी प्रकार का शोर्षि, दमन व अत्याचार सहन नहीं करती बमल्क अन्याय क मखलाफ प र ू ी ताकत के साथ संघर्षा करने को तत्पर है। आज की जागरूक स्त्री द स ू री मस्त्रयों को भी जागरूक करने को तत्पर है। उसकी लज्जा, शमा , सहनशीलता का स्थान उसके अमस्तत्व के होने की जद्दोजहद ने ली। इस बदलते हुए परर्टश्य में हमारे य व ु ा कहानीकारों न स्त्री मजजीमवर्षा के बदलते तेवर को अपनी कहामनयों में रे खांमकत मकया और बदलते समय, पररवेश , वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017