Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 147

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
वण्यावस्तु के उपमा और उपमान का ऐसा नवीन और भावप्रवि प्रयोग संपूिा सामहत्य संसार में दूलाभ है । मैमथल सामहत्य के इस प्रकाण्ड मवद्वान की मवद्वता के समक्ष सामहत्य संसार नतमस्तक रहेगा-
“ स्िग्यक , मययक , पातालक ........... िंयुक्त सिभूिनमोसहनी देषु ।” [ पृ . िं . 24 , पंसक्त िं 9-20 ]
लेखक ज्योमतरीश्वर ठाकु र विारत्नाकर के मद्वतीय कल्लोल में मत्रभूवन-मोमहनी नामयका के अलौमकक रुप-सौन्दया का विान करते हुए मलखते हैं मक मानो मवधाता ने , मत्रभूवन- स्वगालोक , मृत्युलोक और पाताललोक से सौन्दया को एकमत्रत कर अपूवा नामयका की रचना मवश्वकमाा द्वारा करवाया है ; मजसके मुख की शोभा को देखकर कमल पानी में प्रवेश कर गया ; के श की शोभा को देखकर त्वचा पलायन कर गया ; दाँत की शोभा को देखकर दामड़म का हृदय मवदीिा हो गया ; अधर की शोभा को देखकर प्रवाल द्वीप के अन्दर चला गया ; कान की शोभा को देखकर बौद्ध ध्यानावमस्थत हो गए ; कं ठ की शोभा को देखकर शङ् ख समुद्र में प्रवेश कर गया ; स्तन की शोभा को देखकर चक्रवात उमछन्न हो गया ; बाहुयुगल की शोभा को देखकर कमल का नाल पङ् क-मनमनन हो गया ; हाथ की शोभा को देखकर पल्लव त्रस्त हो गया ; जाँघ-युगल की शोभा को देखकर कदली मवपरीत गमत कर मलया ; चरि की शोभा को देखकर स्थलकमल मनकु ञ्ज में आश्रय ले मलया । ऐसे रत्नालंकार से युक्त मत्रभूवनमोमहनी को देमखए ।
िखी-िणकन प्रस्तुत पंमक्तयों में लेखक ने नामयका की सखी के रुप-सौन्दया का नखमशख विान पुरुर्षोमचत ्टमसेकोि से मकया है-
“ अथ िखीिण्णकना ।। पूसण्णकमाक चान्द्द .... श्यामा जासत िखी ” [ पृ . िं . 23 , पंसक्त िं 1-13 ]
सखी का मु ँह देखने में ऐसे लगता है , जैसे अमृत से भरा पूमिामा का चाँद हो ; खोपा ( जूड़ा ) ऐसे मदखता है , जैसे नमादा का मशला ( काला पत्थर का मशवमलंग ) फू ल-माला से पूजा गया हो ; अधर ऐसे मदखता है , जैसे प्रवाल के पल्लव ( मू ँगा ) जैसा हो ; कान ऐसे मदखता है , जैसे कनेल का फल हो ; दाँत ऐसे मदखता है , जैसे मोती मसन्दूर में ममलने से रमक्तभ हो गया हो ; बाँह ऐसे मदखता है , जैसे बेंत की छड़ी हो ; स्तन ऐसे मदखता है जैसे मछलका हटाया हुआ नारंगी हो ; कमट ऐसे मदखता है , जैसे डमरू का मध्य भाग हो । हास्य-िणकन
इन पंमक्तयों में लेखक का स्त्री के प्रमत कोमल मवचार की अनुभूमत होती है । नामयका का हास्य लेखक के हृदय को इतना प्रभामवत करता है मक ये अपनी नामयका की एक मुस्कान पर प्रकृ मत को ही नही अमपतु सपू ाि िह्मांड को ही न्योछावर कर देते हैं-
“ अथ नासयका हास्यिण्णाक ।। कु मुद , कु न्द्द ... जनहास्य िंचारइते ँ देषु ।। [ पृ . िं . 25-26 , पंसक्त िं 13-25 ]
प्रस्तुत पंमक्तयों में लेखक ने नामयका का हास्य-विान मकया है । मनमोहनी , वशीकरि , उत्सामहत आमद रस को जगाने , तीनों लोकों को वश में करने तथा नायक में हास्य संचार करने हेतु नामयका ऐसे हँस रही है जैसे कु मुद , कु न्द , कदम्ब , कास , भास , कै लाश , कपूर और पीयूर्ष की कामन्त का प्रसार हो ; मत्रभुवन के शहरी युवकों के हृदय को ररझाने का मोहनीमंत्र हो ; क्षीरसमुद्र की दमक्षिा लाने चली तरंग का लहर हो ; अमृत के सरोवर का तरंग हो ; शरद ऋतु के पूमिामा के चाँद की चाँदनी हो ; अमभन और प्रकामशत कमलकोर्ष के प्रसार की शोभा हो ; कन्दपा ( कामदेव ) का प्रकाश
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017