Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 141

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
वतामान समय में आमदवासी समाज की मस्थमत पहले से खराब होती जा रही है । उनसे वह सब कु छ मछनता जा रहा है , मजसे प्राप्त करने का वह हकदार हैं । संजीव के ‘ धार ’ उपन्यास में इसका सजीव मचत्रि मदखाई देता है , मजसमें संथाल आमदवासी गरीबी तथा बेगारी में जीवन मबताते हैं । उद्द्योगपमत महेन्द्र बाबू आमदवासी इलाके में तेजाब का कारखाना शुरू करतें हैं , मजसके पानी से कु एं , तालाब सब दूमर्षत हो जाते हैं , अतः आमदवामसयों को नई समस्याओं से जूझना पड़ता है । उपन्यास की मैना अपने समाज की हालत को बयाँ करती हुई कहती है – ‘ खेत-खतार ’, पेड़ , रुख , कु आं , तालाब , हम और हमारा बाल-बच्चा तक आज तेजाब में गल रहा है , भूख में जल रहा है । पहले हम चोरी का चीज है नहीं जनता था , भीख कब्भी नई माँगा ..... इज्जत कब्भी नई बेचा , आज हम सब करता । 3 मैना के माध्यम से उपन्यासकार ने वतामान कालीन आमदवामसयों के जीवन का कड़वा सच प्रस्तुत मकया है मक आमदवादी समाज आज मकस तरह बेबस जीवन जीने के मलए अमभशप्त है ।
आज आमदवासी का हर वगा शोर्षि का मशकार है । ऐसा भी नहीं है मक आमदवासी इस शोर्षि के प्रमत मौन रहते हैं । उनमें भी अब चेतना आयी है , वे भी अब संगठन शमक्त का महत्व पहचानने लगे हैं । संजीव के ‘ धार ’ उपन्यास में यही मस्थमत अंमकत है , जहाँ अमवनाश शम ा तथा मैना खदान में आमदवामसयों के साथ काम करते हैं , मजसमें कोयला मनकलता है , लेमकन शोर्षि का मसलमसला यहाँ भी मदखाई देता है , इसीमलए आमदवासी सामथयों से अमवनाश शमाा अपनी संगठन शमक्त का एहसास मदलातें हैं । “ तो समथयों यह धार हमारी शमक्त है और धार का भोथरा होना ही मौत ...... धार बरकरार रही है तो सारा संसार ही आपका है । इसमलए हमें धार की जरुरत है सतत सान से ताजा होती धार चामहए हमें कोइ भी कु बाानी क्यों न देनी पड़े ।” 4
उपन्यास की मुख्य पात्र मैना मदावादी व्यवस्था को तोड़ती आमदवासी नारी है । उसमें स्त्री सुलभ सामत्वकताएँ सु ंदरता , दया , ममता , प्रेम , आमद गुि हैं तो दूसरी ओर अन्यायी , अत्याचारी , समाज-व्यवस्था और भोगप्रदान पुरुर्षवादी व्यवस्था से आक्रोश और मवद्रोह कू ट-कू ट कर भरा हुआ है । मैना की अपनी एक जीवन शैली है और अपनी नैमतकता है । वह अपने समाज और मबरादरी वालो की परवाह न करते हुए मबना शादी के मंगर के साथ रहती है । जब वह पैसे के लालच में खलासी के साथ व्यमभचारी करती रममया को पकडकर उसके बाप के पास ले जाती है तब गाँव वाले उसे ही भला बुरा कहते हैं और मैना का मवरोध करने लगते हैं । तब वह मनडरता से कहती है – “ मैना का जब मन चाहा मरद मकया , मन से उतर गया छोड़ मदया , मरजी से मकया मजबूरी से नहीं । असल बाप का बेटा हो तो पहले मैना बनके मदखाना तब बात करना ।” 5 इस कथन से उसके स्वामभमानी व्यमक्तत्व का पररचय होता है ।
संथालो की इस बॉसगाडा बस्ती में सभी ओर दररद्रता , भुखमरी , बेकारी है मजससे बेहाल होकर लोग चोरी से रात में कोयला काटकर उसे बेचकर अपनी जीमवका चलाते हैं । इनमें से अमधकतर लोग यहाँ के ममल मामलक , पू ंजीपमतयों के गुलाम हैं । उनके पास खुद के बारे के सोचने के मलए समय ही नहीं है । सभी को यहाँ की अथा और समाज व्यवस्था ने लूला-लंगड़ा और कमज़ोर बनाया है । अगर कोई सचेत होकर इस क्रू र व्यवस्था से संघर्षा करने की क्षमता और साहस रखता है , तो वह मैना ही है । हैदर मामा उसके बारे में कहता है , “ ई लंगड़ा-लूला बीमार इंसानों के बीच एक तू ही तो साबुत है ।” 6
मैना अपने समाज से अत्यामधक प्रेम करती है इसमलए वह अमवनाश शम ा के जनमोच ा से ममलकर सबको रोजगार ममले ऐसी जनखदान का मनम ाि करती है । उसके इस काया से उसके प्रगमतवादी चररत्त का पररचय ममलता है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017