Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 145

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
का विान हुआ है । इस ग्रंथ में लेखक ने विानात्मक और पररगिनात्मक शैली का प्रयोग मकया है । इस ग्रंथ का कु छ अंश शुद्ध विानात्मक है , जैसे- प्रभात-विान , ऋतु-विान आमद ; कु छ अंश विानात्मक और पररगिनात्मक दोनों है , यथा- नृत्यविान ; कु छ अंश के वल पररगिनात्मक है , यथा- 64 कला , 12 आमदत्य आमद । अत : इसे एक प्रकार की शैली प्रधान ग्रन्थ की मवमशसे श्रेिी में रख पाना संभव नही है ।
इस ग्रन्थ की रचना लेखक ने मकस उद्देश्य से की थी ? इस मवर्षय पर मवद्वानों में पयााप्त मतान्तर है । विारत्नाकर के प्रथम अवलोकक महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार , इसमें कमव पररपाटी का प्रमतपादन मकया गया है । जबमक विारत्नाकर के प्रथम संपादक डा . सुनीमत कु मार चटजी के अनुसार यह लौमकक और संस्कृ त शब्दों का कोश है , मजसमें काव्य विान के मवमवध वस्तु भाव के साथ सभी के उपमा , उपमान और विान पररपाटी का संग्रह है । विारत्नाकर के संपादक और व्याख्याकार प्रो . आनंद ममश्र और श्री गोमवन्द झा , इनके विान शैली के आधार पर , अपना मंतव्य प्रकट करते हुए कहते हैं मक विारत्नाकर का नामकरि यमद विान रत्नाकर रखा जाए तो कोई अमतशयोमक्त नही होगी , क्योंमक इसमें विान की प्रधानता है ।
इस ग्रन्थ की रचना लेखक ने मजस मकसी उद्देश्य से भी की हो , इतना तो अवश्य कहा जा सकता है मक प्रमसद्ध मैमथल मवद्वान ज्योमतरीश्वर ठाकु र ने पद- रचना की परंपरागत शैली धारा को अमवमछन्न कर गद्य परंपरा की एक नवीन पररपाटी का श्रीगिेश मकया , जो परवती सामहत्य के मलए गद्य के नवीन शैली का सबल आधार बना । विारत्नाकर की भार्षा शैली को पढ़कर ऐसा अनुभूत होता है मक यह संक्रमि काल की पररवतानशील भार्षा है , मजसमें लेखक का
ध्यान मसफा उपमा के मवशेर्ष प्रयोग पर के मन्द्रत रहा है । मकसी मवर्षय-वस्तु के विान के मलए ऐसे-ऐसे पैने और सटीक उपमा और उपमानों का प्रयोग मकया गया है , जो वण्यावस्तु के भाव को दपाि स्टश प्रमतमबमम्बत करने में अमत सक्षम है । ऐसा उदाहरि अन्यत्र दूलाभ है-
‘ पूसण्णकमाक चान्द्द अमृत पूरल अइिन मुँह । ...
अधर कसनअराक कर अइिन नाक िीन्द्दुर मोसत लोिाएल अइिन दान्द्त ।...’
िणकरयनाकर में सचसित मैसथली स्त्री विारत्नाकर मैमथल स्त्री के मवमवघ स्वरुपों का रंग- मबरंगा मचत्राधार ( अलबम ) है । स्त्री के प्रत्येक रुप पर मैमथल मपतृसत्तात्मक समाज हावी प्रतीत होता है । विारत्नाकर में स्त्री कहीं धमापरायिा अधािंमगनी के आदशा रुप में है , तो कहीं नामयका के रुप में अपने अलौमकक रुप लावण्य से त्रैलोक को देदाप्यामान कर रही है , कहीं चुगली करने वाली स्त्री ( कु टज्ञ ) की कका श वािी से समाज को त्रस्त ; कहीं पुरुर्षों द्वारा बलपूवाक नताकी , नगरवघू बना मदए जाने पर मववश स्त्री की करुि गाथा है , तो कहीं स्त्री के अंग-उपांग का ऐसा प्रतीकात्मक मचत्र दश ाया गया है , जो स्त्री शरीर के प्रमत मैमथल पुरुर्ष के भोगवादी संकीिा सोच को प्रदमशात करता है ।
एक स्त्री को देवी से नगरवघू बनाने वाला वचास्ववादी पुरुर्ष समाज ही होता है । क्योंमक , स्त्री के इन दोनो रुपों से लाभामन्वत पुरुर्ष समाज ही होता है । जहाँ वह स्त्री के देवी स्वरुप से अपने सभी ममथ्या-कमा को क्षमा करने पर मववश करता है , वहीं नगरवधू बनाकर प्रत्येक वगा और उम्र का पुरुर्ष उसका उपभोग कर उसे अपमान करके दलदल में धके ल स्वयं मनष्ट्कलंक हो प्रमतष्ठा की ममथ्या पगड़ी बाँधें समाज में बेधरक घूमता है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017