Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
ज्योमतरीश्वर ठाकुर ने विारत्नाकर में नामयका
सौन्दया का जो कोमल, भावप ि ू ा और नयनामभराम
मचत्र खींचा है ; इतनी अमधक संख्या में वण्यामवर्षय क
मलए उपमेय-उपमान का प्रयोग मकया है ; वे शायद
संप ि ू ा संस्कृ त सामहत्य के लक्षि-ग्रन्थों में नही ममल
सकते। ज्योमतरीश्वर ठाकुर के सामहत्य में स्त्री मजस रुप
में मचमत्रत हुई है, उससे ऐसा प्रतीत होता है मक उस
य ग ु के मैमथल समाज में स्त्री के आ त ं ररक सौन्दया क
मवपरीत शारीररक सौन्दया को प्राधान्य माना जाता था।
लेखक ने मजस तन्मयता और भाव-मवभोरता के साथ
नामयका का नख-मशख विान, मवशेर्षकर उसके यौन
अ ग ं -उपांग का मजस भाव-प्रविता के साथ उपमा-
उपमान मदया है, वह मैमथल मपतृसत्तात्मक समाज क
प रु ु र्ष ्टमसेकोि में मनममात स्त्री के वस्तु प्रधान स्वरुप
को पररभामर्षत करता है मक एक स्त्री का स्वरुप कै सा
होना चामहए?
रुप-िौन्द्दयक का िणकन
प्रस्त त ु प म ं क्तयों में लेखक ने नामयका के रुप-सौन्दया का
विान मकया है। यहाँ मैमथल स्त्री के कामोत्तेजक रुप का
अश्लील मचत्रि हुआ है।
“[अथ नासयका] िण्णकना-----िुरक्त िा”
[पृ.िं.22, पंसक्त िं 5-15]
नामयका का चरि उज्जवल आमद पंच ग ि ु ों से य क्त
है। उसका मनतम्ब प से ु , मांसल और कछुआ के पीठ
स्टश है। उसके दोनों जांघ मचकने , कोमल, हाथी क
स ँढ ू समान हैं। उसकी नामभ गहरी है। उसकी कमट
पतली, कोमल, गोल-इन्ही तीन ग ि ु ों से य क्त
मात्र म ि ु ी
भर है। उसकी रोम-लता काली, मसृि कोमल... छः
ग ि ु ों से य क्त
है। उसके दोनों स्तन अत्यन्त ही मनकट-
मनकट, प से ु , कठोर, उँचे और गोल हैं। उसके बाह
मवशाल, गोल और कमल-नाल स्टश हैं। उसके हाथ
कोमल, रक्ताभ, मनमाल , लाल अशोक के पल्लव जैस
हैं। उसकी ग्रीवा त र ू जैसी कोमल और त