Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 152

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
की ममत्र नहीं होती । 6 कहीं पर कोई स्त्री पराये पुरुर्ष के संग रमि कर रही है , तो कहीं कोई पुरुर्ष पराई नारी के साथ 7 , पर ऐसे लोग की संख्या आज की अपेक्षा बहुत कम थी ।
उस समय भी अराजक तत्त्वों से बहू-बेमटयों की अमस्मता का खतरा था । 8
बौद्धकालीन समय में मवधवाओं की मस्थमत बहुत ही दयनीय थी । समाज में मवधवा होना अमभशाप समझा जाता था । आज भी शुभ कायों में मवधवा का प्रवेश वमजात है । लोग सबेरे-सबेरे मवधवा का मु ँह देखना अपशकु न मानते हैं । कृ शा गौतमी नामक थेरी अपने इस दुःख के मवर्षय में कहती है-
“ हत भाग्यानारी ! तेरे दो पुि काल कवसलत हो गये । मागष में तुमने मृत पीटीआई को देखा ! अपने माता-सपता और भाई को एक सचता में जलाये जाते हुए देखा ।” 9
और भी-
“ स्त्री होना दुुःख है .......( सवद्वेर्ी ) िपसत्नयों के िाथ एक घर में रहना दुुःख है । कोई कोई जजने वाली मातायें एक बार में ही मृत्यु चाहती हुई अपना गला काट लेती हैं । तासक पुन : उन्द्हें यह
दुुःख न िहना पड़े , कु छ िुकु माररयााँ सवर् भी खा लेती थी ।” 10
प्रत्येक काल की तरह उस समय भी माता- मपता का स्थान बहुत ही उच्च माना जाता था । ममहलायें व्यापार , खेती-बाड़ी आमद का काया नहीं करती थीं । ये सारे काया पुरुर्ष के मजम्मे होते थे । उस समय कहीं-कहीं मलखा ममलता है मक- मस्त्रयाँ सावाजमनक स्थानों पर नहीं बोल सकती थीं , तो कहीं- कहीं मलखा ममलता है की ममहलायें भी पुरुर्षों के समान शास्त्राथा में भाग लेती थीं । इस समय में मस्त्रयों को पढने-मलखने की छू ट थी । राजघरानों में मशक्षा देने वाली ममहलाओं को ‘ उपाध्यामयका ’ कहा जाता था । उस समय की एक उपाध्यामयका पद्मावती का नाम ममलता है । नाररयाँ गीत संगीत में भी मनपुि होती थी । राजा रुद्रायन की पत्नी चन्द्रप्रभा एक प्रमसद्ध नृत्यांगना थी । मस्त्रयाँ शास्त्राथा में भी भाग लेती थीं । वे प्रव्रज्या ले सकती थी । असामामजक काया करने वाली मस्त्रयों के कान , नाक काट मलए जाते थे । 11 उस समय परदा प्रथा नहीं थी । मस्त्रयों का क्रय-मवक्रय भी उस समय होता था ।। आज इसका नाम बदल कर ‘ रेड लाइट एररया ’ हो गया है । दामसयों ( रखैल ) रखने का भी प्रचलन था कु छ लोग दामसयों से मववाह भी कर लेते थे , परन्तु तब भी उन दामसयों की समाज में कोई इज्जत नहीं थी । उन दामसयों से अमधक खराब मस्थमत उनके पुत्रों
6
जातक ( मद्वतीय खण्ड ), भदन्त आनन्द कौसल्यायन , महन्दी
10
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
सामहत्य सम्मेलन प्रयाग , संस्करि 1985 ई ., पृष्ठ 309
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
7
जातक ( मद्वतीय खण्ड ), भदन्त आनन्द कौसल्यायन , महन्दी
108
सामहत्य सम्मेलन प्रयाग , संस्करि 1985 ई ., पृष्ठ 320 ,
10
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
424
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
8
पामल एवं प्राकृ त मवद्या एक तुलनात्मक अध्ययन , डॉ .
114
मवजय कु मार जैन , मैत्री प्रकाशन , गोमतीनगर , लखनऊ ,
11
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
प्रथम संस्करि 2006 ई ., पृष्ठ 157
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
9
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
119
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
113
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017