Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 149

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पररचाररका , दासी , मनलाज्ज , मनगामत , मनराश्रम , कामुक आमद लोगों की भीड़ लगी है । फू लों के मालाएँ बनाये जा रहे हैं । सुगंमधत वस्तुओं के धूप जलाये जा रहे हैं । मसर की सफाई हो रही है । के श के जूड़े बनाये जा रहे हैं । गहने लाये जा रहे हैं । दलाल इधर-उधर घूम रहा है । चुगलखोर गप्पें मार रहा है । शयनगृह को सजाया जा रहा है । इसी तरह अनेक कायों में व्यस्त आमशक लोगों को देमखए । पुनः मकस तरह आमशक कृ मत्रम लज्जा , कृ मत्रम यौवन , धनलोलुप , कृ मत्रम मवनय से युक्त शीलवती , मवलासवती , करुिावती , हृदयहाररिी , यौवनश्री , सवािंगसुन्दरी , पररहास पेशली सुन्दरी के समूह को देखने को मलए अपने चारों पुरुर्षाथा गुिों -जामत , लज्जा , धन और प्रमतष्ठा की उपेक्षा कर रहे हैं ।
कु िनी-िणकन विारत्नाकर के चतुथा कल्लोल में वमिात चुगली करने वाली स्त्री के प्रसंग के माध्यम से लेखक ने कु टनी स्त्री का मनोवैज्ञामनक मवश्लेर्षि मकया है । मकसी भी स्त्री या पुरुर्ष का कु टील स्वभाव कु छ अभाव के कारि ही होता है । मममथलांचल में आरंभ से अद्यतन तक मस्त्रयों को दबाकर रखने की कठोर परंपरा बलवती रुप में जीमवत है । स्त्री ही अमधकांशत चुगलखोर या कु टनी स्वभाव की क्यों होती है ? कारि स्पसे है मक जन्म के समय से ही उसके साथ पररवार और समाज की ओर से मवर्षम व्यवहार मकया जाता है । उसके जीवन की अमभलार्षा अधूरी ही रह जाती है । वह जीमवत रहती है तो अपने बल-बूते पर । उसके ऊपर मकसी का सहारा या मवशेर्ष छत्रछाया नही होता है । यही कारि है मक उसके जीवन की अलभ्य अमभलार्षा उसे जलन के मलए बाध्य कर देती है और दबी हुई महत्वकांक्षा प्रमतरोध के रुप में प्रबल वेग के साथ फू ट पड़ती है । इस प्रकार एक साधारि स्त्री से चुगलखोर या कु टनी स्वभाव वाली स्त्री का जन्म होता है-
“ अथकु ट्टनीिण्णक ... कु िनी देषु ” [ पृ . िं . 45-46 , पंसक्त िं . 14-5 ]
प्रस्तुत पंमक्तयों में लेखक ने कु टनी ( चुगली करनेवाली ) स्त्री के स्वरुप का विान मकया है । कु टनी स्त्री देखने में ऐसी लगती है जैसे तीन सौ वर्षा की वृद्धा हो , माका ण्डेय ऋमर्ष की ज्येष्ठ सहोदर बहन हो , नारद की सहोदर घटक हो , मवष्ट्िुमाया जैसी संघटक हो ; मानो सती की सतीत्व भंग करने आयी हो , कु लवधु को कु लटा बनाने आयी हो , कामदेव का रसना फट गया हो , वासना यौवन का त्याग कर मदया हो ; उसके भौं पके हुए हैं , गाल धँसे हुए हैं , दाँत टूटे हुए हैं तथा बाल जुट जैसे श्वेत हैं ; उसकी त्वचा मसकु ड़ी हुई है , काया मांसमवहीन है ; उसका मसर उभरा हुआ है ; बोलते समय उसका अधर महलने लगता है ; उसकी बुमद्ध कु मटल है ; उसका स्वभाव लोभी की बेटी जैसी है । कु टनी यमराज से मववाद करती है । यमराज कहता है मक में तुम्हें यमलोक ले जाउँगा । इसपर कु टनी यमराज से एक वर्षा की अवमध प्रदान करने के मलए याचना करती है , तामक वह इस अवमध में नगर का शेर्ष आनन्द उठा सके ।
कमवशेखराचाया ज्योमतरीश्वर ठाकु र की रचना ‘ विारत्नाकर ’ के सवािंग अध्ययन से उस युग के सामामजक , सांस्कृ मतक , राजनीमतक और धाममाक पररवेश की यथाथा और सुमधुर झाँकी मदखाई पड़ती है । इसके साथ ही लेखक ने अपने इस प्रथम गद्य ग्रंथ के माध्यम से तत्कामलन मैमथल समाज के स्त्री के मवमवध स्वरुप , दशा एवं शारीररक सौष्ठव का जो मचत्रधार प्रस्तुत मकया है , उससे लेखक के पुरुर्षोमचत ्टमसेकोि के साथ- साथ स्त्री के प्रमत उनके कोमल भाव का भी आभास होता है ।
सहन्द्दी सिभाग , पांसडचेरी सिश्वसिद्यालय , पुदुचेरी मो . -9443057237 ,
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017